बिन पिए ही, मदहोश बना डाला ,
उनकी नशीली आँखों ने,
देखो क्या हाल हमारा है,
डूब के उनकी आँखों में,
सोंच इस मयकदे में आया,
ज़िन्दगी मिल जाएगी,
हमें क्या मालूम था,
डूब मरने को ,
ये निगाहें दरिया मिल जाएगी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
गुरुवार, जुलाई 15, 2010
बिन पिए ही, मदहोश बना डाला , उनकी नशीली आँखों ने,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 15.7.10 5 comments
Labels: shayari
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