मंगलवार, मई 08, 2012

माँ

 जब भी लिपटती  हूँ ,
 माँ   से  ,
मैं बच्ची हो  जाती हूँ ,
उन्हीं  बचपन की  यादों में ,
मीठी लोरी में खो जाती हूँ ।
जीवन की राहों में, 
धुप   में, छाओं   में ,
बुलंदी की   मचान पर,
उम्र की ढलान पर ,
 एक  मजबूत तना  हूँ मैं।
पर, माँ के आगे 
कमज़ोर लता हो जाती हूँ ।
जब भी निकलती हूँ ,
मैं घर से अकेली 
 संभल  कर जाना,
जल्द आना ,
यही हर बात पर ,
दुहराती है  माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से 
बचाने  को अब भी ,
मुझे ,
 काला  टीका 
लगाती है माँ ।

" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "