वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे,
मौसम के रुख ने हमें मोम बना दिया,
हम भी कभी आग हुआ करते थे,
आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे,
कभी हम भी थे रवि के तेज से,
एक झंझावत से गिर गयी पंखुडियां सारी,
बस शूल के ही डाली बन के रह गए,
हम भी कभी गुलाब से भरे गुलशन हुआ करते थे,
विवशता ने हमें सिन्धु सा शांत बना दिया,
हम भी कभी उफनती सरिता सी मादकता में चूर थे,
वो अपने ही क़दमों के निशान हैं,
जो कभी हिरनी सा चौकड़ियाँ भरा करते थे,
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|
रविवार, दिसंबर 06, 2009
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 4 comments
मेरे हमसफ़र हो जाए राह आसां
शुकून मिले इस दिल को,
जो तेरी गोद में ,
पनाह मिले,
तपती धूप में,
जलते हम,
तेरे प्यार कि जो ,
छांव मिले,
हो जाए आसरा,
गर दो घड़ी,
जो तेरे कंधो का,
सहारा मिले,
मेरे हमसफ़र,
हो जाए राह आसां,
जो जीवन में हमें,
तेरा साथ मिले.
"rajni"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 0 comments
उन्हें क्या डूबाओगे जो लहरों में रहना जानते हैं
उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं,
उन्हें क्या आजमाओगे ,
जो कसौटी में,
खरा उतरना जानते हैं,
उन्हें क्या पहचान सीखाओगे ,
जो हर धड़कन पहचानते हैं,
रोने वालों को हँसना सीखा दो,
तो रोनेवालों की हंसी ,
कुछ दूआ भी देगी,
भवंर में डूबने वालों को,
दे दो हाथों का सहारा,
बच जायेगी ज़िन्दगी ,
तो एक ज़िन्दगी संवरेगी
उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 0 comments
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