सिंदूरी सपने नैनों में लिए खड़ी बावरी मुस्काए,
क़तरा-क़तरा सागर सा, लिए स्नेह का गागर ठहरा हो.
जीवन एक संग्राम बना, ये जलता मंज़र थम जाये,
न तोड़ सके कोई भेद ,ऐसा भाईचारा गहरा हो.
न द्वेष रचे, ना ज़ुल्म बसे, हर मन गंगा हो जाये,
सुरभित हो ऐसे संसार, सुमन सा जीवन खिल जाये.
न कांटे चुभें विष वाणों के,न तकरार जगह पाए,
गर आना हो बन कर दस्तक, तो खुशहाली ही आये,
जो चैन अमन हम खो बैठे ,वो वापस अपने घर आये,
कुछ रचा जाये ऐसा इतिहास .जिसे विश्व फिर दुहराए.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
क़तरा-क़तरा सागर सा, लिए स्नेह का गागर ठहरा हो.
जीवन एक संग्राम बना, ये जलता मंज़र थम जाये,
न तोड़ सके कोई भेद ,ऐसा भाईचारा गहरा हो.
न द्वेष रचे, ना ज़ुल्म बसे, हर मन गंगा हो जाये,
सुरभित हो ऐसे संसार, सुमन सा जीवन खिल जाये.
न कांटे चुभें विष वाणों के,न तकरार जगह पाए,
गर आना हो बन कर दस्तक, तो खुशहाली ही आये,
जो चैन अमन हम खो बैठे ,वो वापस अपने घर आये,
कुछ रचा जाये ऐसा इतिहास .जिसे विश्व फिर दुहराए.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "