" आज भी वो ख्वाब है,
मेरे पलकों पर,
जो मुद्दत पहले ,
कभी देखा था,
पूरी ना हुई,
बस अब एक,
दूरी रह गयी ,
ख्वाब और,
पलकों के दरमियाँ ."
रविवार, जुलाई 25, 2010
बस अब एक, दूरी रह गयी , ख्वाब और, पलकों के दरमियाँ ."
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 25.7.10 3 comments
Labels: Poems
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