स्वागत किया था
मैंने |
दर्द के पहले क़दम का
ख़ुशियों के रूप में,
जब पहली दस्तक
दिया था उसने
तुम्हारे रूप में |
मेरे जीवन में ,
प्रवेश हुआ
जब धीरे धीरे वो
मेरे अंतर्मन में ,
अपना
आधिपत्य जमाने लगा |
जब यक़ीन हो गया उसे
मेरे रग रग में वो
समा चुका है,
फिर धीरे से उसने
अपना रंग दिखा दिया
क्योंकि जब ,
खुशियाँ आती है
सौ रंग चढ़ जाते हैं |
पर जाती है तो
दे जाती है ,बस
विरानियाँ ,बेचैनियाँ
और ,
जीवन भर के लिए
एक ख़ालीपन|
जिसके भराव के लिए
कुछ भी ,
पूरा नहीं मिलता |
"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "