मैं तुझे बरसने का ,
आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो ,
खुशियों का संसार,
तुम्हें वो संसार,
नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल ,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में ,
मेरे लिए ,
अगाध छिपा अनुराग है,
पर,
मै तेरे अनुरोध को ,
स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही ,
जो बेसब्री से करे,
बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का ,
आधार नही दे पाऊँगी,
मै वो दीया हूँ,
जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे ,
रौशनी नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को,
बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार,
नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ ,
जो भर कर भी ,
नीर से,
पर तेरे प्यास को,
बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो,
मुझे आँखों में,
मै वो काजल हूँ ,
जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर ,
खुद को बेकरार इतना,
तुझको ,
मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि ,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल,
कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का,
आधार नही दे पाऊँगी.
"रजनी "
शुक्रवार, नवंबर 27, 2009
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 27.11.09
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