ये कैसा सन्नाटा है ?
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है.
ये कैसा अमृत है ?
जिसकी हर घूंट में हलाहल है.
ये कैसा उदगार है ज्वालामुखी का ?
जिसके फटने से बस संहार ही संहार है.
ये कैसा ख्वाब है ?
जिसे बुनने को बेकल सारा संसार है.
ये प्रीत का सन्नाटा है,
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है.
ये प्रीत अमृत है,पर
इसके हर घूंट में हलाहल है.
ये प्रीत एक ज्वालामुखी है,
जिसके फटने से संहार ही संहार है.
ये प्रीत एक सुहाना ख्वाब है,
जिसे बुनने को बेकल सारा संसार है.
ये प्रीत हर किसी के लिए नहीं आसान है,
किसी को मिल जाये तो वरदान है,
ना मिले तो अभिमर्दी है.
ये प्रीत का सन्नाटा है,
जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है|
सोमवार, नवंबर 30, 2009
ये प्रीत का सन्नाटा है, जिसकी ख़ामोशी में भी कोलाहल है
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4 comments:
bahut aacha likha hai mam..
thanks lucky ji.........
arre Man ab aap kaa blog bhi... very good
thanks ..............
sunil ji.......
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