बहुत रंग हैं जीवन के, जिसमे ग़म का रंग गहरा है
खुशियों के सांचों पर तो, ग़मों का ही पहरा है
ये मदमस्त समीर तू छेड़ कोई तराना
जिसमे न बचे दुहराने को कोई अफ़साना
तेरे संग हम भी चलो वहां तक चल जायें
कोई भी ग़म मुझे जहाँ का न रुलाये सताये
ख़ुद ही हमने ख़ुद को इतने ज़ख्म लगाये
अब तो असह्य है ये पीड़ा जो अब सही न जाये
न जाने ये कैसी पीड़ा है जो कभी दब जाती है
कभी- कभी मन के अग्न को और बढ़ाती है
क्यों खुशियों के साथ ग़मों का भी समावेश है ?
क्यों हर ज़िंदगी में कुछ- कुछ इसका भी प्रवेश है ?
बहुत रंग हैं जीवन के जिसमे ग़म का रंग गहरा है,
खुशियों के सांचों पर तो ग़मों का ही पहरा है
किसकी अब बात हो, करे किस पर यकीं ज़माना,
अपने बेगाने सभी दे देते हैं ग़म का नज़राना
ये ग़म हर ज़ख्म पर मरहम लगाता है
कुछ पल करता चोट उसी से जीना सिखाता है
बहुत रंग हैं जीवन के, जिसमे ग़म का रंग गहरा है
ख़ुशियों के सांचे पर तो ग़मों का ही पहरा है
ग़म से भागते हैं इससे ही जीवन रुपहला है
बहुत रंग हैं जीवन के जिसमे गम का रंग गहरा है