"कुछ इस तरह से,
टूटा,
वो आसमां से,
तारा,
जो टूट कर भी,
मुझे,
जोड़ता गया."
जितनी भी,
निराशा की
डोर ,
बंधी थी
मेरे,
मन में,
उस,
डोर की
कड़ी,
को वो,
तोड़ता गया.
शुक्रवार, जून 25, 2010
जो टूट कर भी, मुझे, जोड़ता गया
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 25.6.10 3 comments
Labels: Poems
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