दे-दे के वास्ता सीता
का हर
बार
अपनी तमन्नाओं को लोग सुलाते रहे
दहलीज़ से निकलकर ना छोड़ी लाज
दायरे में बंधे आते - जाते रहे
लांघते रहे खीची लक्ष्मण रेखा
कुछ सीखते रहे कुछ भुलाते
रहे
तम्मनाएं फैलाती रहीं अपना आकाश
शिकंजे दूर पँख फड़फड़ाते
रहे
संस्कारों के बांध कर पायल
अपनी आज़ादी के गीत गाते रहे
रजनी मल्होत्रा नैय्यर