मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

आज मिलते ही मुंह अपना मोड़ लिया

वो हवाएं भी अब नहीं लाती,
पैगाम आपका,
जो आती थी मेरे घर तक,
लगता है आपने रुख इधर का छोड़ दिया|

हर साँस पर आती थी हिचकियाँ,
अब तो जमाने गुजर गए इन्हें आये,
लगता है आपने मुझे याद करना छोड़ दिया|

आजादी के साथ घूम रहे थे,
मेरे अरमानों के बाराती,
आपके हाथ में पत्थर,
मेरा शीशे का मकान तोड़ दिया|

कहते थे कभी भी न छोड़ेंगे साथ,
और अब तो ख्वाबों में भी आना छोड़ दिया|

पानी से डरनेवाले,
सागर में उतर गए,
आपके हाथों का ले सहारा,
डूबने लगे तो,
हाथ आपने छोड़ दिया|

धुनी रमा कर जोगी सा,
मेरे दरवाजे पर बैठे थे कभी,
आज मिलते ही मुंह अपना मोड़ लिया|

जो होना नहीं था कभी,
वो कर दिखाया आपने,
एक शीशे ने पत्थर को,
बड़ी आसानी से तोड़ दिया|


हर साँस पर आती थी हिचकियाँ,
अब तो जमाने गुजर गए इन्हें आये,
लगता है आपने मुझे याद करना छोड़ दिया|

4 comments:

प्रसून दीक्षित 'अंकुर' ने कहा…

धुनी रमा कर जोगी सा,
मेरे दरवाजे पर बैठे थे कभी,
आज मिलते ही मुंह अपना मोड़ लिया|

जो होना नहीं था कभी,
वो कर दिखाया आपने,
एक शीशे ने पत्थर को,
बड़ी आसानी से तोड़ दिया|


हर साँस पर आती थी हिचकियाँ,
अब तो जमाने गुजर गए इन्हें आये,
लगता है आपने मुझे याद करना छोड़ दिया|

Wah ! Wah! Wah !
Bahut Khoob !
Rajni Mam!
Meri Mammi Ka Naam Bhi "Rajni" Hi Hai!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

thanks prasun ji.............

amrendra "amar" ने कहा…

Mam Bahut hi lajwab likha hai aapne .....thanx.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

thanks 2 u amrendra ji..............