मेरी ज़िन्दगी की हसीं शाम कर दो
अपनी एक ग़ज़ल मेरे नाम कर दो.
उठते नहीं शर्म-ओ हया से चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.
बहुत फासले हैं दरमियाँ मेरे तुम्हारे
सदा के लिए क़िस्सा तमाम कर दो.
कब तक छुपाये रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल आज चर्चा-ए-आम कर दो.
तग्ज्जुल कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
"रजनी " तुम्हीं यह नेक काम कर दो .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
अपनी एक ग़ज़ल मेरे नाम कर दो.
उठते नहीं शर्म-ओ हया से चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.
बहुत फासले हैं दरमियाँ मेरे तुम्हारे
सदा के लिए क़िस्सा तमाम कर दो.
कब तक छुपाये रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल आज चर्चा-ए-आम कर दो.
तग्ज्जुल कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
"रजनी " तुम्हीं यह नेक काम कर दो .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "