हम डूबकर पलभर ही , इनमे निखर जाते हैं.
कह नहीं पाते अधर किस बात से सकुचाते हैं,
बस देखकर उन्हें हम, मंद मंद मुस्काते हैं.
क्यों रोकते हैं खुशियों को ,ये कैसे अहाते हैं,
न हम तोड़ पाते हैं , न वो तोड़ पाते हैं.
उन्मुक्त हो अरमान भी शिखर चढ़ जाते हैं,
टूट न जाएँ हम ये सोंच, सिहर जाते हैं.
ख़्वाब सजते हैं पलकों पर बिखर जाते हैं,
हम डूबकर पलभर ही, इनमे निखर जाते हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "