मत जला चिराग़ों को
मुझे अँधेरे में रहने की आदत है,खीच ले क़दम धंसने से पहले,
मुझे दलदल में रहने की आदत है,
बन चुका अभिशाप मेरे लिए,
जो तेरे लिए इबादत है,मुझे काँटों से भी निभाने की आदत है.
छेड़ समुंदर की लहरों को,
क्यों तूफान को दावत देते हो,छेड़ के बाम्बी को, विषधर की,
क्यों गरल की चाहत लेते हो,
जो जलकर धुआं - धुआं हो गया,
क्यों उसमें , मिटने को उद्धत होते हो,
मत जला चिराग़ों को ,
मुझे अँधेरे में रहने की आदत है|
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