जीवन की आपाधापी के ,
उठते हुए बादल से,
अहसास की धरा पर,
उम्मीद की फ़सल खिलती रहे |
घुमड़ते हुए ख्याल ,
कुछ उलझे से सवाल,
कभी बूंद बनकर बरसे ,
कभी ज्योति सी जलती रहे |
जुगनुओं सी भटकाव में,
कुछ धूप में कुछ छाँव में ,
असंख्य अनुभूतियाँ
जीवन में मिलती रहे |
अश्रुपूरित नयन लिए ,
कभी उल्लसित तरंग लिए
एक सम्पूर्ण गगन लिए,
विह्वल ,आकुल चातक से
चांदनी रात मिलती रहे |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "