छोड़ आई हूँ ,
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो, अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
मुझमे असीम धैर्य
और गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें काफी गहराई है।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो, अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
इसे समेट लूँ मै ख़ुद में ।
क्योंकि,मुझमे असीम धैर्य
और गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें काफी गहराई है।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"