घरों के बंटवारे में रिश्ते सिमट गए,
कल तक घर था अब कमरों में सिमट गए.
भाग दौड़ करते थे सारे घर में कूदाफांदी,
छीन गयी उन मासूम बच्चो की आज़ादी.
दादा,- दादी, चाचा - चाची, रिश्तों का ये भारीपन,
बड़ों के मतभेद में ना पीसो बच्चों का मन .
बंटवारे की शर्त घरों को दीवारों में पाट गयी
दिल से जुड़े रिश्तों को मतलबों में बाँट गयी
खेल खेल में चुन्नू,मुन्नू बिन्नी का व्याह रचाते थे,
वक़्त विदाई आने पर ,एक दूजे को ताब बंधाते थे.
आज वो दिन भी आया बिन्नी हुई परायी ,
उसकी डोली को देने कान्धा, आया ना कोई भाई,
ये कैसी रिश्तों की विदाई,
ये कैसी रिश्तों की विदाई ?
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
कल तक घर था अब कमरों में सिमट गए.
भाग दौड़ करते थे सारे घर में कूदाफांदी,
छीन गयी उन मासूम बच्चो की आज़ादी.
दादा,- दादी, चाचा - चाची, रिश्तों का ये भारीपन,
बड़ों के मतभेद में ना पीसो बच्चों का मन .
बंटवारे की शर्त घरों को दीवारों में पाट गयी
दिल से जुड़े रिश्तों को मतलबों में बाँट गयी
खेल खेल में चुन्नू,मुन्नू बिन्नी का व्याह रचाते थे,
वक़्त विदाई आने पर ,एक दूजे को ताब बंधाते थे.
आज वो दिन भी आया बिन्नी हुई परायी ,
उसकी डोली को देने कान्धा, आया ना कोई भाई,
ये कैसी रिश्तों की विदाई,
ये कैसी रिश्तों की विदाई ?
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"