रविवार, दिसंबर 26, 2010

ख़्वाब सजते हैं पलकों पर , बिखर जाते हैं

ख़्वाब  सजते हैं   पलकों पर , बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही ,  इनमे निखर जाते हैं.

कह नहीं पाते अधर किस बात से सकुचाते हैं,
बस देखकर उन्हें हम, मंद मंद मुस्काते    हैं.

क्यों रोकते हैं खुशियों को ,ये कैसे अहाते हैं,
न    हम   तोड़ पाते हैं , न वो  तोड़ पाते  हैं.

उन्मुक्त हो अरमान भी शिखर चढ़ जाते हैं,
 टूट न  जाएँ  हम   ये सोंच,  सिहर  जाते हैं.

ख़्वाब   सजते हैं पलकों पर  बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही, इनमे निखर जाते हैं.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, दिसंबर 14, 2010

रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक

रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक,
जिनपर जिगर ये निसार होता है.

वो छोड़ जाता है हर हाल में साथ,
जो सीरत से ही फरेबी फनकार होता है. 

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

गुरुवार, नवंबर 18, 2010

क्योंकि जानती हूँ उसमे काफी गहराई है

छोड़ आई हूँ ,
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो,  अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
 इसे समेट लूँ  मै  ख़ुद में ।
क्योंकि,
मुझमे असीम धैर्य
और  गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें  काफी गहराई है।

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

शुक्रवार, अक्तूबर 29, 2010

ज़िन्दगी के सफ़र के सिलसिले तय कर लेते हैं

"एक जन्म भी नहीं निभा पाते लोग वफादारी के साथ,
यूँ ही सात जन्मों के बंधन का सौदा कर लेते हैं.

राहें जुदा सही ,मंजिल साथ मिले ना मिले ,
ज़िन्दगी के सफ़र के सिलसिले तय कर लेते हैं ."

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

सोमवार, अक्तूबर 25, 2010

मेहंदी ने तय कर दी, तेरे प्रीत का रंग कितना गहरा है

करवा चौथ  पर ................

" मेहंदी ने तय कर दी, तेरे प्रीत का रंग कितना गहरा है,
आज मेरी निगाहें बार बार, हथेली पर टिक जाती है. "

हो जाता है इस बात का यकीं देखकर ,
हर सुहागन क्यों मेहंदी के रंग पर इतराती हैं ??

 *************************************

अमर सुहाग का मिले आभा ,मेरे चेहरे के नूर को,
कभी भी ना चाँद मेरा ,मेरे फलक से दूर हो.

एक दिन इंतजार होता है, करवा चौथ के चाँद का ,
पर मेरे चाँद का मुझे , हर दिन इंतज़ार रहता है".

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

क्या फर्क मुझमे और जमाने में

क्या फर्क मुझमे और जमाने में ,
मैंने भी ना छोड़ा कसर कोई,
अपने बदले रंग दिखाने में,
जिसने मुझे पार लगाया,
डुबो दिया उसे ही,पा कर किनारा ,
ख़ुद को भंवर से बचाने में".

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

बुधवार, अक्तूबर 13, 2010

नहीं सीख पाया मन मेरा छलावा

"नहीं सीख पाया मन मेरा  छलावा,
जो लगाती मै भी मुखौटा ,
मुझ पर भी चढ़ जाते रंग जमाने के.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"

गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010

नवरात्री में नवदुर्गा से मन की कामना ये है ...

आपसभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं...........
नवरात्री में नवदुर्गा से मन की कामना ये है .........

नवरातों के नव दिनों में मांगूँ झोली पसार,
हर प्राणी में हो जाये माँ स्नेह का संचार.

फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार,
अब  रूप बना ले फिर काली का दुष्टों को संहार.

ये विनती श्रद्धा से झोली पसार,
ये विनती श्रद्धा से झोली पसार.

छल और कपट भर गए मन में,झूठ बना व्यापार,
फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार.

पुण्य जाने कहाँ खो गया,हुई  पाप की जय जयकार.
भर गया पाप का घट फिर से,बढ़ गया अत्याचार.

 फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार,
अब  रूप बना ले फिर काली का दुष्टों को संहार.

नवरातों के नव दिनों में मांगूँ झोली पसार,
हर प्राणी में हो जाये माँ स्नेह का संचार.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर".

बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

बुझने लगते हैं दीये हौसलों के, जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है

बुझने  लगते  हैं दीये  हौसलों   के,
जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है |

डगमगाते हैं हम राहों  में जीवन  के,
बुद्धि    नाकाम   हो   हाथ मलती  है |

जो   ना   हारें   नाकामी से  डर  के,
 तक़दीर सदा  संग उनके चलती है |

चीर   जाते हैं   जो  सीना  लहरों के,
उनसे  दुनिया  मिलने  में जलती  है |

क्यों  कमजोर  हों आगे   वक़्त   के,
ज़िन्दगी ऐसे ही करवटे  बदलती  है|

बुझने   लगते हैं   दीये   हौसलों   के,
जब   बुरे वक़्त की   आंधी चलती है|

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

मंगलवार, अक्तूबर 05, 2010

जब , खुशियाँ आती है, तो सौ रंग चढ़ जाते हैं

बहुत ही उत्कंठित होकर
स्वागत किया था
मैंने |
दर्द के पहले क़दम  का
ख़ुशियों  के रूप में,
जब पहली दस्तक
दिया था उसने
तुम्हारे रूप में |
मेरे  जीवन में ,
प्रवेश हुआ
जब धीरे धीरे वो 
मेरे अंतर्मन में ,
अपना
आधिपत्य जमाने  लगा |
जब  यक़ीन  हो गया उसे
मेरे रग रग में वो
समा चुका है,
फिर धीरे से उसने
अपना रंग दिखा दिया
क्योंकि जब ,
खुशियाँ आती है
 सौ रंग चढ़ जाते हैं |
पर जाती है तो
दे जाती है ,बस
विरानियाँ ,बेचैनियाँ
और ,
जीवन भर के लिए
एक ख़ालीपन|
जिसके भराव के लिए
कुछ भी ,
पूरा नहीं मिलता | 

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

जानते हैं हम तन्हा हो जायेंगे

हाथ रख कर वो दुखते  रगों में मेरी,
बातों के तीर जिगर में चुभा देते हैं,
जानते हैं हम तन्हा हो जायेंगे,
क्यों गिन कर रुखसती के दिन बता देते हैं.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

सोमवार, अक्तूबर 04, 2010

इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं

इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं,
वहां आसानी से जज्बों के मकान बह जाते हैं.

लाख छल से लोग अपनी बात में भारी हों,
एक दिन तो सच के आगे खामोश रह जाते हैं.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा".

शुक्रवार, अक्तूबर 01, 2010

ये सोने की चिड़िया चहकेगी कैसे

ये     सोने    की    चिड़िया   चहकेगी    कैसे,
हर   डाल पर    शिकारियों    ने तीर   साधे हैं|

क्या    करेंगे  वो सन्तान का     कर्तव्य   पूरा,
जिन्होंने  माँ को आपस में बांटे आधे -आधे हैं |  

झेलती   ग़रीबी        और   लाचारी  के    मारे ,
आधी   जनता लोमड़ी, आधी   सीधे-   साधे हैं |

सफेदी   में   छूपे   हैं    नक़ाब      कालेपन   के,
हर      वादे   पर  चढ़े  एक   झूठे       वादे    हैं |

आज़ादी     की    सांसे    लग   रही  भारी इन्हें,
फिर    से    ज़ंजीरों     में जकड़ने   के   इरादे  हैं | 

ये    सोने    की     चिड़िया      चहकेगी    कैसे,
हर     डाल पर    शिकारियों  ने   तीर   साधे  हैं|

"रजनी  मल्होत्रा नैय्यर ".

