जिससे मेरी हर सुबह हंसी,
वो आफ़ताब है तू .
मेरे सोख से रात का,
महताब है तू.
जिसके खिलने से
दिल का गुलशन महके,
वो गुलाब है तू.
मेरे रूप पे जो छाया,
वो सबाब है तू.
हर पल जो सजते हैं आँखों में,
वो रंगीन ख्वाब है तू.
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प्रीत की , बूंदों को,
ये आँखें तरसी थी कभी.
उसकी अगन से ही जलकर,
ये आँखें बरसी थी कभी.
हर दाहकता को तेरे प्रीत ने,
मिटा दिया.
भर गया अंक मेरा,
सागर सा जहाँ मेरा बना दिया.
"रजनी"
मंगलवार, जनवरी 26, 2010
जिससे मेरी हर सुबह हंसी, वो आफ़ताब है तू
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 26.1.10 0 comments
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