बिन खेले ही,
जीत कर ,
ले गए वो,
हमसे,
मुहब्बत,
की बाज़ी,
अब तक ,
हम ,
लगाये बैठे हैं,अपना ,
सब कुछ ,
दांव पर.
"रजनी"
बुधवार, दिसंबर 09, 2009
अपना सबकुछ लगाये बैठे हैं दाव पर
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
बिन खेले ही,
जीत कर ,
ले गए वो,
हमसे,
मुहब्बत,
की बाज़ी,
अब तक ,
हम ,
लगाये बैठे हैं,अपना ,
सब कुछ ,
दांव पर.
"रजनी"
2 comments:
you are right
sukriya anamika ji.............
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