नमन आपको

जिन्हें कहा गया गुदडी का लाल आज उनका भी पावन जन्मदिन है  (लाल बहादुर शास्त्री)आज गाँधी जयंती है
मोहनदास करमचंद गाँधी, महात्मा गाँधी, बापू, शान्ति और अहिंसा के प्रतीक, हमारे राष्ट्रपिता का जन्म आज के ही दिन 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ|
 हमने  जो आज़ादी की हवा को महसूस किया है अपने सांसो में, तो वो देन उन्ही महापुरुषों की है जिन्होंने हमें ये आज़ादी दिलाने में कितने इम्तिहान दिए ज़िन्दगी के हर सुख चैन को लूटा कर . उनसे मिली इस आज़ादी की सौगात को हमें प्रेम भाईचारे ,और एकता से निभाना चाइए ,पर आज तो देश की जो हालत होती जा रही ऐसा लगता है जल्द ही फिर कोई गुलामी की ज़ंजीर न जकड ले हमें.........क्योंकि जिस सूत्र में हमें बंधे रहने का मूल मंत्र दिया गया था उसे तो कबका भूल चुके हैं और आज अपनी ही हित में सब लग गए हैं पहले अपनी रोटी सीके बाद में कुछ हो .....देश का, समाज का क्या होगा इससे .........जब बांधनेवाली  डोरी ही टुकड़े में बाँटने का प्रेरणा दे ,तो कैसे उस डोरी से बंधे रहने का उम्मीद की जाये .............हमें आपसी मतभेद, जाति ,पाती ,धर्म, मजहब सब भूलकर एकता और सही मार्ग को अपनाना होगा ...........तभी पाए गए आज़ादी के मूल्य को चूका पाएंगे उन महापुरुषों  को .जिन्होंने आत्म बलिदान देकर हमें ये सुनहरा भविष्य दिया ..........गाँधी जी ने सारी जीवन बस २ धोती में गुजार दिया ,क्या आज वो संयम  नज़र आता है किसी भी राष्ट्र  के कर्णधार में ,जो बापू में थी. आज समाज को नए दिशा देने की जरूरत है...........तभी हमारा आनेवाला कल फिर किसी बेड़ियों के बंधन से मुक्त रहेगा.........बापू अपने कर्मो से ही आज विश्व में जाने और माने जाते हैं आइये हम भी कुछ ऐसा करें जिससे युगों युगों तक सत्कर्म के रूप में याद रखे जाएँ लोगो के दिल में ...........जय हिंद , जय बापू की ........

"रघुपति राघव राजा राम, पतित पवन सीता राम ,
भज प्यारे तु सीताराम इश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान".
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जिन्हें कहा गया गुदडी का लाल आज उनका भी पावन जन्मदिन है  (लाल बहादुर शास्त्री)लालबहादुर शास्त्री , जिनका जन्म २ अक्टूबर १९०४  में एक गरीब परिवार में ,मुग़ल सराई  में हुआ .कर दिया अपने राष्ट्र को समर्पित अपना सारा जीवन , और हमें आज की ये आज़ादी भरी ज़िन्दगी देने को ख़ुद न्योछावर कर दिया देशप्रेम और सच्चाई के लिए ये महापुरुष लोग हँसते हँसते बलिदान  हो गए .और दे दी हमें अपने लगाये हुए गुलशन का सारा बहार ये कह कर की अबसे इस चमन के तुम सब ही रखवाले हो..हमने उनके द्वारा लगाये चमन को अपने ही हाथों उजाड़ने में लगे हैं.....
इन दोनों महापुरुषों को हमारा श्रधा भरा नमन जिनकी  आज पावन  जन्मदिवस है ...


"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"

गुरुवार, सितंबर 30, 2010

आह अभी तू यूँ दस्तक ना दे

"आह अभी तू यूँ दस्तक ना दे,
दर्द अभी भरा नहीं,
छलका नहीं गम के प्यालों से,
जब वो बिखर जाये पलकों से,
आ जाना तब मेरे रुखसारों पे."

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर."

आज का कोर्ट का फैसला जो भी हो हम एक हैं हिन्दुस्तानी .

"घर फूटेगा तो गंवार लूटेगा,देश टूटेगा तो गद्दार लूटेगा."
आज का कोर्ट का फैसला जो भी हो हम एक हैं हिन्दुस्तानी .जाति पाति में ना बाँट कर धर्म मजहब में ना बाँट कर ,एकता के सूत्र में बंध कर देखें .हम कमजोर हैं जब लड़ते हैं ,ताकतवर हैं जब एक  हैं आज फिर इम्तिहान की बारी है अपने बंधुत्व को बनाकर रखना है हमें, ऐसा ना हो की फिर हमारी एक भूल किसी फिरंगी को फायदा उठाने का मौका दे दे. ऐसे भी भारतीय एकता को तोड़ने में दुश्मन सदा लगे रहे . पर कामयाब ना हो सके,हम हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ना होकर माँ भारती के संतान हैं ,और किसी भी बात को शांति से हल करना ही बुद्धिमानी है .और वो वक़्त आ गया है जब हमें अपनी एकता को बना कर रखना है शांति बना कर रखना है..........
बस इस बात को हर भारतीय याद रख ले.............
" घर फूटेगा तो गंवार लूटेगा,
देश टूटेगा तो गद्दार लूटेगा."

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

रविवार, सितंबर 19, 2010

जरा अँधेरा होने से रात नहीं होती

जरा अँधेरा होने से रात नहीं होती,
अश्कों के बहने से बरसात नहीं होती.

दीपक के बुझ जाने से,
ज्योति गरिमा नहीं खोती.

दीया खुद जलकर,
औरों को रौशनी देता है.

खुद तो जलता रहकर ,
अन्धकार हमारा लेता है.

ये देता सीख हमें,
अच्छाई की राह पर चलना.

दीया की तरह  ही जलकर हम भी ,
औरों को रौशनी दे पाए.

कुछ करें ऐसा जिससे ,
जीवन सफल ये कहलाये.

छोटी सी ये दीया की बाती,
पाती हमें ये देती है.

बदल जाता जहाँ ये सारा,
हम भी हर लेते किसी के गम.

पर ये बात अब कहाँ रह गयी,
मतलबी दुनियाँ में कहाँ ये दम.

हम अपने अंदर ही इतने हो गए हैं गुम ,
कौन है अपना कौन पराया  मालूम नहीं .

खुद को लगी बनाने में ये दुनिया,
किसी की किसी को खबर नहीं,

दो वक़्त की रोटी कपड़ा में,
 अब तो किसी को सबर नहीं.

जल जायेगा जहाँ ये सारा,
सारी दुनिया डूबेगी.

सदी का अंत लगता है आ गया,
गहराई में डूबोगे तो ,
पता चले हर बात की,

रंग बदलते फितरत सारे,
पता चले ना दिन रात की.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

गुरुवार, सितंबर 16, 2010

पाना आसान नहीं , मंजिल की राह,

"ख़्वाब सजते हैं,
पलकों पर,
आसानी के साथ,
साकार करने में ,
मुद्दत भी लग जाते हैं,
पाना आसान नहीं ,
मंजिल की राह,
पाने में मंजिल,
पैर को ,
छाले भी पड़ जाते हैं."

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

मंगलवार, सितंबर 14, 2010

जो एक हैं , उनमे कैसी दूरी

लौट आने को,
क्यों कहते हो ?
उन ख़्वाबों  को,
कल तक जो
तुम्हारे थे
आज वो  मेरे हैं |
ऐसा नहीं,
कि जो ख़्वाब  
कल तक
तुम्हारे पलकों पर सजते थे
रूठ गए तुमसे |
सच तो ये है 
अब वो
हमदोनों के हो गए हैं |
और जो एक हैं
उनमें  कैसी दूरी
 कैसा  बंटवारा ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

सोमवार, सितंबर 13, 2010

वो भी तड़पा होगा उसी तरह खुद को बदलने में

 "कहते हैं लोग महबूब सनम को,
बदल गयी तुम्हारी नज़रे,
पर ये समझ नहीं पाते,
वो भी तड़पा होगा उसी तरह ,
खुद को बदलने में,
जैसे आत्मा तड़पती है,
तन से निकलने में."

-"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

बुधवार, सितंबर 08, 2010

आज डूबने को छोड़ गए , भर कर सैलाब.

"समझ ना पाए वो ,
चाहत हमारी बताने के भी बाद ,
कभी आंसू हटाया था रुखसार से मेरे,
आज डूबने को छोड़ गए ,
भर कर सैलाब."

मंगलवार, सितंबर 07, 2010

आज तब्बसुम लबों पे खिला ना सके


"सजदा किया है मन से , ख़ुदा   की  तरह ,
तुझे    मंदिर - मस्जिद  में  बिठा  न  सके.

मन   में    तू  बसा    है  ख़ुदा  की  तरह ,
 चाह कर   भी तुझे,  बाहर  ला   न सके.

फूलों       सा  सहेजा    है   ज़ख्मों     को,
उनके    रिसते     लहू     दिखा   न   सके.

बहलते   रहे    हम  भूलावे     में     मन  के,
 हक़ीक़त    से   खुद  को   बहला  न   सके.

दूर      होकर   भी    हम    कहाँ    दूर     हैं,
पास   आकर    भी      पास    आ   न   सके.

 निगाह      भर   के     देखा    उसने     हमें,
 पर  ज़रा   सा    भी  हम    मुस्कुरा  न  सके.

हमें      शगुफ़्ता          कहा      था       कभी ,
आज   तब्बसुम    लबों    पे    खिला   न  सके.

आरज़ू    थी     खियाबां-य- दिल    सजाने  की ,
ज़दा   से उजड़ा    सज़र फिर     लगा न    सके.

पूछते    हैं   कहनेवाले      ज़र्द      रंग    क्यों ?
मुन्तसिर   से     हैं    हम,     बता     न     सके.

ला-उबाली    सा       रहना    देखा    सभी     ने,
जिगर     में      रतूबत     है    बता    न     सके.

दौर-ए -  अय्याम      बदलती       रही      करवटें ,
शब् -ए- फ़ुरक़त में  लिखी  ग़ज़ल   सुना    न सके.

सोज़  -ए- दरूँ  कर देती     है  नीमजां     लोगों  को,
हम      मह्जूरियां    में   भी  तुम्हें   भूला   न   सके.

सजदा    किया    है  मन     से    ख़ुदा   की    तरह ,
तुझे      मंदिर  - मस्जिद   में    बिठा      न     सके.

गुरुवार, अगस्त 26, 2010

हर जर्रे में तू है ये अहसास तो है

गुलजार है गुलशन मेरा आज भी तसव्वुर में ,
हर जर्रे में तू है ये अहसास तो है ,
उन कहकहों का क्या करूँ  ?
जो याद आ कर आज दिल को जलाती हैं ".

शनिवार, अगस्त 21, 2010

बाबुल की लाडली आँखों का तारा

लड़कियां       खिल   कर    बाबुल     के   आँगन में,
किसी        और        का       घर       महकाती   हैं .


जन्म        के      बंधन        को         छोड़      कर ,
रस्मों    के     बंधन  को  जतन     से    निभाती    हैं.

जिस  कंधे ने  झूला झूलाया, जिन बाँहों ने गोद उठाया,
उस  कंधे को  छोड़  किसी और का संबल  बन   जाती हैं.

बाबुल      की       लाडली,    आँखों        का         तारा ,
 बाबुल   से    दूर   किसी   और का  सपना  बन  जाती हैं.

बाबुल  के जिगर  का  टुकड़ा,  वो  गुड़िया    सी   छुईमुई,
एक   दिन   ख़ुद  टुकड़ों    में बँट   कर    रह   जाती   हैं .

 सींच   कर बाबुल  के हाथों , किसी   और   की हो जाती हैं,
मेहंदी     सी पीसकर  , किसी   के   जीवन  में  रच जाती हैं.


लड़कियां     खिल       कर  बाबुल       के        आँगन    में,
किसी         और        का          घर              महकाती   हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है

जीवन की सफर में लय  से सुर को छूटते  देखा है.
 अक्सर लोगों को बन कर भी बिखरते देखा है,

एक छोटी सी भटकाव भी बदल देती है रास्ता.
 मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है.

हर चाह सिसक कर तब आह बन जाती है

"बदलती है किस्मत जो रूख अपना,
हर चाह सिसक कर तब आह बन जाती है,
वफा  करके भी जब बेगैरत ज़िन्दगी से ,
ज़फ़ा की सौगात  मिल  जाती है. "

रु-ये -ज़िन्दगी उतनी हँसीं नहीं

ek urdu shayri zindaki ke bare me

रु-ये -ज़िन्दगी उतनी हँसीं नहीं, मालूम तब होता है जब दर्स दे जाती है,
दौरे-अय्याम जब सरशारी-ये -मंजिल से पहले नामुरादी जबीं पे सिकन लाती हैं.

रु-ये -ज़िन्दगी --- ज़िन्दगी का चेहरा
दर्स -- सबक
दौरे-अय्याम --समय का फेर
सरशारी-ये -मंजिल -- मंजिल की पहुँच
नामुरादी ------ असफलता
जबीं पे -- माथे पे

गुरुवार, अगस्त 19, 2010

छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,

छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,
आज जब भी भीगती हैं निगाहें तो हौले से मुस्काती हैं,
तेरे यादों का मेरी निगाहों से जाने कौन सा नाता है.
तस्वुर में जब भी आता है भीग कर भी मुस्कुराती हैं निगाहें.

शाम होते ही , बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,

वो  ढला दिन,
गया आफ़ताब ,
अब फिर तू ,
जलने की,
तैयारी कर ले ,
शाम होते ही ,
बढ़ जाती हैं बेताबियाँ,
अब तो हवाओं से,
तू यारी करले.

बुधवार, अगस्त 18, 2010

आज दामन थामने को तू जो नहीं

संभले कदम भी लड़खड़ाते थे डगर पे
,तुझसे सहारे की आदत जो थी,
अब चलती हूँ तो लड़खड़ाने से डरती हूँ,
आज दामन थामने को तू जो नहीं. "

सोमवार, अगस्त 02, 2010

मैं और मेरी तन्हाई



हर   लम्हा अब   मुझे   तड़पा   रहा है,
भीड़ में भी अकेलापन नज़र आ रहा है.

हर तरफ ख़ामोशी एक सवाल करती है,
अकेलापन अब जीना दुश्वार करती  है.

कभी भागते फिरते  थे वक़्त के साथ हम,
अब तो हर क्षण लगता है रुक गया है. 

मेरी   तरह   शायद   वो  भी  थक  गया  है,
चलते - चलते समय का चक्र  रुक गया है.

रौशनी   की किरण    दूर  नजर  आ रही है,
लगता   है   शायद     मुझे   बुला   रही   है.

एक   सितारा  भी   अगर  मुझको मिल जाये,
तन्हाई में   भी उम्मीद की किरण जगमगाए.

मिलने को तो सारा   समन्दर   मुझे  मिला  है,
पर   समन्दर में  कभी कोई गुल न   खिला  है.

पलकों   पर अधूरे ख़्वाब   न  जाने क्यों आये,
जो बादल सा   अब तक हैं पलकों  पर   छाये.

कभी तो बदलियों की ओट से चाँद नज़र आये 
ऐसी    अधूरी ख़्वाब     कोई        न    सजाये.

पूरी  होने से  पहले  जो  ख़्वाब   चूर हो   जाते  है,
टूटकर    वो लम्हें    बड़ा    दर्द    दे    जाते     हैं.

शीशे    की   उम्र   सिर्फ    शीशा ही बता पाता है,
या   उसे   पता है जो    शीशे सा   बिखर जाता है.

हमने       भी   ख़ुद    को   जोड़ा   है    तोड़कर,
अपने वजूद को एक   जा   किया    है   जोड़कर ,

टूट  कर भी   जुड़ना   कहाँ हर किसी को  आता है,
हर   कोई        कहाँ    ऐसी  क़िस्मत    पाता    है.

हर लम्हा  जब    तडपाये  भीड़ भी तन्हा कर जाये
जीने   की चाह   में     फिर जीने   वाले कहाँ जाएँ.

हर    लम्हा     अब    मुझे  तड़पा       रहा   है,
भीड़   में   भी   अकेलापन   नज़र   आ   रहा है.

"रजनी"






सोमवार, जुलाई 26, 2010

ये नशा , शराब का नहीं, उनकी आँखों का है.

 लोग कहते हैं मुझे,
बिन पिए ही झूमते हो,
क्या बताऊ ,
उनकी आँखों में ,
नशा ही,
 सौ बोतल का है
ये नशा ,
शराब का नहीं,
उनकी आँखों का है.

रविवार, जुलाई 25, 2010

बस अब एक, दूरी रह गयी , ख्वाब और, पलकों के दरमियाँ ."

" आज भी वो ख्वाब है,
मेरे पलकों पर,
जो मुद्दत पहले ,
कभी देखा था,
पूरी ना हुई,
बस अब एक,
दूरी रह गयी ,
ख्वाब और,
पलकों के दरमियाँ ."

बुधवार, जुलाई 21, 2010

खुद की पहचान भूल गयी.

