ना कर कस्ती को किनारे पर लाने की बात,
अक्सर जहाँ पानी कम हो,
वही पर कस्ती डूब जाती है,
जिस माझी पर होता है ऐतबार,
वो ही मझधार में छोड़ जाता है|
शुक्रवार, दिसंबर 04, 2009
जिस माझी पर होता है ऐतबार
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 4.12.09 3 comments
Labels: Poems
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