वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे,
मौसम के रुख ने हमें मोम बना दिया,
हम भी कभी आग हुआ करते थे,
आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे,
कभी हम भी थे रवि के तेज से,
एक झंझावत से गिर गयी पंखुडियां सारी,
बस शूल के ही डाली बन के रह गए,
हम भी कभी गुलाब से भरे गुलशन हुआ करते थे,
विवशता ने हमें सिन्धु सा शांत बना दिया,
हम भी कभी उफनती सरिता सी मादकता में चूर थे,
वो अपने ही क़दमों के निशान हैं,
जो कभी हिरनी सा चौकड़ियाँ भरा करते थे,
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|
रविवार, दिसंबर 06, 2009
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09
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4 comments:
This one is superbbbb .. great poem....
thanks dp ji........
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे,
bahut hi kareeb se jindagi ko bayan kiya hai .....very nice lines ....thanx
thanks u 2 amrendra ji..........
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