हर बात ,
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"