बुधवार, मई 26, 2010
शब भर जलकर भी, मेरा सवेरा नहीं
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 26.5.10 4 comments Links to this post
Labels: Poems
सोमवार, मई 24, 2010
ये बंदिशें भी कैसी हैं
"ये बंदिशें भी कैसी हैं ,
कभी जुड़तीं हैं,
रस्मों के नाम से,
तो कभी ,
बगावत से टूट जाती हैं,
ये एक ऐसी माला है,
जिसके मनके की डोरी ,
खुद ,
गुन्धनेवाले के हाथों ,
टूट जाती है."
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 24.5.10 13 comments Links to this post
Labels: Poems
मंगलवार, मई 18, 2010
पत्थर समझता रहा
पत्थर समझता रहा मुझे,
आजतक शायद ,
तभी तो,
मेरे टूटने पर,
छू कर देखता रहा.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 18.5.10 10 comments Links to this post
Labels: Poems
सोमवार, मई 10, 2010
फिर कैसे हँसकर, मिलन हो तुझसे
"ज़िन्दगी ,
तुझे,
मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फिर कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "
Rajni Nayyar Malhotra.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 10.5.10 13 comments Links to this post
Labels: shayari
शुक्रवार, मई 07, 2010
माँ का आँचल,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 7.5.10 8 comments Links to this post
Labels: Poems
मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया
"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में नहीं होता,
मैंने तो लकीरों पर,
भरोसा करना छोड़ दिया ."
" रजनी "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 7.5.10 8 comments Links to this post
Labels: Poems
गुरुवार, मई 06, 2010
हम जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रह जाते हैं,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.5.10 9 comments Links to this post
बुधवार, मई 05, 2010
तू बन जमीं किसी के वास्ते
चलने की कर तू शुरू ,
मंजिल की तलाश में,
राह का क्या है ,
वो खुद ही बन जायेगा,
मानती हूँ,
ठोकर भी ,
आते हैं राह में,
तू बन जमीं ,
किसी के वास्ते ,
कोई तेरा,
आसमां बन जायेगा.
"रजनी "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 9 comments Links to this post
Labels: Poems
अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.
देखते ही उसे मेरे जिस्म में जान आ गया ,
मेरे मदावा -ए-दर्द -ए-दिल का सामान आ गया.
बाद -ए-सहर जैसी लगती थी जुदाई की बात
अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.
बहुत लिए उल्फ़त में इम्तिहान हम तेरे,
अब तो अपनी चाहत का इम्तिहान आ गया.
तन्हाई क्या होती है खबर नहीं थी दिल को,
ज़िन्दगी के इस मोड़ पर ,जैसे श्मशान आ गया.
सीने में जलन आँखों में अश्कों का सैलाब "रजनी"
जानेवाली थी जान , कि दिल का मेहमान आ गया.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 2 comments Links to this post
Labels: Gazals
भर दो जाम से पैमाना मेरा
इतना तो पी लेने दो,
अब न जाने दो,
भर जाने दो,
ज़मीं पर उतर जाने दो,
इतना तो पी लेने दो,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 11 comments Links to this post
Labels: Poems
मंगलवार, मई 04, 2010
रिश्ते बोलते हैं
रिश्ता एक ऐसी ईमारत है जो विश्वास की बुनियाद पर टिका है,कोई भी मंदिर या मस्जिद एक बार टूटकर दुबारा खड़ी की जा सकती है, पर रिश्ता की ईमारत विश्वास की नीव पर है इस विश्वास रूपी नीव के टूटने पर रिश्तों के महल पल में टूटकर बिखर जाते हैं, चूर हो जाते हैं,जीवन में हम अनेक रिश्तों से बंधें हैं,जिसमे कई रिश्तों को हम ता उम्र निभाने की सोंचते हैं बिना किसी कड़वाहट के,और उस रिश्ते को निभाने में कोई ऐसा मुकाम आ जाये जो रिश्ते को तार,तार कर रख दे तो जीवन का सफ़र बिल्कुल नीरस लगता है, टूट जाता है जीवन का सपना, हम जिस पर विश्वास कर अपने जीवन की डोर उसके हाथों में सौंप दें और विश्वास करनेवाला विश्वास तोड़ता नज़र आये, तो रिश्ते की कोई अहमियत नहीं रह जाती, अगर आप विश्वास करते हों तो विश्वास को सदा बनाये रखें, क्योंकि विश्वास की बुनियाद पर ही रिश्तों के महल टिके हैं.........जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा विश्वास, और जब ये गहरे से विश्वास अचानक से टूटते हैं तो टुकड़े ही नहीं रिश्ते चूर हो जाते हैं, रिश्तों की गरिमा बनाये रखने के लिए अपने साथ जुड़े लोगों परहमें विश्वास बनाये रखना चाहिए और विश्वास को टूटने नहीं देना चाहिए........................................
रिश्ते
कांच के बने होते हैं रिश्ते ,
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 4.5.10 15 comments Links to this post
Labels: Poems
रविवार, मई 02, 2010
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.5.10 9 comments Links to this post
मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
ग़रीबी मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
क़र्ज़ को कांधे पर लादे डोळ रहा हूँ |
पसीने से तर -ब -तर बीत रहा है दिन,
रात, पेट भरने को नमक- पानी घोल रहा हूँ |
बुनियाद रखता हूँ सपनों का हर बार,
टूटे सपनों के ज़ख्म तौल रहा हूँ |
मज़दूरी का बोनस बस सपना है,
सपनों से ही सारे अरमान मोल रहा हूँ|
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.5.10 8 comments Links to this post
Labels: Gazals