"समझ ना पाए वो ,
चाहत हमारी बताने के भी बाद ,
कभी आंसू हटाया था रुखसार से मेरे,
आज डूबने को छोड़ गए ,
भर कर सैलाब."
बुधवार, सितंबर 08, 2010
आज डूबने को छोड़ गए , भर कर सैलाब.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 8.9.10 5 comments
Labels: Poems
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