दर्द ऐसा है जो ,
नज़र न आये,
और पीड़ा को ,
सहा भी न जाये,
नैन और लब ,
मूक बन गए,
दोनों ही,
एहसास को ,
कौन जता पाये,
अंतर करना ,
मुश्किल है,
चोट मिले हैं,
उनसे,
या ज़ख्मों पे,
मरहम लगाये हैं.
"रजनी"
सोमवार, जनवरी 25, 2010
, चोट मिले हैं, उनसे, या ज़ख्मों पे, मरहम लगाये हैं.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 25.1.10 2 comments
Labels: Poems
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