दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)
मैंने सुख दुःख के,
तानों ,बानो से,
एक गुल है बनाया,
सुख को छोड़ ,
मैंने दुःख को ,
अपना बनाया.
मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दुःख को चुना.
जीवन में मिठास की तलाश,
हर किसी को होती है,
जिसको पाने की चाह,
हर किसी को होती है.
मैंने भी,जीवन में,
दर्द के साथ मिठास को पाया,
फिर भी ना जाने क्यों,
मुझे दर्द ही भाया.
बड़े कम समय में दर्द ,
जीना सीखा देता है,
हँसते हुए लोगों को,
रोना सीखा देता है.
हमने सुख के संसार में ,
रहते हुए भी ,
दर्द को महसूस किया,
इसके हर एक कसक को,
अपने अंदर महफूज किया.
दर्द के साथ जुडा हुआ,
सारा जहान है,
दर्द को भी झेल जाना ,
एक इम्तिहान है.
दर्द के साथ मेरा अब तो ,
ऐसा नाता है,
दर्द हर ख़ुशी से पहले,
मेरे चेहरे पर आ जाता है.
दर्द से जुड़ गया ,
एक रिस्ता मेरा खास है,
अब तो दर्द मेरे आगे,
मेरे पीछे, मेरे साथ है.
मैंने एक ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों मैंने,
फूलों को छोड़,
काँटों को चुना.
मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दर्द को चुना.
शुक्रवार, जुलाई 02, 2010
दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.7.10 9 comments
Labels: Poems
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