"मुद्दत से संवारा था,
जिस अक्स को निगाहों ने,
आज उसे देखते ही,
खुद की पहचान भूल गयी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

जब चाँद पूछता है मुझसे

जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे,
यूँ इठलाती हो,
तब मेरा इठलाना ,
कुछ और बढ़  jata   है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
 जैसे तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
इठलाती हो,
तब मेरी धड़कन सीने की,
 और बढ़ जाती है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
जैसे चकोर ,
तुझे देखने को ,
रोज आता है,
मेरे चाँद का भी,
 मुझसे ,
ऐसा प्यारा नाता है,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
शर्माती हो,
तब मेरा शरमाना ,
और बढ़ जाता है,
बड़े ही शर्माते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
मेरे चाँद का ये कहना है,
वो चाँद आसमां  का,
 तेरा ही एक टुकडा है,
 उस चाँद से प्यारा ,
सलोना तेरा मुखड़ा है,
जब सुनती हूँ अपने बारे में,
 मेरा इठलाना ,
और बढ़ जाता है,
मै कहती हूँ चाँद से ,
तेरे पास जैसे ,
तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
अब चाँद कहता है मुझसे,
बिना तेल जो जल जाए ,
तू वैसी बाती है,
किस्मतवाला है वो ,
तू जिसकी जीवनसाथी है,
अब चाँद कहता है मुझसे,
इठ्लानेवाली बात है ये,
तू जिसपे इठलाती है,
किस्मतवाला है वो,
तू जिसकी साथी है.
"rajni"
********************************

मंगलवार, जुलाई 20, 2010

बादलों की , आगोश में जाकर, चाँद और निखर गया,

"बादलों की ,
आगोश में जाकर,
चाँद और निखर गया,
मिली जब ,
चांदनी उससे ,
बहुत उलझन में,
पड़ गयी ."
"rajni "

हर कोई , बन जायेगा , समंदर यहाँ "

" निगाहें ,
दरिया नहीं बन पायेगी,
जब ,
हर कोई ,
बन जायेगा ,
समंदर यहाँ "

सोमवार, जुलाई 19, 2010

कि ढल रही है शाम , अब तो आ जाओ".

"पथरा सी गयी निगाहें,
दीदार को,
फुरकत से ,
अब तो ख्वाब बन ,
कर छा जाओ,
 तेरी मंजिल कि  ,
डगर रुक गयी है .
कि ढल रही है शाम ,
अब तो आ जाओ".

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

बिन पिए ही, मदहोश बना डाला , उनकी नशीली आँखों ने,

बिन पिए ही, मदहोश बना डाला ,
उनकी नशीली आँखों ने,
देखो क्या हाल हमारा है,
डूब के उनकी आँखों में,
सोंच इस मयकदे में आया,
ज़िन्दगी मिल जाएगी,
हमें क्या मालूम था,
डूब मरने को ,
ये निगाहें दरिया मिल जाएगी.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

बुधवार, जुलाई 14, 2010

पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है

ऐ  सावन जब भी आता तू ,प्यास ज़मीन   की बुझ जाती है,
पर   मेरे   मन   की  धरा  तो  प्यासी  ही रह  जाती  है.

तेरे    आने से   ये  मौसम  रंगीं, रुत  जवां  हो  जाता है ,
खिल जाती हैं बाग़ की कलियाँ, भवरों के मन मुस्काते हैं.

मेरा   गुलशन     ऐसे     बिखरा ,  जैसे   टूटी   डाली हो,
मेरा    अंतर   ऐसे   सूना ,जैसे    बाग़   बिन   माली  हो.

इस   विरह से आतप  धरती को  तो ,दुल्हन कर जाते हो,
पर  मेरे   नस-नस    में दामिनियों   के दंश   गिराते   हो .

ए सावन  जब  भी  आता तू ,प्यास ज़मीन  की बुझ जाती है,
पर     मेरे  मन  की  धरा   तो  प्यासी    ही रह   जाती  है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

मंगलवार, जुलाई 13, 2010

बारिश का मौसम, सा जीवन,

"बारिश का मौसम,
सा जीवन,
भीगी जमीन सी ,
इसकी राहें,
सावन सा पंकिला ,
मुश्किल, उलझन ,
जो  ना संभले ,
इसकी  राह में ,
उनके कदम ,
मंजिल से पहले ही,
लड़खड़ा कर,
फिसल जाते हैं. "
"rajni"

रविवार, जुलाई 11, 2010

जब, चुनौती का सागर, गहरा हो ."

"
चुनौती के ,
सागर में,
डूबना ,
तभी सफल,
और,
आनंददायक,
लगता है
जब,
चुनौती का सागर,
गहरा हो ."

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, जुलाई 06, 2010

मुझे ही खबर नहीं

लुट गयी बस्ती मेरे हाथों, मुझे ही खबर नहीं,
मालूम चला ,जब खुद को तन्हा पाया ,उसी बाज़ार में.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

जब भी , हँसने की , तैयारी की मैंने,

इस (दुनिया के )रंग मंच पर ,
उपरवाले को ,
मेरा ही  किरदार,
क्यों भाया , 
जब भी ,
हँसने की ,
तैयारी की मैंने,
उसने,
 रोने का,
 किरदार ,
थमा दिया .

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

आज वो कान्धा छूट गया

"जिस गुलशन ने ,
खिलना सिखाया था,
हमसे ही लूट गया,
रोया करते थे,
जिस पर लग कर,
आज वो कान्धा  छूट गया."

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

सोमवार, जुलाई 05, 2010

शब्दों से भींगा हुआ पन्ना बन जाता है, साहित्य का इतिहास .

मन की भाषा को ,
जुबान मिलती है ,
पन्नों में आकर ,
कुछ भाषा ,
आँखों से खोली जाती हैं.
कुछ को,
खोलने के लिए,
 पन्नों को ,
भिंगोना होता है .
शब्दों से ,
भींगा हुआ पन्ना,
बन जाता है,
साहित्य का,
इतिहास ..

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

रविवार, जुलाई 04, 2010

कोई वादों की डोर से , बंध कर टूट जाता है.

तोड़ जाता है कोई ,
वादों की डोर को,
कोई वादों की डोर से  ,
बंध कर टूट जाता है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)

दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)

मैंने सुख दुःख के,
तानों ,बानो  से,
एक गुल है बनाया,
सुख को छोड़ ,
मैंने दुःख को ,
अपना बनाया.

मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दुःख को चुना.

जीवन में मिठास की तलाश,
हर किसी को होती है,
जिसको पाने की चाह,
हर किसी को होती है.

मैंने भी,जीवन में,
दर्द के साथ मिठास को पाया,
फिर भी ना जाने क्यों,
मुझे दर्द ही भाया.

बड़े कम समय में दर्द ,
जीना सीखा देता  है,
हँसते हुए लोगों को,
रोना सीखा देता है.

हमने सुख के संसार में ,
रहते हुए भी ,
दर्द को महसूस किया,
इसके हर एक कसक को,
अपने अंदर महफूज किया.

दर्द के साथ जुडा हुआ,
सारा जहान है,
दर्द को भी झेल जाना ,
एक इम्तिहान है.

दर्द के साथ मेरा अब तो ,
ऐसा नाता है,
दर्द हर ख़ुशी से पहले,
मेरे चेहरे पर आ जाता है.

दर्द से जुड़ गया ,
एक रिस्ता मेरा खास है,
अब तो दर्द मेरे आगे,
मेरे पीछे, मेरे साथ है.

मैंने एक ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों मैंने,
फूलों  को छोड़,
काँटों को  चुना.

मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दर्द  को चुना.

मंगलवार, जून 29, 2010

गुफ्तगू से नहीं,लरजते अधर, सितम बोलते हैं,


गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते   अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

निगाहें हँसती भी मेरी, लगे नम  बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

किसी के हुनर को क़लम ,किसी के क़दम  बोलते हैं,
कोई ले  अल्फ़ाज़ों  का सहारा,किसी के ग़म  बोलते हैं.

गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

जो तल्ख़ हों मिज़ाज  से,उनके अहम बोलते हैं,
तुम भी कहोगे मुख्तारी से, जो हम बोलते हैं.

नादाँ हैं जो दिलनशीं को, संगदिल सनम बोलते हैं.
शरारा   होता है   जिनकी  तहरीर में ,उनके दम बोलते हैं.

गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.

"रजनी "

रविवार, जून 27, 2010

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,.

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,
आज  खुद से वो ,क्यों  मेरा दामन छुड़ा गया.

मै चाँद तो थी पर चमक ना थी मेरी,
दी रौशनी मुझे दमकना सीखा गया.

थी मंजिल मेरे निगाहों के आगे,
पग बन मेरे ,मुझे चलना सीखा गया.

अँधेरा हटाने को मेरे तम से मन के,
वो बना कर सितारा,मुझे ही जला गया .

"रजनी" (रात )  की ना कहीं  सुबह है,
इस बात का वो अहसास दिला   गया.

"रजनी"

सागर में रहकर भी, प्यासे रह गये



सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
मोम लिए बर्फ पर थे,
फिर भी पिघल गये,
ठंडा था दूध,फिर भी ,
ठन्डे  दूध से जल गये,
मृग मरीचिका मन का भ्रम है,
फिर भी सोने का देखा हिरन,
तो मन मचल गये,
बंद रखा था पलकों को,
मोती छूपाने के लिए,
बंद पलकों से भी,
मोती निकल गये,
हर धड़कन को छू लें,
वो एहसास बन गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये,
सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये. 


शनिवार, जून 26, 2010

वो, खुद को , पर्दानशी कहते रहे



" उठ गया चिलमन ,
उनके,
हर हसीन राज़ से,
फिर भी ,
वो,
खुद को ,
पर्दानशी कहते रहे."

