जलाने की क्या ख़ूब सजा देता है
चराग़ ही कभी घर जला देता है
नहीं डरते लोग अपने अंजाम से
छल-कपट कितना मज़ा देता है
इंसान की फ़ितरत नहीं ये, मगर
छोटी बातों को भी वो हवा देता है
जिसको देखो कदमों की भूल का
ठोकरों पर इल्ज़ाम लगा देता है
दर्द होता है जब कोई दगा देता है
बहुत होता है जब कोई सगा देता है
"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"
बोकारो थर्मल