बुधवार, दिसंबर 30, 2009

नव वर्ष मंगलमय हो [शुभकामना]

आप सभी को मेरी और से नववर्ष की मंगल शुभकामना|


नव वर्ष मंगलमय हो,
हर सुबह नयी खुशियों का,
सूर्य उदय हो,

जो ना मिल पाया,
बीते हुए साल से,
वो इस वर्ष हासिल हो,

क़दमों तले हो मंजिल,
शोहरत,दौलत,खुशियाँ,
नित हासिल हों,

रहे आरोग्य तन,
चित प्रसन्न रहे,
लक्ष्मी,सरस्वती का,
संगम सुन्दर रहे,

सबको मिले नववर्ष से,
जो कामना रही अधूरी,
नववर्ष करे हर कामना पूरी,

दो हजार दस लेकर आये,
आपके ज़िन्दगी में खुशियाँ अपार,

सबके जीवन का हर सफ़र,
हो उमंग भरा,फले फूले परिवार,

नव वर्ष मंगलमय हो,
हर सुबह नयी खुशियों का,
सूर्य उदय हो|

BY -- RAJNI NAYYAR MALHOTRA 8:32 PM

मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

आज मिलते ही मुंह अपना मोड़ लिया

वो हवाएं भी अब नहीं लाती,
पैगाम आपका,
जो आती थी मेरे घर तक,
लगता है आपने रुख इधर का छोड़ दिया|

हर साँस पर आती थी हिचकियाँ,
अब तो जमाने गुजर गए इन्हें आये,
लगता है आपने मुझे याद करना छोड़ दिया|

आजादी के साथ घूम रहे थे,
मेरे अरमानों के बाराती,
आपके हाथ में पत्थर,
मेरा शीशे का मकान तोड़ दिया|

कहते थे कभी भी न छोड़ेंगे साथ,
और अब तो ख्वाबों में भी आना छोड़ दिया|

पानी से डरनेवाले,
सागर में उतर गए,
आपके हाथों का ले सहारा,
डूबने लगे तो,
हाथ आपने छोड़ दिया|

धुनी रमा कर जोगी सा,
मेरे दरवाजे पर बैठे थे कभी,
आज मिलते ही मुंह अपना मोड़ लिया|

जो होना नहीं था कभी,
वो कर दिखाया आपने,
एक शीशे ने पत्थर को,
बड़ी आसानी से तोड़ दिया|


हर साँस पर आती थी हिचकियाँ,
अब तो जमाने गुजर गए इन्हें आये,
लगता है आपने मुझे याद करना छोड़ दिया|

गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

कोई तलाश नहीं बाकी, तुझे पा लेने के बाद,

हमसफ़र को पाने के बाद मन की अभिव्यक्ति कुछ ऐसी है..

कोई तलाश नहीं बाकी,
तुझे पा लेने के बाद,
कोई आरजू नहीं बाकी,
तुझे मन में बसा लेने के बाद|

मेरी भटकती हुई राह को,
मिल गयी मंजिल ,
तुझे पा लेने के बाद|

जो खो चूका था किनारा,
वो शाहिल हो तुम,
मेरे कस्ती को मिली किनारा,
तुझे पा लेने के बाद |

कोई जुस्तजू अब क्या करें,
कोई जुस्तजू नहीं बाकी,
तुझे पा लेने के बाद|

by --- RAJNI NAYYAR MALHOTRA 9:08 PM

बुधवार, दिसंबर 23, 2009

कब तक मेरी बेबसी को , वो आजमाएंगे,

कब तक हमें,
इंतजार के,
अग्न में,
 जलाएंगे,
कब तक ,
मेरी बेबसी को ,
वो आजमाएंगे,
एक दिन तो,
आएगा ऐसा,
वो हमारी ,
चाहत का ,
लोहा ,
मान जायेंगे.

"रजनी"

मंगलवार, दिसंबर 22, 2009

हमसफ़र मेरे साथ तो दोगे ना

ये नज़्म मेरे जीवनसाथी के लिए .....

हमसफ़र मेरे,   साथ तो दोगे ना
लडखडाये  कभी क़दम  मेरे ,हाथ तो दोगे ना,
आये कभी मेरे पलकों पर आंसू, पोंछ तो दोगे ना,

 ज़िन्दगी का  हर पल  खुशियों से भरा होता नहीं,
कभी ग़म के  बादल  जो छाये ,हिम्मत तो दोगे ना,

जीवन के सफ़र में, आती  हैं मुश्किल राहें,
हर राह के सफ़र में , हमसफ़र बनोगे ना,

"आज हम कह रहे हैं कल तुम भी कहोगे ना"
"हमसफ़र मेरे साथ तो दोगे ना",

मेरे हाथों को सहारा ,अपने हाथों का दोगे ना,
दर्द हो मन में मेरे,आँखों से जान लोगे ना,
बिन कहे मेरी हर बात पहचान लोगे ना,

हमसफ़र जीवन के सफ़र का, होता है हर किसी का,
तुम मेरे हमसफर हो,हमराज़ हो,हमराज़ तो रहोगे ना,
कोई ख़ता  हो ज़िन्दगी में मुझसे, माफ़ तो करोगे ना,

"मरते हैं तुम्हीं पर दिल-ओ-जान   से हम"
ये  लफ्ज़  एक बार ही सही, हमसे कहोगे ना |

हमसफ़र मेरे साथ तो दोगे ना,

तेरे सिंदूर से ज़िन्दगी मेरी सिंदूरी है,
जिंदगी मेरी हर पल सिंदूरी करोगे ना,

हमसफ़र मेरे साथ तो दोगे ना |

BY ----- RAJNI NAYAAR MALHOTRA 8:21 PM

शनिवार, दिसंबर 19, 2009

तू आईना बन गया है, मेरे रूप का,

दीवानगी भी मेरी अब,
हद पार कर गयी है,
मै इसके हर एक हद से,
गुजर रही हूँ,
तेरी एक मुस्कान के लिए,
मै पल,पल मर रही हूँ,
चैन छिन गया है दिल का मेरा,
अब तो उस टूटे हुए,
आईने की तरह बिखर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ,
कैसा सुकून है फिर भी,
इस तराने में,
तू आईना बन गया है,
मेरे रूप का,
तुझे देख के मैं सवंर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ|

शुक्रवार, दिसंबर 18, 2009

प्यार जिसे मिल जाए,

कहते हैं ,
प्यार जिसे ,
मिल जाए,
उसके,
जिन्दगी में,
गूंजती ,
शहनाई है,
और,
जिसके ,
हिस्से में,
ना आई,
मुहब्बत ,
उसकी ,
जिन्दगी में तो ,
दर्द,
जुदाई,
और,
तन्हाई है.

"rajni"

गुरुवार, दिसंबर 17, 2009

मधुशाला भी छोटा पड़ जाये, इतना मद है उनके आँखों में,

मेरी ये नज्म नायक तथा नायिका दोनों के लिए है..........

मधुशाला भी फीका  पड़ जाये,
इतना मद है उसकी  आँखों में,

हर  मन  को  चंचल कर जाये ,
ऐसी खुशबू है उनकी  सांसों में,

मिसरी    भी  फीकी   पड़ जाए,
ऐसी  मधुरता  उनकी  बातों  में,


दूर  होकर  भी  वो  पास  है  मेरे,
इस  तरह  बसा  है  मेरी  यादों मैं| 

हर    शह    को   मात   दे  जाये   ,
ऐसी  अदा   है  उनकी  चालों  में |

मधुशाला भी  फीका   पड़  जाये,
इतना  मद है  उसकी  आँखों  में.

"रजनी"

मंगलवार, दिसंबर 15, 2009

यूँ किस्त दर किस्त ना मार दे

KUCHH SHER MERI CREATION KE........
दरिया भरा है सामने पानी से,
पर दिल बेताब है,
तेरे आँखों के सागर में डूब जाने के लिए|
****************************
सागर में रहने का डर हमें नहीं,
कस्ती लिए फिरते हैं हम तो,
तूफ़ान के इंतज़ार में|
*****************
क्या खूब मिला है सिला इंतज़ार का,
वो आते हैं हमसे मिलने,
मेरे जाने के बाद|
*****************
जब हम नहीं होते हैं,वो चाँद मुस्कुराता है,
हमारे आते ही सामने,
बादल की आगोश में छूप जाता है|
**********************
बहुत जी लिया तेरे शर्तो पर,
अब तो ये क़र्ज़ तू उतार दे,
दे दे सजा कोई ऐसी,
यूँ किस्त दर किस्त ना मार दे|
************************
BY------ RAJNI NAYYAR MALHOTRA 9:18PM

हर राह यदि बिन मोड़ गुजर जाए

हर राह में ,
 यदि फूल बिछे हों,
हर राह यदि ,
बिन मोड़ ,
गुजर जाए,
 अँधेरा ना हो तो,
रौशनी कि,
जरुरत को ,
कोई ना,
जान पाए,
ज़िन्दगी भी,
एक राह है,
जो फूल के,
संग शूल,
अँधेरे के संग,
प्रकाश की,
चलते कदम को ,
एहसास कराए.

"रजनी"

शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

एक चुटकी सिंदूर के बदले, उसे साँसे गिरवी दे देती है,

मेरे मन में काफी सालों से एक द्वंद चल रहा था,समाज में नारी के स्थान को लेकर,
मन कुछ कड़वाहट से भरा रहा,आज काफी सोंचते हुए एक रचना लिख रही उनकी कुछ (नारी)
की बेबसी पर जो .........ममता,त्याग,वात्सल्य ,विवशता संस्कार,कर्तव्य, एक चुटकी सिंदूर ........ और जीवनपर्यंत रिश्तों की जंजीर में बंधकर, अपनी हर धड़कन चाहे इच्छा से,चाहे इच्छा के बिरुद्ध बंधक रख देती है..जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त वह बस रिस्तों को निभाने में ही रह जाती है,विवाह के बाद विवाह के पूर्व खुलकर अपनी साँसें भी नहीं ले पाती,पर विवाह के बाद नए रिस्तों में बंध कर वो तो अपना अस्तित्व ही खो देती है, वो खुद को गिरवी रख देती है,अपने ही अर्धांगिनी होने का मतलब भी खो देती है.......... आशा है मेरे विचारों
से आपलोग सहमत हों.......

मेरी एक कोशिश है (उन नारियों के लिए जो खुद को बेबस बना कर रखी हैं ) उनके लिए ... बंधन में बंधो,पर खुद को जक्ड़ो नहीं..........

अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,

एक चुटकी सिंदूर के बदले,
उसे साँसे गिरवी दे देती है,

लहू से अपने,सींचे आँगन जिसका,
खुशियाँ अपनी सूद में उसे देती है,

त्याग और ममता की मूरत बनकर,
कब तक और पिसोगी तुम,

आँखों में आँसू रहेगा कबतक ?
कबतक होंठों पर झूठी ख़ुशी होगी ?

कब तक रहोगी सहनशील ?
कब तक तेरी बेबसी होगी ?

त्याग ,दया,ममता, में बहकर,
अबतलक पिसती आई,

जिस सम्मान की हक़दार हो,
अपनी खता से ही ना ले पाई,

शर्म, हया तेरा गहना है,
बस आँखों में ही रहे तो काफी है,

खुद को बेबस जानकार,
ना दबा दे आरजू सारी,

पहचान ले खुद को,
तेरा ही रूप रही दुर्गा काली,

मांगने से नहीं मिलता,
छिनना पड़ता अधिकार है,

अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,

गुरुवार, दिसंबर 10, 2009

हिन्दुस्तानी एकेडेमी: कुमार विश्वास की लुटायी मस्ती में झूमते रहे श्रोता...

हिन्दुस्तानी एकेडेमी: कुमार विश्वास की लुटायी मस्ती में झूमते रहे श्रोता...

बुधवार, दिसंबर 09, 2009

मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी

मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,

चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,

मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,

ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,

पता है तेरे जिगर में मेरे लिए ,
अगाध छिपा अनुराग है,
पर मै तेरे अनुरोध को स्वीकार नहीं पाऊँगी,

क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,

 मै वो दीया हूँ जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे रौशनी नही दे पाऊँगी,

मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,

मै वो सरिता हूँ जो भरी तो हुई नीर से,
पर तेरे प्यास को बुझा नही पाऊँगी,

क्यों आंजना चाहते हो मुझे आँखों में ?
मै वो काजल हूँ,
जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,

मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,

क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,

ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,

सुमन से भरी बाग़ हूँ मै,पर
तेरे संसार को सुगन्धित नहीं कर पाऊँगी,

क्यों लिखना चाहते हो मुझको गीतों में ?
मै वो शब्द का जाल हूँ जो,
गीतों का माल नही बन पाऊँगी,

ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,

चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,

काँटों से आँचल छुड़ाना सीख लिया मैंने,

काँटों से आँचल छुड़ाना,
सीख लिया मैंने,

कदम डगमगाते थे,
लड़खड़ाते कदम ,
आसानी से,
आगे बढ़ाना,
सीख लिया मैंने,
तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,

पथरीली राहों पर भी,
अब तो ,
हँस कर चलने लगे हैं,

वक़्त के साथ खुद को,
आजमाना ,
सीख लिया मैंने,

बात बात पर,
सागर छलकाने वाले,
कैसे,बन जाते हैं,
पत्थर,सीख लिया मैंने,

कड़वे बोल भी ,बन जाते हैं ग़ज़ल,
गजल बनाना सीख लिया मैंने,

अग्न में खुद को मोम सा ,
जलाना सीख लिया मैंने,

तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,

पथरीली राहों पर भी,
अब तो ,
हँस कर चलने लगे हैं,

सागर के तेज़ धारे से,
कस्ती बचाना,
सीख लिया मैंने,

मौन रह कर भी सबकुछ ,
कह जाना सीख लिया मैंने,

गम के सागर में भी रहकर,
मुस्कुराना सीख लिया मैंने,

तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,

पथरीली राहों पर भी ,
अब तो,
हँसकर चलने लगे हैं.

"रजनी "

फिर खामोश हैं ये निगाहें

फिर खामोश हैं ये निगाहें,
ये दिल फिर बेकरार है,
जो रहते हैं हर पल दिल में,
फिर क्यों उनका इंतजार है |

सिवा तेरे दिल ने मेरे दूसरे को अपनाया नहीं|

जामे इश्क तुने ,
कभी पिलाया नहीं,
किसी पैमाने और को,
हमने उठाया नहीं,
यूँ तो मिले थे ,
तुमसे भी बढ़कर
कई और,
सिवा तेरे,
दिल ने मेरे,
दूसरे को अपनाया नहीं.

"rjni"

ये तो मेरी अदा है, दिल की दर्द छुपाने की

हम हंसते हैं तो उन्हें लगता है ,
हमें आदत है मुस्कुराने की,
नादाँ इतना भी नहीं समझ पाते,
ये तो मेरी अदा है,
दिल की दर्द छुपाने की|

अपना सबकुछ लगाये बैठे हैं दाव पर

बिन खेले ही,
जीत कर ,
ले गए वो,
हमसे,
मुहब्बत,
की बाज़ी,
अब तक ,
हम  ,
लगाये बैठे हैं,अपना ,
सब कुछ ,
दांव पर.

"रजनी"

सोमवार, दिसंबर 07, 2009

आँखें नींद से बोझिल हैं, देखो कहीं मै ना सो जाऊं

 ये रचना हर संघर्षरत इन्सान के लिए.................
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं,

मैं दूर पथ की पथिक हूँ,
भटकन में पथ ना खो जाऊं,

कदम चलते चलते थकने लगे,
गहरी नींद में न सो जाऊं,

मुझे सोना नहीं,कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,

विजय का बिगुल बज जाएगा,
असंभव भी संभव हो जायेगा,

तन थक जाए,पर मन थक ना पायेगा,
तब हार भी बनेगी जीत की पताका,

भरे होंगे राह मुश्किल से,
पर अडिग रहना होगा अपने प्रण से,

निराशा कभी हाथ आएगी,
कभी हर्ष मन को महकाएगी,

रुकते रुकते से लगेंगे कदम,
कभी खुद आगे बढ जायेगे,

मुझे सोना नहीं कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,

मै क्या हूँ मेरी पहचान बता देना,
सोने लगूं तो जगा देना,

आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं|

रविवार, दिसंबर 06, 2009

वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया

वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे,

मौसम के रुख ने हमें मोम बना दिया,
हम भी कभी आग हुआ करते थे,

आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे,
कभी हम भी थे रवि के तेज से,

एक झंझावत से गिर गयी पंखुडियां सारी,
बस शूल के ही डाली बन के रह गए,
हम भी कभी गुलाब से भरे गुलशन हुआ करते थे,

विवशता ने हमें सिन्धु सा शांत बना दिया,
हम भी कभी उफनती सरिता सी मादकता में चूर थे,

वो अपने ही क़दमों के निशान हैं,
जो कभी हिरनी सा चौकड़ियाँ भरा करते थे,

वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|

मेरे हमसफ़र हो जाए राह आसां

शुकून मिले इस दिल को,
जो तेरी गोद में ,
पनाह मिले,
तपती धूप में,
जलते हम,
तेरे प्यार कि जो ,
छांव मिले,
हो जाए आसरा,
गर दो घड़ी,
जो तेरे कंधो का,
सहारा मिले,
मेरे हमसफ़र,
हो जाए राह आसां,
जो जीवन में हमें,
तेरा साथ मिले.

"rajni"

उन्हें क्या डूबाओगे जो लहरों में रहना जानते हैं

उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं,

उन्हें क्या आजमाओगे ,
जो कसौटी में,
खरा उतरना जानते हैं,
उन्हें क्या पहचान सीखाओगे ,
जो हर धड़कन पहचानते हैं,

रोने वालों को हँसना सीखा दो,
तो रोनेवालों की हंसी ,
कुछ दूआ भी देगी,

भवंर में डूबने वालों को,
दे दो हाथों का सहारा,
बच जायेगी ज़िन्दगी ,
तो एक ज़िन्दगी संवरेगी

उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं|

शनिवार, दिसंबर 05, 2009

सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता

आज की सीता
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,
कभी सीता ने एक तिनके से डराया था रावण को,
विश्व विजेता कहलानेवाला डर गया था उस तिनके को लांघन को,
थी शक्ति स्वरूपा, वो सति रूप अंशी,
तभी तो रोका न कर पाया रावण कुछ वैसा,
आज तो कदम कदम पर रावण खड़े हैं,
देखें अकेली अबला को तो पीछे पड़े हैं,
एक था रावण तो थी एक सीता,
पर आज तो एक सीता हजारों है रावण,
थर थर कांपती रह जाती पड़े जब सामन,
गिला करे अपनी तकदीर से जो तुने अबला बना दिया,
क्यों न अपनी शक्ति का एक अंश ही प्रदान किया,
शक्ति तुने औरत होकर खुद औरत को न समझा,
अपनी शक्ति का तू जो एक अंश ही देती,
रहती ना अबला ये लुटती न अपने लाज को,
जहाँ जरूरत पड़ जाती वो बन जाती चंडी काली,
हो पाता तेरा ये थोड़ा उपकार तो,
आज कर देती हर रावण का संहार वो,
जो नजरें उठाई,जो हाथ बडाई ,किसी ने अबला जान कर,
जानकर वो भी रह जाता उसकी शक्ति मान कर,
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,
एक हैं दोनों रूप अलग है,
फिर क्यों एक शक्ति स्वरूपा कहलाती है,
एक अकेली अबला ही रह जाती है,
हे शक्ति क्यों तेरे आँखों के सामने,एक शक्ति लूट जाती है,
चाह कर भी वो अपना सर्वस्व बचा नहीं पाती है,
आकर इस दुनिया से रावण का संहार कर,या दे दे वो शक्ति,
अपना वो अंश प्रदान कर,
कर सके ये भी तेरी तरह महिषासुर का संहार,
कर ना पाए अबला के लाज पर कोई जान अबला वार,
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,

ओ चैन लूटने वाले, मुझे थोड़ा तो करार दे|

जब इंतज़ार हद से गुज़र जाए तो कुछ इस तरह मन की भावनाएं होती हैं.......

ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे,

दे दे हाथों से अपने,
थोड़ा सा ज़हर,

यूँ तो हमें,
इंतज़ार के,
अग्न में जलाकर,
बेमौत ना मार दे,

हम तो हो गए बस,
यूँ ही कायल तुम्हारे,

नाम तुम्हारा आता है,
खुदा से पहले, होठों पे हमारे ,
जितने भी तेरे पास हैं,
तीर कमान में,
वो सारे,
मेरे जिगर में उतार दे,

उफ़ ना निकले,
होठों से हमारे,

बस इस अग्न से मुझे,
एक बार तो उबार दे,

यूँ तो हमें ,
इंतज़ार के,
अग्न में,जलाकर,
बेमौत ना मार दे,

कौन सी ,
खता है हमारी,
बस,
एक बार तो ,
इजहार दे,

हुक्म तेरा ,
मेरे सर आँखों पर,
क़दमों में तेरे,
मेरी जान वार दे,

ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे,

खो गया है चैन मेरा,
ज़िन्दगी बेहाल है,

कोई तो मुझे ,
ज़िन्दगी अपनी,
दो चार दिन को,
उधार दे,

ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे.

"रजनी"

शुक्रवार, दिसंबर 04, 2009

जिस माझी पर होता है ऐतबार

ना कर कस्ती को किनारे पर लाने की बात,
अक्सर जहाँ पानी कम हो,
वही पर कस्ती डूब जाती है,
जिस माझी पर होता है ऐतबार,
वो ही मझधार में छोड़ जाता है|

गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

बेमोल बिक गए, हम तो, तेरी , एक मुस्कान पर.

चाहता,
अगर मै तो,
तेरी,
हर कसम को ,
तोड़ जाता,

मिलने की,
बेकरारी,
इस कदर थी,

हर पहरे को ,
तोड़ जाता,

तुने ही,
रोका,
तेरे शहर ,
न आने को,

पर ,
मेरी ख्वाहिश से,
पहले,
तेरी खुशियाँ ,
देखी मैंने,

ना होता,
तेरा फिकर तो,
खरीदार,
बहुत थे,
बाज़ार में,

बिकने चला,
जाता,
पर,
बेमोल बिक गए,
हम तो,
तेरी ,
एक मुस्कान पर.

"rajni"

मैंने एक महल बनाया है ख़्वाबों का

मैंने एक,
महल बनाया है ,
ख़्वाबों का,
इसमें,
रंग भरे हैं ,
मेरे सपनों ने,
प्रेम की,
विश्वास की दीवारें हैं,
और,
चुलबुली सोंच,
ईसमें,
लहराते हैं ,
चिलमन बन कर,
इस महल में ,
मेरे साथ,
मेरे सपनों का,
शहजादा है,
जिसके साथ,
ताउम्र ,
इस महल में,
राज करने का,
दिल का इरादा है.

 "रजनी"

बुधवार, दिसंबर 02, 2009

क्या पा लिया तुमने हमको रुलाके ?

क्या पा लिया तुमने हमको रुलाके ?
क्या मिल गया तार दिल के हिला के?

