ऐ सावन जब भी आता तू ,प्यास ज़मीन की बुझ जाती है,
पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है.
तेरे आने से ये मौसम रंगीं, रुत जवां हो जाता है ,
खिल जाती हैं बाग़ की कलियाँ, भवरों के मन मुस्काते हैं.
मेरा गुलशन ऐसे बिखरा , जैसे टूटी डाली हो,
मेरा अंतर ऐसे सूना ,जैसे बाग़ बिन माली हो.
इस विरह से आतप धरती को तो ,दुल्हन कर जाते हो,
पर मेरे नस-नस में दामिनियों के दंश गिराते हो .
ए सावन जब भी आता तू ,प्यास ज़मीन की बुझ जाती है,
पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है.
तेरे आने से ये मौसम रंगीं, रुत जवां हो जाता है ,
खिल जाती हैं बाग़ की कलियाँ, भवरों के मन मुस्काते हैं.
मेरा गुलशन ऐसे बिखरा , जैसे टूटी डाली हो,
मेरा अंतर ऐसे सूना ,जैसे बाग़ बिन माली हो.
इस विरह से आतप धरती को तो ,दुल्हन कर जाते हो,
पर मेरे नस-नस में दामिनियों के दंश गिराते हो .
ए सावन जब भी आता तू ,प्यास ज़मीन की बुझ जाती है,
पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"