"बादलों की ,
आगोश में जाकर,
चाँद और निखर गया,
मिली जब ,
चांदनी उससे ,
बहुत उलझन में,
पड़ गयी ."
"rajni "
मंगलवार, जुलाई 20, 2010
बादलों की , आगोश में जाकर, चाँद और निखर गया,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.7.10 6 comments
Labels: Poems
हर कोई , बन जायेगा , समंदर यहाँ "
" निगाहें ,
दरिया नहीं बन पायेगी,
जब ,
हर कोई ,
बन जायेगा ,
समंदर यहाँ "
दरिया नहीं बन पायेगी,
जब ,
हर कोई ,
बन जायेगा ,
समंदर यहाँ "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.7.10 2 comments
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