दीवानगी भी मेरी अब,
हद पार कर गयी है,
मै इसके हर एक हद से,
गुजर रही हूँ,
तेरी एक मुस्कान के लिए,
मै पल,पल मर रही हूँ,
चैन छिन गया है दिल का मेरा,
अब तो उस टूटे हुए,
आईने की तरह बिखर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ,
कैसा सुकून है फिर भी,
इस तराने में,
तू आईना बन गया है,
मेरे रूप का,
तुझे देख के मैं सवंर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ|
शनिवार, दिसंबर 19, 2009
तू आईना बन गया है, मेरे रूप का,
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5 comments:
tu aaina ban gaya hai mere roop ka
tuje dekh ke sanvar rahi hu
bahaut hi touchy lines hai .....aapki kai saari poem maine padhi hain really awsome
aap ki kavita bahut acchi hai per ussay kahi jyada jo aap tital ( sirshak) gajab ka rahta hai
thanks vikas ji..........kavita ko saraha aapne....
tarak ji thanks u 2.......aap sab ka saath aur sarahna manobal ko aur badhata hai likhne ke liye.......
Yes this one sounds good....
Regards,
Siddharth
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