टूट कर कुछ भी जोड़ना,
जब मुमकिन नहीं,

क्या पाओगे अब?
टुकड़े दिखा के,

बिखर गये जब धागे से मोती,
छीन गये जब दीप से ज्योति,

क्या जोड़ पाओगे अब ?
बिखरे हुए मोती.

क्या कर पाओगे रोशन ?
बुझी हुई ज्योति.

मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

एक ख्वाब, एक ख्याल, एक हकीकत हो तुम,

एक ख्वाब, एक ख्याल, 
एक हकीकत हो तुम,
कैसे कहें,कितनी कहें,क्यों ?

मेरी ज़िन्दगी की, 
जरुरत हो तुम.

चल रहे मझधार में,
इस बेमाने संसार में,
 जी रहे हैं हम
गुमसूम,गुमसूम,गुमसूम
मेरी डूबती नैया की,
पतवार हो तुम,
मैं हूँ मझधार में,
मेरी किनार हो तुम.

इस गगन में,
रंगीं चमन में,
इस फिजां में,
हर एहसास में हो तुम.

मेरी यादों में,
मेरी सांसों में,
मेरे जीवन के ,
हर कोण पे ,
बसे इरादे हो तुम.

साथ चले,संग जले,
कुछ अरमान हैं,
दिल में पले,

अपनी अरमानों का ,
एक जाल हो तुम.

तन्हाई में,भीड़ में,हर जगह,
आने वाले ख्याल हो तुम.

जिसे सोंचें वो ख्याल हो तुम,
जिसे गायें वो ग़ज़ल हो तुम,
जिसमे जलें वो अनल हो तुम.

एक अनकही बात हो तुम,
न बुझे वो प्यास हो तुम,
ज़िन्दगी की मिठास हो तुम.

कैसे कहें,कितनी कहें,क्यों ?
मेरी ज़िन्दगी की, 
जरुरत हो तुम.

जो रुके न वो सफ़र हो तुम,
दिल में उठनेवाली लहर हो तुम,
जिसका  कभी ना डूबे रवि,
वो शहर हो तुम,

मेरी यादों में,मेरी सांसों में,
मेरे जीवन के हर कोण पे
बसे इरादे हो तुम.

"rajni"

सोमवार, नवंबर 30, 2009

ये प्रीत का सन्नाटा है, जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है

ये कैसा सन्नाटा है ?
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है.

ये कैसा अमृत है ?
जिसकी हर घूंट में हलाहल है.

ये कैसा उदगार है ज्वालामुखी का ?
जिसके फटने से बस संहार ही संहार है.

ये कैसा ख्वाब है ?
जिसे बुनने को बेकल सारा संसार है.

ये प्रीत का सन्नाटा है,
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है.

ये प्रीत अमृत है,पर
इसके हर घूंट में हलाहल है.

ये प्रीत एक ज्वालामुखी है,
जिसके फटने से संहार ही संहार है.

ये प्रीत एक सुहाना ख्वाब है,
जिसे बुनने को बेकल सारा संसार है.

ये प्रीत हर किसी के लिए नहीं आसान है,

किसी को मिल जाये तो वरदान है,
ना मिले तो अभिमर्दी है.

ये प्रीत का सन्नाटा है,
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है|

रविवार, नवंबर 29, 2009

चाहत अगर पूरी हो जाए

चाहत अगर पूरी हो जाए,
तो चाहत ख़त्म नहीं होती,
और अगर वो ख़त्म हो जाए,
तो वो सच्चा प्रेम नहीं.

आसमां से गिरे कही नहीं बच पाते हैं

दिल जुड़ने न देना,
कभी किसी भी ,
हालत में,
जब टूट जाए ,
बड़ा दर्द देता है,
धड़कनों को झूठी ,
लगन ना लगे,
आसमां से गिरे,
कही नहीं बच पाते हैं.
कभी हसरतों को,
जागने ना देना,
टूट जाएँ तो ,
जीने ना देंगे ,
ये अरमा,
टूटी हुई कांच को ,
जोड़ना जैसे कठिन है,
टूटने पर,
जुडेंगे न ये अरमां.

"रजनी"

तेरी तारीफ में कितना लिखे कोई

तेरी तारीफ़ में कितना लिखे कोई,
कम ही लगता है जितना लिखे कोई,
ये उम्र तो कम ही लगने लगी,
सात जन्म भी कम लगे इतना लिखे कोई,
नशा में लिखू तो शराबी कहोगे,
बिन पिए ही लिखा है,
ऐसे लिखे जैसे सपना लिखे कोई,
गजल खुद ब खुद बन जाती है,
जब भी तेरा बोलना,तेरी आवाज़ लिखे कोई,
तुझमे और तेरी आवाज़ में वो जादू है,
तेरा रुकना और तेरा चलना लिखे कोई,
तेरी तारीफ में कितना लिखे कोई,
कम ही लगे जितना लिखे कोई,
किसी कि गजल में वो बात नहीं,
नया क्या लिखे, जब अपना लिखे कोई,
तेरी तारीफ में कितना लिखे कोई,
कम ही लगता है जितना लिखे कोई.

उन्होंने हमसे जुदाई मांग ली

इस कदर खुश हो गए उनपर,
कि बातों बातों में हमने कह दिया,

मांगलो हमसे जो चाहो आज,
उन्होंने हमसे जुदाई मांग ली,

और हमने इकरार भर दिया,

आँखें कह रही थी कुछ और,
होंठो ने कुछ कह दिया,

रो रहे थे दोनों,जिसे उन्होंने,
मेरा हँसना समझ लिया|

मत जला चिरागों को , मुझे अँधेरे में रहने की आदत है

मत       जला       चिराग़ों          को 
मुझे   अँधेरे में  रहने   की  आदत   है,


खीच  ले  क़दम    धंसने       से   पहले,
मुझे  दलदल   में रहने   की   आदत  है,


बन     चुका     अभिशाप     मेरे    लिए,
जो      तेरे       लिए      इबादत       है,


जिन्हें सोच रहे  कंटक, मेरे लिए प्रसून  हैं,
मुझे काँटों से    भी  निभाने की आदत   है.


छेड़      समुंदर      की     लहरों       को,
क्यों      तूफान    को    दावत   देते    हो,

छेड़     के     बाम्बी     को,    विषधर  की,
क्यों   गरल    की    चाहत     लेते      हो,

जो    जलकर    धुआं  -  धुआं    हो   गया,
क्यों   उसमें  , मिटने   को  उद्धत   होते  हो,

मत          जला        चिराग़ों             को ,
मुझे    अँधेरे    में   रहने   की   आदत   है|

शनिवार, नवंबर 28, 2009

सांसों में जिसे महसूस करते हैं वो आप हैं

सांसों में जिसे महसूस करते हैं वो आप हैं,
हर आहट पर जिसकी अहसास होती है वो आप हैं,
हवा भी चले तो ऐसा लगता है आप हैं,
हम आँखें बंद करें तो बंद आँखों में भी आप हैं,
क्या कहें मेरे लिए तो सारी कायनात ही आप हैं.

कैसे कह दूँ कि साँस लेने से जिन्दा हूँ

साँस लेने से तेरी याद आती है,
न लेने से मेरी जान जाती है,
कैसे कह दूँ कि साँस लेने से जिन्दा हूँ ,
जबकि हर साँस से पहले तेरी याद आती है.

हम हँस कर तेरी राहों में दीप बन जायेंगे

हर दिन रब से यही दुआ है हमारी,
ज़िन्दगी के सफ़र में तू सब कुछ पाए,

कदम रख दे तू जिस राह पर,
वो तेरी मंजिल बन जाए,

अगर तेरे रास्ते में हो कभी अँधेरा,
तो रब रोशनी के लिए मुझे जलाये,

हम हँस कर तेरी राहों में दीप बन जायेंगे,
आये मुश्किल रूपी अँधेरे को हम जलकर हटायेंगें.

पर वो अपना ना हुआ

उस ख्वाब के पीछे क्यों जाते हैं हम,
जो कभी हमारा ना हुआ,
चाहा था अपना बनाना ,
पर वो अपना ना हुआ|

गैरों पे अपना सबकुछ लुटाने वाले बहुत कम होते हैं

गैरों पे अपना सबकुछ ,
लुटाने वाले बहुत कम होते हैं,
अपने ही  हाथों ,
अपनी खुशियाँ,
मिटाने वाले कम होते हैं,
सुना है ,
जब साथ किसी का मिले,
अँधेरे में भी उजाले हो जाते हैं,
तुम पर फिर भी ,
न जाने कैसे ,
कर लिया यकीन,
ये जानते थे ,
भरोसा निभानेवाले ,
लोग बहुत कम होते है.

कमल भी तो कीचड़ में ही खिलते हैं

दिल चाहता है छोड़ दूँ इस मतलबी संसार को,
क्या रक्खा है यहाँ जीने में सिर्फ दर्द ही तो मिलते हैं,
पर ये सोंच कर ठिठक जाते हैं मेरे कदम,
अगर कमल भी सोंच ले ऐसे बातों को तो क्या हो,
कमल भी तो कीचड़ में ही खिलते हैं.

जा तो रही थी बारात किसी की, पर मुझे वो मेरी अर्थी लगी.

दिल में उदासी ,
ऐसी छाई कि,
सारा जमाना ही .
हमे उदास लगा,
सूरज आसमा पे,
चढा था पर,
हमे बादलों का ,
समां दिखा,
गुलाब पड़े थे सामने,
पर हमे तो,
वो सिर्फ,
कांटें ही लगे,
बात हंसी कि थी,
सब हँसे,
 हम ऐसे में रो पड़े,
जा तो रही थी,
बारात किसी की,
पर मुझे  वो,
मेरी अर्थी लगी.

कहते हैं समझदार इशारे की बात समझ लेते हैं,

कहते हैं समझदार इशारे की बात समझ लेते हैं,
सपनों में गर मिल जायें मुलाक़ात समझ लेते हैं,
रोता तो आसमां भी है धरा के लिये,
पर लोग इसे बरसात समझ लेते हैं.

मुझे क्यों मिटा रहे हो ?(एक अजन्मी लड़की की मन की व्यथा.)

मुझे क्यों मिटा रहे हो ?(एक अजन्मी लड़की की मन की व्यथा.)
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो?
दुनिया में आने से पहले मेरा निशां मिटा रहे हो,
मेरी भी तमन्ना है दुनिया में आने की,
आपकी तरह दुनिया को आजमाने की,
जब सुनते हो आप कोई नया मेहमां घर आ रहा है,
हो जाते हो बेकाबू ऐसे,बिना पिए ही नशा छा रहा है,
मेरा पता चलते ही ऐसे मुर्झाते हो,जैसे मै नही कोई बोझ आ रहा है,
जब चलता है पता आनेवाला मेहमां है लड़की,
जेबों में आपकी छा जाती है कड़की,
जैसे आपके जिगर का टुकडा नहीं कोई कोढ़ हो,
कह देते हो झट से लड़का होता तो रख लेते,
और जन्म लेने से पहले मुझे मार देते हो,
मानते हो अगर कन्या का जन्म अभिशाप है,
तो जन्म से पहले इसको मिटाना,सबसे बड़ा पाप है,
कन्या जन्म नहीं,हमारा समाज एक अभिशाप है,
ये धारणा आखिर कब तक मन में धरी रहेगी,
सब गुणों से पूर्ण होकर भी बेटी कब तक शून्य रहेगी,
बेटा चाहे औगुन से भरा हो,वो घी का लड्डू कहलाता है,
चड़ा है जो बेअक्ल का पर्दा हमारे समाज पर,
पता नहीं ये कब उतरेगा इस तुलना की कसौटी से,
एक गाड़ी को चलाने के लिए जैसे दो पहिये की जरूरत है,
वैसे ही तो समाज की बेल को बढ़ाने के लिए दोनों ही पूरक हैं,
एक की कमी से समाज चल नहीं पायेगा,
यही हाल रहा तो धीरे धीरे संसार से,
लड़कियों का अस्तित्व ही मिट जाएगा,
समाज की इस बढ़ती बेल को कीट लग जाएगा,
जो वंश बेल की रफ्तार को रोक लगायेगा,
हमारा समाज बढ़ेगा नहीं,पतन के गर्त में गिर जाएगा,
मुझे क्यों मिटा रहे हो?
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो,
दुनिया में आने से पहले,मेरा निशां मिटा रहे हो.

खुद का जख्म छूपाते फिरते गैरों पर नमक लगाते हैं

खुद का जख्म छूपाते फिरते ,
गैरों पर नमक लगाते हैं,
अपनी कोई व्यथा या परेशानी,
सबसे लिए छूपाते है,
गैरों की कोई बात हो  तो ,
चटकारे लिए सुनाते हैं,
खुद का एक दाना भी जख्म का ,
लोगों की निगाहों से बचाते है,
दुसरे के गहरे भी  जख्म तो,
उसपर छुरी चलाते है,
ये ही तो रस्म है दुनिया का,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं,
बड़े यतन से चोट पर,
और प्रहार कर जाते हैं,
कुछ तो ,
खुलेआम ही खंजर चलाते है,
खुली रहें आँखें हमारी ,
और काजल चुराते हैं,
कब चल जाए जुबाने खंजर,
हम भान लगा ना पाते हैं,
समझ पाते हैं जबतक,
तबतक तीर चुभ,
आरपार हो जाते हैं,
कभी,कभी तो ऐसी मक्कारी,
खुद अपने ही कर जाते है,
गैरों की बातों को लोग,
दिल थाम के सुनाते हैं,
जब पड़ जाए यही खुद पे,
तो सौ,सौ रंग दिखाते हैं,
गैरों की कोई बात हो तो,
चटकारे लिए सुनाते हैं,
अपनी कोई व्यथा या परेशानी ,
सबसे लिए छूपाते है,
मरहम की कौन बात करे,
मुट्ठी भरे रखते हैं नमक से,
वक़्त मिलते ही  ,
जख्म पर नमक  डाल जाते हैं,
आंसू कौन यह पर पोंछे,
लोग बस नैन भीगा जाते हैं,
क्या पाते है ,
दूसरे के गिरेबान में हाथ लगाते हैं,
सामनेवाले की ओर,
अंगुली उठाते हैं,
ये सोंच नहीं पाते हैं,
एक अंगुली सामने वाले की,
बाकी तीन तो अपनी कमी दिखाते हैं,
यही तो रस्म है दुनिया का ,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं,
खुद का जख्म छूपाते फिरते ,
गैरों पर नमक लगाते हैं,
दूसरे के गहरे भी जख्म  तो,
उनपर छुरी चलाते हैं,
यही तो रस्म है दुनिया का ,
जो बड़े प्यार से लोग निभाते हैं.

"रजनी " 

मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,

पहली पोस्ट में इसकी कुछ lines छूट गई थी ,
इस पोस्ट पे उसे पूरी दे दे रही हूँ.

मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में मेरे लिए अगाध छिपा अनुराग है,
पर मै तेरे अनुरोध को स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो दीया हूँ जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे रौशनी नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ जो भरी तो हुई नीर से,
पर तेरे प्यास को बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो मुझे आँखों में,
मै वो काजल हूँ जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
सुमन से भरी बाग़ हूँ मै,पर
तेरे संसार को सुगन्धित नहीं कर पाऊँगी,
क्यों लिखना चाहते हो मुझको गीतों में,
मै वो शब्द का जाल हूँ जो,
गीतों का माल नही बन पाऊँगी,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,

भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,

चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
ऐसा दीमक जो धीरे,धीरे लकड़ी को चटकाती है,
भ्रस्टाचारी भी सबको ऐसे ही गर्त में गिराती है,
क्या नेता और क्या समाज सब को लगा इसका आग,
यह एक ऐसी चटनी है जो लग जाए जीभ को एक बार,
खाने को फिर मन करे उसको बारम्बार,
नाम बिके,सम्मान बिके या बिक जाए ईमान,
सबसे बड़ा अपना साधे काम,यही है भ्रस्टाचारी का नाम,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
भ्रस्टाचार बन गया समाज एक अच्छी खासी है,
सच्चाई तो लगती अब इसकी दासी है,
कल्याण के मिले पैसों को अपने जेबों में लगाते हैं,
खर्च किये हजारों तो करोड़ों में दिखातें हैं,
सीधी साधी जनता को बेवकूफ बनाते हैं,
निरीह जन्तु सा पाकर उन्हें चराते हैं,
खुल जाए न पोल उनकी इसी भय से घबराते हैं,
गाहे, बगाहे देख मौके कुछ काम कर दिखाते हैं ,
चारो तरफ छाई हुई भूखमरी और बेगारी है,
भ्रष्ट हो गया समाज छा गयी भ्रस्टाचारी है,
सोये हुए जनता जब तक ना जागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत तबतक ना भागेगी,
भ्रस्टाचारी का भूत समाज से है भगाना,
एक स्वच्छ समाज, स्वच्छ भारत है बनाना.

और जो बिखर जाए उसका कोई वजूद नहीं होता

टूटा हुआ इंसान,
टुकड़ों में जीता तो है,
पर टुकड़ों की तरह,
पर उसे टूटने के बाद,
जोड़ा जाए,
तो वो जी उठता है,
फिर  जोड़ने के बाद तोड़ दो,
तो वो जीता नहीं,
चूर हो जाता है,
इसीलिए कभी किसी,
टुकड़े में जी रहे ,
इंसान को मत जोड़ना,
अगर जोड़ने की जरूरत की भी,
तो उसे फिर चूर मत होने देना,
क्योंकि ,
चूर का मतलब ही होता है,
पूरी तरह से बिखरा हुआ,
और जो बिखर जाए,
उसका कोई वजूद नहीं होता.

