गुलजार है गुलशन मेरा आज भी तसव्वुर में ,
हर जर्रे में तू है ये अहसास तो है ,
उन कहकहों का क्या करूँ ?
जो याद आ कर आज दिल को जलाती हैं ".
गुरुवार, अगस्त 26, 2010
हर जर्रे में तू है ये अहसास तो है
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 26.8.10 9 comments
Labels: Poems
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