"रजनी "

शुक्रवार, जून 25, 2010

जो टूट कर भी, मुझे, जोड़ता गया

"कुछ इस तरह से,
टूटा,
वो आसमां से,
तारा,
जो टूट कर भी,
मुझे,
जोड़ता गया."

जितनी भी,
निराशा  की
डोर ,
बंधी थी
मेरे,
मन में,

उस,
डोर  की
कड़ी,
को  वो,
तोड़ता गया.

गुरुवार, जून 24, 2010

बेबस रहा संगीत मेरा

" बेबस रहा  संगीत मेरा,
संवरने  को ,
हम बंधे खड़े  रहे ,
रीतों से ,
अब वो साज़ ,
नज़र नहीं आता ,
जो बन जाते  थे,
  धुन मेरे गीतों के.."

"रजनी "

बुधवार, जून 23, 2010

इतिफाक से ही , सामना तो, हो ही जाता है, मुश्किलों से,

इतिफाक से ही ,
पर,
सामना तो,
हो ही जाता है,
मुश्किलों से,
सबका.
हम उसे,
स्वीकार करें,
या ना करें,
पर,
नियति अपने,
तय समय पर,
हर कार्य को करती है .

मंगलवार, जून 22, 2010

बस एक इरादा ही, काफी है, फैसले, बदलने ले लिए,

उस ज़िन्दगी को,
 क्या कहें ?
जो भरी ना हो,
चुनौती से ,
बस एक इरादा ही,
काफी है,
फैसले,
बदलने ले लिए,
हर पल जो,
तैयार हो,
मुश्किलों  में भी,
चलने के लिए.

मंगलवार, जून 01, 2010

टूट कर भी मेरा वजूद, बिखर नहीं पायेगा

जिस पर टिका है ,
अस्तित्व मेरा ,
वो बुनियाद ,
तुम्हारा कांधा है,
जानती हूँ ,
टूट कर भी मेरा वजूद,
बिखर नहीं पायेगा ,
क्योंकि ,
इसे ,
तुम्हारे संबल ने,
मजबूती से बांधा है .

बुधवार, मई 26, 2010

शब भर जलकर भी, मेरा सवेरा नहीं



"सबने जलाया ,
शब भर मुझे ,
सम्स के आते ही,
बुझा दिया.
क्यों मांगते हो,
मुझसे,
जो मेरा नहीं,
शब भर जलकर भी,
मेरा सवेरा नहीं ."

"रजनी "

सोमवार, मई 24, 2010

ये बंदिशें भी कैसी हैं

"ये बंदिशें भी कैसी हैं ,
कभी जुड़तीं हैं,
रस्मों के नाम से,
तो  कभी ,
बगावत से टूट जाती हैं,
ये  एक  ऐसी माला  है,
जिसके मनके की डोरी ,
खुद ,
गुन्धनेवाले  के हाथों ,
टूट  जाती है."

मंगलवार, मई 18, 2010

पत्थर समझता रहा

पत्थर समझता रहा मुझे,
आजतक शायद ,
तभी तो,
मेरे टूटने पर,
छू कर देखता रहा.

सोमवार, मई 10, 2010

फिर कैसे हँसकर, मिलन हो तुझसे

"ज़िन्दगी ,
तुझे,
मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फिर कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "

Rajni Nayyar Malhotra.

शुक्रवार, मई 07, 2010

माँ का आँचल,


हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,
हमें कदम,कदम पर,
कुछ शरीरिक, मानसिक कठिनाइयों का सामना,
करना ही पड़ता है,
वैसे क्षण में ,
यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..
... माँ का आँचल,
माँ  की स्नेहल गोद ,माँ के प्रेम भरे बोल.
माँ क्या है?
तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,
थके राही के,
  तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे.
कहा भी जाता है,
मा ठंडियाँ छांवा,
माँ ठंडी छाया के सामान है
.जिनके सर पर माँ का साया हो ,
वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है,
जिनके सर पे ये साया नहीं ,
उनसा बदनसीब कोई नहीं.
.. पर,
कुछ बच्चे ,
अपने पैरों पर खड़े होकर,
 माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं,
उन्हें  उनकी सेवा,
  देखभाल
उन्हें बोझ लगने लगती है..
जबकि उन्हें ,
अपना कर्तव्य,
पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

"रजनी"

मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया

"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में  नहीं होता,
 मैंने  तो लकीरों पर,
भरोसा  करना छोड़ दिया ."

 " रजनी "

गुरुवार, मई 06, 2010

हम जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रह जाते हैं,

जब जब सावन कि बूंदें कुछ,
टप,टप राग सुनाती हैं,
जब , जब कोयल   ,
अपनी ही राग गाती हैं,
हाँ कुछ,कुछ पल बीते लम्हों के,
मुझे भी सताते  है,
ये जब गुजरते हैं रुत के संग ,
मुझे भी कुछ याद दिलाती है,

बैठे अपने आंगन में ,
जब भ्रमरों का गुंजन सुनते है,
तब मन ही मन हम,
लाखों सपने अपने धुन में बुनते हैं,
कभी कभी तो नयन हमारे
 मूक दर्शक से रह जाते हैं,

जब टूट जाए सागर के बाँध तो
कमल को मेरे भिंगाते है,
खगों के कलरवों में गूंजती ,
मेरे भी अग्न बुझ जाते है,
जब हम भी अपनी अरमानों के संग
ऊँची उड़ान भर आते हैं,

कभी तितलियों के साथ
अपनी सांग लड़ते हैं,
कभी शबनम सा
खुद को ओझल पाते है,
पर कल्पनाओं का क्या,
कल्पना में तो हम
सारा ख्वाब पा जाते हैं,

जब टूटती है मेरी तन्द्रा,
तो खुद को वहीं बड़ी बेबस सा पाते है,
हम जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रह जाते हैं,
कभी,कभी तो फूटकर,
फूटकर भाव विह्वल हो जाते है,
बस ये सोंचकर रह जाते हैं,
हम जहाँ थे क्यों वही पर रह जाते हैं,

जब जब सावन कि बूंदें ,
कुछ टप,टप राग सुनाती हैं,
जब कोयल कि कूक,
अपनी ही राग गाती हैं,
 हाँ कुछ,कुछ पल बीते लम्हों के
मुझे भी सताती है.


"रजनी ".

बुधवार, मई 05, 2010

तू बन जमीं किसी के वास्ते

चलने की कर तू शुरू ,
मंजिल की तलाश में,
राह का क्या है ,
वो खुद ही बन जायेगा,
मानती हूँ,
ठोकर भी ,
आते हैं राह में,
तू बन जमीं ,
किसी के वास्ते ,
कोई तेरा,
आसमां बन जायेगा.

"रजनी "

अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.


देखते   ही  उसे   मेरे  जिस्म में जान  आ गया ,
मेरे मदावा -ए-दर्द -ए-दिल का सामान आ गया.
 
 बाद -ए-सहर जैसी लगती  थी   जुदाई की बात
अब   तो सर   पर   दूरी का  ये तूफ़ान आ गया.

बहुत   लिए उल्फ़त  में    इम्तिहान   हम    तेरे,
अब   तो  अपनी   चाहत का  इम्तिहान आ गया.

तन्हाई   क्या होती   है खबर नहीं   थी दिल  को,
ज़िन्दगी  के इस मोड़ पर ,जैसे  श्मशान आ गया.

सीने में जलन आँखों  में  अश्कों का सैलाब   "रजनी"
जानेवाली थी जान , कि  दिल का  मेहमान आ गया.

