कभी
जलते चराग के लौ को बना कर अपना  साथी,
हमने दास्तान सुना दी गम -ए- ज़िन्दगी की |
कभी हवा के झोंके संग "रजनी" उड़ा दिए ,
जितने भी मिले दस्तूर दुनिया के चलन से |
हमने दास्तान सुना दी गम -ए- ज़िन्दगी की |
कभी हवा के झोंके संग "रजनी" उड़ा दिए ,
जितने भी मिले दस्तूर दुनिया के चलन से |
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आज    तो    दर्द     से     मुलाक़ात   
करने     दीजिये,
कबतक मेरे दर से वो खाली हाथ जाये ?
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कबतक मेरे दर से वो खाली हाथ जाये ?
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एक     दरिया   
ख्वाब  में    
आकर    यूँ   कहने लगा ,
औरों की तरह तू मुझमें हाथ धोता क्यों नहीं "
औरों की तरह तू मुझमें हाथ धोता क्यों नहीं "
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कुछ   लोग    तुकबंदियों    को    ग़ज़ल      कहते    
हैं,
जैसे ग़रीब झोपड़े को महल कहते हैं |
जमाने में किसी काम की आगाज़ को ,
कुछ लोग , आरम्भ, कुछ पहल कहते हैं |
जैसे ग़रीब झोपड़े को महल कहते हैं |
जमाने में किसी काम की आगाज़ को ,
कुछ लोग , आरम्भ, कुछ पहल कहते हैं |
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ग़मों   को   पी     जाईये,     खुशियों     
को    बाँटिये,
फूलों से राह सजाईये , काँटों को छांटिए |
हमदर्दी से दिल मिलाईये, दुश्मनी को पाटिये ,
अमन का पैगाम "रजनी" सरहदों में बाँटिये |
फूलों से राह सजाईये , काँटों को छांटिए |
हमदर्दी से दिल मिलाईये, दुश्मनी को पाटिये ,
अमन का पैगाम "रजनी" सरहदों में बाँटिये |
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सागर   सा उन्मादी   न हो , बस  दरिया   सा बहता  चल,
सहरा के अनल सा न हो , बस समां सा जलता चल |
सहरा के अनल सा न हो , बस समां सा जलता चल |
" सियहबख्ती     है                      पैवस्ते      -जबीं , 
एक मिटे तो दूसरी उभर आती है "
एक मिटे तो दूसरी उभर आती है "
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रजनी नैय्यर मल्होत्रा 
 
