लड़कियां खिल कर बाबुल के आँगन में,
किसी और का घर महकाती हैं .
जन्म के बंधन को छोड़ कर ,
रस्मों के बंधन को जतन से निभाती हैं.
जिस कंधे ने झूला झूलाया, जिन बाँहों ने गोद उठाया,
उस कंधे को छोड़ किसी और का संबल बन जाती हैं.
बाबुल की लाडली, आँखों का तारा ,
बाबुल से दूर किसी और का सपना बन जाती हैं.
बाबुल के जिगर का टुकड़ा, वो गुड़िया सी छुईमुई,
एक दिन ख़ुद टुकड़ों में बँट कर रह जाती हैं .
सींच कर बाबुल के हाथों , किसी और की हो जाती हैं,
मेहंदी सी पीसकर , किसी के जीवन में रच जाती हैं.
लड़कियां खिल कर बाबुल के आँगन में,
किसी और का घर महकाती हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
किसी और का घर महकाती हैं .
जन्म के बंधन को छोड़ कर ,
रस्मों के बंधन को जतन से निभाती हैं.
जिस कंधे ने झूला झूलाया, जिन बाँहों ने गोद उठाया,
उस कंधे को छोड़ किसी और का संबल बन जाती हैं.
बाबुल की लाडली, आँखों का तारा ,
बाबुल से दूर किसी और का सपना बन जाती हैं.
बाबुल के जिगर का टुकड़ा, वो गुड़िया सी छुईमुई,
एक दिन ख़ुद टुकड़ों में बँट कर रह जाती हैं .
सींच कर बाबुल के हाथों , किसी और की हो जाती हैं,
मेहंदी सी पीसकर , किसी के जीवन में रच जाती हैं.
लड़कियां खिल कर बाबुल के आँगन में,
किसी और का घर महकाती हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
9 comments:
betiya aisi hi hoti hai..........
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
sukriya sanjay ...........
सटीक बात
नारी मन का वर्णन अच्छा किया है आपने अपनी रचनाओं में। मन की उलझन और रोष लगभग हर रचना में दिखता है। पर इतने ब्लॉग......समय लगता है। एक या दो ही ब्लॉग होते तो बेहतर नहीं होता। एक कविता औऱ एक विचारों के प्रवाह के लिए।
बहुत अच्छी कविता है रजनी जी गुसताकी माफ़ पर मेरी नज़र में...
"जिस कंधे ने झूला झूलाया, जिस बाँहों ने गोद उठाया,
उसी कंधे को तोड़ किसी और का संबल बन जाती हैं."
की जगह अगर -
"जिस कंधे ने झूला झूलाया, जिस बाँहों ने गोद उठाया,
उसी कंधे को छोड़ किसी और का संबल बन जाती हैं."
होता तो शायद ज्यादा बढ़िया लगता ....
कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आइये :-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
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aapsabhi ko mera hardik sukriya .........
aapke sujhav shahrsh sweekary hain ,ek baar firse sujhav ke liye dhnyvaad .....
Sarthak prayas ........................
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