तुम हकीकत बन मेरे पास आ जाना

दिल देता है ये ,
आवाज़ तुम्हे,
तुम कभी भी,
मुझसे दूर ना जाना,
तन्हा दिल ,
जब पुकारे तुम्हे,
तुम चुपके से,
मेरी धड़कनों में समाना,
उदासियाँ मेरी ,
सदायें दे जब,
मेरी खुशियों में ,
चार चाँद लगाना,
ख्वाबों में भी,
जब आवाज़ दूँ तुम्हें,
तुम हकीकत बन,
मेरे पास आ जाना.

"रजनी i "

अधूरी तस्वीर का कोई खरीदार नहीं होता

अधूरी तस्वीर का कोई खरीदार नहीं होता,
भर जाएँ रंग तो लग जाते हैं कतार खरीदारों के|
उगता हुआ सूरज सबका सलाम पाता है,
डूब जाए तो भूल जाते है, उसके उपकारों को|
**************************
किसी को पाने की तमन्ना मत करो,
बल्कि अपने को ऐसे सांचे में ढालो कि,
लोग आपको पाने की तमन्ना करने लगें|
****************************

आज कुछ ना कहेंगे

meri ye kavita maine 10 years pahle likhi thi,
aaj aapsab ke beech rakh rahi hun.........
सोंच लिया है मैंने,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,
सोंच लिया है मैंने ,
आज सुनना है तुमसे,
तेरे हर लब्ज़ कों,
जिगर थाम कर सुनेगें,
कुछ खनक होगी बातों में,
कुछ तन्हाई होगी,
कुछ तो उतर जाएगी,
सीधे जज्बातों से दिल में,
जब कभी तन्हा होंगे सुनेगें उन्हें,
सोंचेगें तेरे हर बात को,
कर जायेगी जो तन्हा कोई महफिल,
सोंच लिया है मैंने ,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,
तुम्हारी बातें मन में लिखीं हैं ,
अब तक डायरी कि तरह,
जो गुनगुनाती हूँ ,
खालीपन में शायरी कि तरह,
कभी हंस जाती हूँ,
कभी बोल पड़ती हूँ,
कभी,कभी तेरी बातें ,
ऐसी लगती हैं ,
जैसे घुंघुरू बज उठे हों कानों में,
लगता है कभी उतर जायेंगे,
तेरे बोल खाली पैमानों में,
सोंच लिया है मैंने,
आज कुछ ना कहेंगे,
तुम सुनाओ बस,
आज तुम्हें सुनेगें,

शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

पर दर्द जिगर को पार कर गयी

पत्थर से,
सर,
टकरा कर हम,
पूछते हैं,
ख़ुद से,
बता ,
कहीं चोट तो ,
नहीं लगी ,
लहू का ,
एक कतरा भी ,
नजर नहीं आता,
पर दर्द,
जिगर को ,
पार कर गयी.
"रजनी " 

चाहा था दामन भिंगोने, भिंगोने नहीं दिया

जब जजबात आंसुओं में ,
बह जाएँ तो क्या हो ?

मृगमरीचिका में हम
खो जाये तो क्या हो ?

मरहम लगानेवाले ही,
जख्म दे जाये तो क्या हो ?

बड़ी बेचैनी से करे धरती,
बादल का इंतजार,

वो बिना बरसे ही,
चला जाये तो क्या हो ?

अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है,

जजबात में खोकर कोई,
अपने दामन को भिंगोता है,

सागर भी भरा है पानी से,
फिर भी प्यासा रोता है,

खुद जलनेवाले के तले भी ,
अँधेरा होता है,

अक्सर ऐसा होता है,
हंसनेवाला ही रोता है

कोई आँखों में काटे रातें,
जब सारा जमाना सोता है,

कोई हंस कर मोती खोता है,
कोई रो कर मोती खोता है,

जजबात बह जाये मोती में,
तो मन हल्का होता है,

बता कर क़त्ल करे कोई ,
तो कोई बात नहीं,

अपनी जगह पर,
ये बात भी सही होता है,

पर बूत बना दिया हमें,
मोती खोने नहीं दिया,

चाहा था दामन भिंगोने,
भिंगोने नहीं दिया .

"rajni " 

माँगा तो क्या माँगा

माँगा तो क्या माँगा ,
जो अपने लिए माँगा,
दूसरे के आंसू से,
अपना दामन भींगे,
सच्ची दुआ तो ,
इसे ही कहते हैं|

कहते हैं तमन्ना ना कर उस ख्वाब की जो पूरी न हो सके

कहते हैं तमन्ना ना कर उस ख्वाब की जो पूरी न हो सके,
देखो ना उस नजर को जो तुम्हे देख ना सके,
लेकिन हम कहते हैं कोशिश जरुर करना कुछ पाने की,
क्योंकि सौ ख्वाब देखो तो एक पूरी होती है,
शायद इन सौ को देखते,ज़िन्दगी के हर ख्वाब पूरे हो सके

मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,

मैं तुझे बरसने का ,
आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो ,
खुशियों का संसार,
तुम्हें वो संसार,
नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल ,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में ,
मेरे लिए ,
अगाध छिपा अनुराग है,
पर,
मै तेरे अनुरोध को ,
स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का ,
आधार नही दे पाऊँगी,
मै वो दीया हूँ,
जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे ,
रौशनी नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को,
बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार,
नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ ,
जो भर कर भी ,
नीर से,
पर तेरे प्यास को,
बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो,
मुझे आँखों में,
मै वो काजल हूँ ,
जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी.

"रजनी "