ये रचना हर संघर्षरत इन्सान के लिए.................
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं,
मैं दूर पथ की पथिक हूँ,
भटकन में पथ ना खो जाऊं,
कदम चलते चलते थकने लगे,
गहरी नींद में न सो जाऊं,
मुझे सोना नहीं,कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,
विजय का बिगुल बज जाएगा,
असंभव भी संभव हो जायेगा,
तन थक जाए,पर मन थक ना पायेगा,
तब हार भी बनेगी जीत की पताका,
भरे होंगे राह मुश्किल से,
पर अडिग रहना होगा अपने प्रण से,
निराशा कभी हाथ आएगी,
कभी हर्ष मन को महकाएगी,
रुकते रुकते से लगेंगे कदम,
कभी खुद आगे बढ जायेगे,
मुझे सोना नहीं कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,
मै क्या हूँ मेरी पहचान बता देना,
सोने लगूं तो जगा देना,
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं|
सोमवार, दिसंबर 07, 2009
आँखें नींद से बोझिल हैं, देखो कहीं मै ना सो जाऊं
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 7.12.09 2 comments Links to this post
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