मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

एक ख्वाब, एक ख्याल, एक हकीकत हो तुम,

एक ख्वाब, एक ख्याल, 
एक हकीकत हो तुम,
कैसे कहें,कितनी कहें,क्यों ?

मेरी ज़िन्दगी की, 
जरुरत हो तुम.

चल रहे मझधार में,
इस बेमाने संसार में,
 जी रहे हैं हम
गुमसूम,गुमसूम,गुमसूम
मेरी डूबती नैया की,
पतवार हो तुम,
मैं हूँ मझधार में,
मेरी किनार हो तुम.

इस गगन में,
रंगीं चमन में,
इस फिजां में,
हर एहसास में हो तुम.

मेरी यादों में,
मेरी सांसों में,
मेरे जीवन के ,
हर कोण पे ,
बसे इरादे हो तुम.

साथ चले,संग जले,
कुछ अरमान हैं,
दिल में पले,

अपनी अरमानों का ,
एक जाल हो तुम.

तन्हाई में,भीड़ में,हर जगह,
आने वाले ख्याल हो तुम.

जिसे सोंचें वो ख्याल हो तुम,
जिसे गायें वो ग़ज़ल हो तुम,
जिसमे जलें वो अनल हो तुम.

एक अनकही बात हो तुम,
न बुझे वो प्यास हो तुम,
ज़िन्दगी की मिठास हो तुम.

कैसे कहें,कितनी कहें,क्यों ?
मेरी ज़िन्दगी की, 
जरुरत हो तुम.

जो रुके न वो सफ़र हो तुम,
दिल में उठनेवाली लहर हो तुम,
जिसका  कभी ना डूबे रवि,
वो शहर हो तुम,

मेरी यादों में,मेरी सांसों में,
मेरे जीवन के हर कोण पे
बसे इरादे हो तुम.

"rajni"

2 comments:

DP KUKDU KU ने कहा…

nice poem.. :)

Khwaab, khyaal aur hakikat agar wo(tum): to fir tum kya ho?

Jee rahe hai gumshum gumshum!!! : Ye jeena bhi koi jeena hai ..

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M critic Murga :D

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sukriya.........