"रजनी"

भर दो जाम से पैमाना मेरा




ये नज़्म बहुत पहले लिखी थी, ......
एक ज़िन्दगी से हारा हुआ इंसान जब शराब को अपना
सहारा समझता है तब मन में आये भाव कुछ ऐसे होते हैं,

भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,

होश में हम आयें ना,
इतना तो पी लेने दो,

रोको ना पी लेने दो,
होश मेरा खोने दो,
एक   मुद्दत से प्यास थी मेरी,
आज प्यास   बुझ जाने दो,
वो देखो आ रही खुशियाँ ,
रोको उन्हें,
अब  न जाने दो,


छा रही है खुशबु,
महफ़िल में ,
भर जाने दो,
शीशे में उतर रही है ज़िन्दगी,
इसे  उतर जाने दो,

आयें ना होश में हम ,
इतना  नशा आने दो,
शर्म को आती है शर्म आज तो,
शर्म को शर्माने दो,


भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न अब  पी जाने दो,
दिखती है सबको चांदनी
आसमां में रातों को,
आसमां से आज चाँद को ,
ज़मीं  पर  उतर जाने दो,

लहरा रहे  हैं हम आज ,
हवा  के संग-संग ,
हमें आज तो लहराने दो,

बढ़ती जायेगी और नशा,
ज़रा  रात को गहराने दो,
भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,
होश में हम आयें ना ,
इतना तो बहक जाने दो,

घबराते थे भय से ,पहले
अब तो सरक रही है,
भय कि चूनर,
चूनर और ज़रा  सरकाने दो,
रहे ना कोई चिलमन ,
दरमियाँ खुशियों के हमारे,
हर चिलमन हटाने दो,


खुशियाँ जो छिपी थी ,
चिलमन के पीछे ,
उन्हें पास तो मेरे आने दो,
सज रही है,
मेरे अरमानों की बस्ती,
  इसे और ज़रा  सज जाने दो,


जो भ्रम जीने न दे खुश होकर,
उस भ्रम को तज जाने दो,
,

भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,

होश में हम आयें ना,
इतना तो पी लेने दो,

"रजनी"

मंगलवार, मई 04, 2010

रिश्ते बोलते हैं

रिश्ता एक ऐसी ईमारत है जो विश्वास की बुनियाद पर टिका है,कोई भी मंदिर या मस्जिद एक बार टूटकर दुबारा खड़ी की जा सकती है, पर रिश्ता की ईमारत विश्वास की नीव पर है इस विश्वास रूपी नीव के टूटने पर रिश्तों के महल पल में टूटकर बिखर जाते हैं, चूर हो जाते हैं,जीवन में हम अनेक रिश्तों से बंधें हैं,जिसमे कई रिश्तों को हम ता उम्र निभाने की सोंचते हैं बिना किसी कड़वाहट के,और उस रिश्ते को निभाने में कोई ऐसा मुकाम आ जाये जो रिश्ते को तार,तार कर रख दे तो जीवन का सफ़र बिल्कुल नीरस लगता है, टूट जाता है जीवन का सपना, हम जिस पर विश्वास कर अपने जीवन की डोर उसके हाथों में सौंप दें और विश्वास करनेवाला विश्वास तोड़ता नज़र आये, तो रिश्ते की कोई अहमियत नहीं रह जाती, अगर आप विश्वास करते हों तो विश्वास को सदा बनाये रखें, क्योंकि विश्वास की बुनियाद पर ही रिश्तों के महल टिके हैं.........जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा विश्वास, और जब ये गहरे से विश्वास अचानक से टूटते हैं तो टुकड़े ही नहीं रिश्ते चूर हो जाते हैं, रिश्तों की गरिमा बनाये रखने के लिए अपने साथ जुड़े लोगों  परहमें  विश्वास बनाये रखना चाहिए और विश्वास को टूटने नहीं देना चाहिए........................................


रिश्ते 

कांच के बने होते हैं रिश्ते ,
जो ठोकर लगते ही टूट जाते हैं,
एक झटका ही काफी है,
इनके चूर होने में,
बिखर कर दूर हो जाते हैं,
टूटने में तो ये पल भी न लेते हैं,
पर बिखर कर जुड़ने में,
सरे उम्र छोटे पड़ जाते हैं,
एक नाजुक सी डोरी है रिश्ता,
जो मोम से भी कच्ची  है,
विश्वास का जो टूटे दामन,
तो पिघलने में देर नहीं लगती,
एक चिंगारी ही काफी है ,
रिश्तों को जलाने के लिए,
बड़े ही इम्तिहानों से गुजरना पड़ता है,
रिश्तों को निभाने के लिए,
कच्ची रिश्तों की  डोरी ,
कभी टूटने न पाए,
जो टूटे भी  तो जुडने में ,
 गांठ दे जाये ,
हर रिश्तों को तौलती परखती है रिश्ते,
बस विश्वास की जुबां ही बोलती है रिश्ते,
संभल कर रखना रिश्तों को,
क्योंकि,
जितनी ये नाजुक है,
हर मोड़ पे झुकती है,
पर जब टूट जाये,
तो बड़ी ही चुभती है,
टूटने में तो ये पल भी न लें,
पर जुडने में ये बरसों लेते हैं,
कांच के बने होते हैं रिश्ते,
जो ठोकर लगते ही टूट जाते हैं,
एक झटका ही काफी है,
इनके चूर होने में,
बिखर कर दूर हो जाते हैं |

"रजनी"

रविवार, मई 02, 2010

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.



मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा ,
हर बात गवारा करलोगे मन्नत भी माँगा करलोगे,
ताबिजें भी बंध्वाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
तन्हाई के झूले झूलोगे और बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा,
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब बेचैनी बढ़ जाएगी और याद किसी की आएगी ,
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

किसी ने  बहुत अच्छा  लिखा  है  इश्क  का   पहला  पहलू  दूसरा  पहलू मै   देने  की कोशिश कर रही उपरोक्त ग़ज़ल किसी के द्वारा मुझे मिला है जिसे मै अपने कुछ और सब्दों से सजा रही.......

कुछ पंक्तियाँ मेरो ओर से....

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बैठे तन्हा मुस्काओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
जगकर सपने बुनोगे हर गम को भूलोगे,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बिन श्रृंगार सज जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बेचैनी भूल जाओगे जब एक चाँद सा चेहरा मुस्काएगा,
पतझड़ को भी सावन पाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
भूख नींद भूल जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

"रजनी"

मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ

आज मजदूर दिवस पर एक रचना मजदूर की मज़बूरी पर ...........

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
 क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा   है  दिन,
रात, पेट  भरने को नमक- पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द     घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    का   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी      का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से    ही   सारे   अरमान  मोल रहा हूँ|

आज    दिल   का    दर्द     घोल      रहा    हूँ
मज़दूर     हूँ    अपनी    मजबूरी  बोल रहा हूँ |

"रजनी"

शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

बंद आँखों में भी मेरा दीदार हो जायेगा.



फेरते हो नज़रें मुझसे ,  बचने  के लिए
बंद आँखों में भी मेरा  दीदार हो जायेगा.

तेरे     उल्फ़त     के    मारे      हम ,
नफ़रत  भी दोगे तो  प्यार हो जायेगा .

चाहत नहीं आसमां हो मेरी मुटठी में,
तेरा आँगन ही सारा संसार हो जायेगा.

चाहत की क़ीमत न लगा  ये अनमोल   है ,
वर्ना   प्रेम    एक    व्यापार  हो   जायेगा.

अब   तक    ख़ामोश     हैं   मेरी निगाहें,
 बोल  उठी  तो सुनना  नागवार   हो जायेगा.

है   अंधेरों   से   भरी मेरी  जीवन की राहें,
साथ   दो ,  रौशन   मेरा  संसार हो जायेगा.

फेरते   हो  नज़रें  मुझसे    बचने  के लिए
बंद  आँखों में  भी  मेरा  दीदार हो जायेगा.

"रजनी"

बुधवार, अप्रैल 28, 2010

क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.

सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.

प्रेम का दरिया बनकर हम तो उफन पड़े ,
क्या खबर थी मुझको वो सागर हो जायेगा.

छू कर हीरा कर डाला इस बूत से जिस्म को,
क्या खबर थी मुझको वो ऐसे तन्हा कर जायेगा.

मेरे हर दर्द को पीनेवाला समझ अमृत हर घूंट को,
क्या खबर थी अश्कों का जहर वो तन्हा पी जायेगा.

रूठना तो इश्क की दुनिया का दस्तूर है,
क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.

हर शय पर जिसने मुझको पाया इस गुलिस्तान में,
क्या खबर थी मुझको वो इतना मगरूर हो जायेगा,

सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.

"रजनी"

मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

और फूल मुरझा गए



हर बाग़ को तेरे जैसा बागवान मिले,
हर बाग़ में खिज़ा में भी बहार खिले.

आये थे जब तुम खिज़ा में भी बहार थी,
छोड़ गए बाग उजड़ गया , हो गया  वीरान.

अब तो बहार में भी ये लगता है  वीरान,
हर सुबह इसकी हो गयी अब  काली शाम.

हर बहार में कलियाँ तुझे याद करती हैं,
आये वही बागवान  फिरसे,  फरियाद करती है.

कलियों पर तब  छाया तेरा सुरूर था,
उन्हें अपनी महक पर तेरा गुरुर   था.

अब ना रही वो कलियाँ,ना रहा वो गुरुर,
जब से गया बाग़  का बागवान दूर.

गाते भँवरे   जब कलियों पर मंडराते थे,
कलियों के मन तब खुद पर इठलाते थे

तुम क्या गए खिल पाई ना कलियाँ,
गुमसुम  सी हो गयी इनकी दुनिया.

और फूल मुरझा गए.तुम क्या गए,
खिली ना कलियाँ,और फूल मुरझा गए.

हर बाग़ को तेरे जैसा बागवान मिले,
हर बाग़ में खिज़ा में भी बहार खिले.

तुम क्या गए खिल पाई ना कलियाँ.
और फूल मुरझा गए.

"रजनी"

बुधवार, मार्च 31, 2010

क्या करें अब शिकवा हम तुमसे ये जमाना,

जो     सन्नाटे      से     भी     डरते    हैं   अक्सर,
क्यों    उनकी    गली    में      शोर      होता    है |

हर     ज़िंदगी    में  रोज़    यही    कहानी   होती  है 
हर     ज़माने       में      यही    दौर       होता     है|

जो   महफ़िल      में    बने    फिरते     हैं   पारसा,
क्यों     उनके    दिल    में    अक्सर   चोर होता है|

कुछ   तो   बैठे    रह जाते   हैं   हाथें  मलते  अपने,
कुछ के सिक्कों के बल पर, जयनाद चहूँ ओर होता है|

क्या   करें   अब   शिकवा    हम   तुमसे   ऐ  ज़माना,
कि   मेरा हर   सहारा     क्यों    कमज़ोर  होता   है |

गुज़रते   हैं दहशत   में जिनके   ज़िन्दगी   के हर  पल,
उनकी    नींद   में   भी   भगदड़    का    शोर    होता है|

जो   रखते    हैं   संभाल   कर   हर   शिकन  से  खुद को,
क्यों    उनके   दिल     में   अक्सर    चोर     होता    है |

"रजनी"

मंगलवार, मार्च 16, 2010

लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.

वो भी हो गए आज़ाद हमसे हाथ छुड़ाने के बाद,
लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.

लोग रो पड़े सुनकर दास्तान मेरे जाने के बाद,
लगता है आंसुओ को मेरे लिए ही छूपा कर रखा था.

याद आई किसी को हमारी आज एक ज़माने के बाद,
लगता है उसने आँखों में कोई अक्स छूपा कर रखा था.

आज संभल गए हैं वो एक ठोकर खाने के बाद,
लगता है किस्मत को चोट से ही बदलना लिखा था.

कह ना पाए कुछ भी जो होंठ हिलाने के बाद,
लगता है तभी पलकों को झुकाकर रखा था.

हम जानते थे वो याद आयेंगे दूर जाने के बाद,
लगता है तभी दरमियाँ फासला बना कर रखा था.

लोग बातें करते हैं पीने की होश खोने के बाद,
लगता है मयखाना से दोस्ती बना कर रखा था.

"रजनी"

रविवार, मार्च 07, 2010

महिला दिवस पर कुछ (महिला सशक्तिकरण की चुनौतियाँ)

एक लेख.

महिलाओं के साथ सदियों से भेदभाव बरता गया.पुरुष प्रधान समाज ने प्रत्येक क्षेत्र में औरत को एक वस्तु के
रूप में उपयोग किया, महिलाओं की भेदभाव की सिथिति लगभग पूरी दुनियां में रही,इस दिशा में सकारात्मक
प्रयास भी किये गए, 8 मार्च 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
भारत में २००१ को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया गया , तथा महिलाओं के कल्याण हेतु पहली बार
राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति बनाई गयी,जिसमे महिलाओं की सिक्षा,रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा में सहभागिता
को सुनिश्चित कराया गया.सामाजिक आर्थिक नीतियाँ बनाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करना.महिलाओं
पुरुषों को समाज में सामान भागीदारी निभाने हेतु प्रोत्साहित करना.बालिकाओं एवं महिलाओं के प्रति विविध
अपराधों के रूप में व्याप्त असमानताओं को ख़त्म करना.बहुत सारी योजनाओ को भी सरकार ने महिलाओ की
सिथिति को सुधारने के लिए गठित किये, जिनमे, इंदिरा महिला योजना, एक योजना १५ अगस्त २००१ को
ऋण योजना शुरू की गयी जिसे १५-से १८ वर्षीय किशोरियों के लिए बनायीं गयी.

७३ वे ७४ वे संविधान संशोधन द्वारा देशभर में ग्रामीण व् नगरीय पंचायतों के सभी स्तर पर महिलाओं हेतु एक
तिहाई सीट आरक्षित की गयी.भारत सरकार ने वर्ष २००१ में राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना करते हुए महिलाओं को
सशक्त बनाने हेतु भारतीय तलाक ( संसोधन)२००१ की पारित (१) महिलायों पर घरेलु हिंसा(निरोधक)
अधिनियम २००१ (२)परित्यक्ताओं हेतु गुजारा भत्ता (संसोधन) अधिनियम २००१(२) बालिका अनिवार्य
शिक्षा एवं कल्याण विधेयक २००१.उपरोक्त सरकारी सुविधाओं के बावजूद अपेक्षित लाभ
नहीं मिल पाया है,अनेक जगह अनेक बढ़ाएं अभी भी मुंह बाये खड़ी हैं.प्रथमतया पुरुष वर्ग की प्रधानता समाज में
आज भी बनी है,नारी का शोषण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवार,सम्पति,
वर का चयन,खेल,शासकीय सेवा,शिखा,विज्ञापन,फिल्म,असंख्य कानून होने के बावजूद बने हैं.पर,
कुछ वर्षों से महिलायों की रहन सहन के सामाजिक स्तर में काफी बदलाव आये हैं, वे अब हर क्षेत्र में अपने
कदम आसानी से बढ़ाने लगी है,ये भी अपने जीवन में आज़ादी को मायने देती हैं यहाँ आज़ादी का मतलब है, पैसा,पॉवर,मन की आज़ादी, बेहतर जॉब.अगर अच्छी जॉब हो तो पैसा,पॉवर, और आज़ादी खुद ब खुद आ जाती है.
आज भी महिलाओं के लिए उनका परिवार ही सबसे ज्यादा मायने रखता है,यह एक ऐसा ट्रेंड है जो कभी नहीं बदला,परिवार को एक सूत्र में पिरोनेवाली महिलाएं आज पुरुषों के साथ या उनसे आगे चल रही
पर उनके लिए आज भी सबसे ज्यादा परिवार ही महत्व रखता है,महिलाएं हर क्षेत्र में आज अपनी सक्रिय
भूमिका निभा रही हैं,अब उनकी आज़ादी पर पाबंदियां जैसे बंदिशें टूटने लगे हैं,जिसका सारा श्रेया खुद
महिलाओं को जाता है...आप सभी महिलाओं को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें हम महिलायें ऐसे ही
आगे बढ़ते रहें....

"रजनी"

गुरुवार, मार्च 04, 2010

पर दामन नहीं थामता है कोई.

देखा  है  सबने   चाहत की नज़र से,
 वफा  के  गीत   नहीं गाता है  कोई|

करते   हैं  बातें  साथ  निभाने   की ,
पर   दामन  नहीं  थामता  है  कोई|

होठों पर हंसी उम्र भर देंगे कहते है,
रोऊँ  तो आंसू नहीं पोंछता  है कोई|

चलने   को साथ क़दम उठाते हैं सब,
मंज़िल  तक साथ नहीं आता  है कोई|

मिलकर दरिया पार करेंगे  आग का ,
जलने  लगूँ  तो  नहीं बचाता है कोई|

मिलती हैं हर  क़दम   पर सिर्फ उलझनें  , 
पर  उलझनों को नहीं सुलझाता  है कोई|

"रजनी"

मंगलवार, मार्च 02, 2010

रफ्ता- रफ्ता ख़ुदकुशी का,मज़ा हमसे पूछिये

जो हर साँस में बस जाये,धड़कन बन कर .

उसे याद करने की,वजह हमसे पूछिये.

रफ्ता- रफ्ता ख़ुदकुशी का,मज़ा हमसे पूछिये,

गुनाह के बगैर कैसे मिले,सजा हमसे पूछिये.

नींद खोकर चैन लूटने की,वजह हमसे पूछिये,

कातिल को दे दी रिहाई,उम्र कैद की सजा खुद को.

ये लूटने की खुबसूरत,अदा हमसे पूछिये.

एक बार में पी जाते हैं जाम लोग,

घूट घूट कर पीने का मज़ा हमसे पूछिये.

दोस्ती भी प्यार से नहीं निभ पाते हैं,

दुश्मनों को भी निभाने की अदा हमसे पूछिये.

कातिल को दे दी रिहाई,उम्र कैद की सजा खुद को.

ये लूटने की खुबसूरत,अदा हमसे पूछिये.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

रविवार, फ़रवरी 28, 2010

रंगों की पर्व होली की शुभकामनायें

आप सभी को मेरी ओर से रंगों की पर्व होली की शुभकामनायें , जीवन में ऐसे ही हर रंग भरे रहें.........महकता फलता फूलता हो परिवार ...........
"रजनी"

बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

मम्मी की ओर से ये तोहफा नैनसी के दसवें जन्मदिन पर

मेरी मासूम सी ज़िनदगी का नाम नैनसी है,आज उसके दसवें जन्मदिन पर मम्मी की ओर से ये तोहफा ,आपसब उसे अपना आशीर्वाद उसके सुनहरे भविष्य के हेतु प्रदान करें....
नैनसी, हाँ बिल्कुल निर्मल
चमकती हुई आभा है,
मेरी नैनसी .
बिल्कुल नैन के जैसी,
जिसमे दिल का आईना,
साफ़ झलकता है.
मासूम सी चंचल,
संजीदगी से भरी,
जिसने चंद साल पहले,
इस दुनिया में अपनी आँखें खोली,
आज दस साल की हो ली.
जीवन में आफ़ताब सा ,
तेरी चमक बनी रहे.

मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

तू बता कौन है ?


तू बता कौन है ?
ए मनमोहिनी,चंद्रमुखी, चंद्रचकोरी ,
तू बता कौन है ?
चंचल से हैं चितवन तेरे,
फिर भी क्यों लगती मौन है ?
यह  काले लट तेरे गेसू नहीं,
छाई  घटा घनघोर हैं,
चूपके-चूपके, निहारे तुझे,
मन मेरा जैसे कोई चोर हो,
नैन तेरे ऐसे जैसे प्याले हों शराब  के,
डूबकर जो देखे इसमें,  रह जाये वोह दिल  थाम के,
ए मनमोहिनी,चंद्रमुखी, चंद्रचकोरी ,
तू बता कौन है ?
चंचल से हैं चितवन तेरे,
फिर भी क्यों लगती मौन है ?
अधर तेरे प्यारे हैं , जैसे कली गुलाब की,
और क्या- क्या मिसाल दूँ तेरे  सबाब की,
तू जूही की कली,चंचल तितली,
बातें  तेरी जैसे  मिसरी की डली,
हर अदा तेरी लगती है मुझे,
मौसम की अंगड़ाई  ,
ये  कजरारे नैन तेरे,
जाम मुहब्बत  के छलकाएं,
अब तो मेरी प्रबल इच्छा ,
डूबकर इसमें मर जाएँ,
तुम कस्तूरी सी सुगंधा हो,
तुम यामिनी,दामिनी,वृंदा हो,
कनक सा तपता रूप तेरा,
काया लगे  खिला- खिला   धूप तेरा,
ऐ मनमोहिनी चंद्रमुखी ,चंद्रचकोरी,
तू बता कौन है?
चंचल से हैं चितवन तेरे,
फिर भी क्यों लगती मौन है ?
तुझे देखने  को मन मेरा, चकोर सा
तुझे पा लूँ तो,
मन नाचे मोर सा,
पर मन के अंदर तो छाये हैं
अनगिनत प्रश्न घटा घनघोर सा,
तू बस मेरी एक कोरी कल्पना है,
यथार्थ तो नज़र आता ही नहीं,
बस मेरे लिए तो तू सपना है,
ख्याल मन से तेरा जाता ही नहीं,
रोज़ ही मेरे ख्यालों में तुम आती हो,
कभी कंगन अपने हाथों के ,
तो कभी पाज़ेब  बजाती हो,
जब ढूंढे मन मृग मेरा तुझे,
झट ओझल हो जाती हो,
पर हैरान कर इस तरह मुझे,
न  जाने तुम क्या पाती हो,
ए मनमोहिनी,चंद्रमुखी, चंद्रचकोरी ,
तू बता कौन है ?

"रजनी"

बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

तेरी प्रीत (राजेश की रजनी)

ये नज़्म मेरी ओर से मेरे जीवन साथी राजेश  को, हमारे विवाह के ग्यारहवें वर्षगाँठ पर क्योंकि आज १८ फ़रवरी के दिन ही हमदोनो परिणय  सूत्र में बंधे थे, और तबसे आज तक जीवन का सफ़र उनके साथ प्रेम,मीठी तकरार,आपसी समझ विश्वास के गुजरते रहे.आपसब के आशीर्वाद हेतु इस रचना को आपसब के समक्ष रख रही,हमारा वैवाहिक जीवन सदा खुशियों और सौभाग्य के साथ रहे,ऐसी कामना करती हूँ,मै उनके जीवन में सदा बहार बन कर रहूँ,गुलाब में जैसे उसकी महक,वैसे ही उनकी पनाहों में मेरा जीवन गुजर जाये......

तेरी प्रीत (राजेश की रजनी)
मै रात की रानी हूँ राजेश तेरी दीवानी हूँ|
मै रात  की रानी हूँ,तेरी प्रीत की दीवानी हूँ,
भर जाये जो आँखों में,मै वो शुर्मई पानी हूँ,
वो अगन वो पानी हूँ,अंगार में डूबी कहानी हूँ,
तू राजाओं का राजा है,तो मै रातों की रानी हूँ,
जो कभी ख़त्म ना हो,मै वो अनमिट कहानी हूँ,
न बुझे वो प्यास है प्रीत,हम दोनों को जो बांधे है रीत,
इक डोर में हम जो बांधे कभी,वो डोर कभी न टूटेगी,
सात ज़न्मों की ये डोरी है,ये बंधन कभी न छुटेगी,
माँगा खुदा से हमने साथ मेरे सजन का,
जिस बंधन में बांधा उसने,वो बंधन हो हर एक जन्म का,
जिस प्रीत ने हमें जोड़ दिया,उसे जीवनभर निभाने को,
प्रेम हमारा अमर रहे,बेचैन रहे हम पाने को,
बांधे रखे जिसे प्रेम से,एक ऐसी डोरी हो,
नज़र न लगे कभी किसी की,
राजेश रजनी की जोड़ी को.
मै रात की रानी हूँ राजेश तेरी दीवानी हूँ|

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

मेरे पास अब देने को , प्यार कहाँ साकी है,

एक बार जला है दिल ,
अब जलने को क्या बाकि है,
मेरे पास अब देने को ,
प्यार कहाँ साकी है,
 ***************************

जिस दिन हम तुम्हें भूल जायेंगे,
समझ लेना भरोसा उठ गया प्यार से,
टूटेगा उस दिन नाता याद करने का,
जब चले जायेंगे हम संसार से.


****************************

हजारों थे चाहनेवाले जिनके,
वो किसी और के दीवाने हो गए,
क्यूँ ना हो किस्मत पे गुरुर उनको ,
जो जलते थे वो जलानेवाले हो गए.

क्या किस्मत पाई है, किनारों ने.

लहरों की थपेड़ों को
साथ-साथ सहते हैं दोनों,
आमने सामने होकर भी
मिल नहीं पाते
क्या क़िस्मत पाई है
किनारों ने |

दर्द उठे जिगर में
भर जाती  हैं दोनों
मगर फिर भी 
मिल नहीं पाती
क्या क़िस्मत  पाई है
निगाहों ने |

भरे हैं नभ में
असंख्य विस्तार से
नज़दीक  हो कर भी
मिल नहीं पाते,
क्या क़िस्मत  पाई है,
सितारों ने |

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

और जो बिखर जाए , उसका कोई वजूद नहीं होता

ये पंक्तियाँ मनुष्य जीवन में काफी मायने रखती है, मैंने इसे अनुभव पर ही लिखा है,आशा है आपसब को पसंद आये.....
टूटा हुआ इंसान ,
टुकड़ों में जीता तो है,
पर टुकड़ों की तरह,
उसे टूटने के बाद जोड़ा जाए,
तो वो जी उठता है,
अगर जोड़ने के बाद फिर तोड़ दो,
तो वो जीता नहीं,
चूर हो जाता है,
इसीलिए ,
कभी भी,
किसी टुकड़े में जी रहे इंसान को,
मत जोड़ना,
अगर जोड़ने की जरूरत भी की ,
तो उसे फिर चूर मत होने देना,
क्योंकि,
चूर का मतलब ही होता है
पूरी तरह से बिखरा हुआ,
और जो बिखर जाए ,
उसका कोई वजूद नहीं होता|

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

तुमसे टूटना मेरी क़िस्मत है

 तुझे  जितनी  मुझसे  नफरत  है,
 तेरी  उतनी  ही मुझे ज़रूरत   है.

 तेरे   मद   भरे    यह   दो    नैन ,
 क्या बताऊँ  कितनी  खुबसूरत हैं.

परवाने     की   फ़िक्र     मत   कर ,
आग  में जलना  इसकी फितरत है.

 जब    आँखों   में  पर्दा   पड़ा   हो  ,
ख़ूबसूरती  भी लगता  बदसूरत  हैं.

जो  ख़्वाब    बुनते   हैं    लगन  से,
वो टूट कर   भी रहता  खुबसूरत है .

जानती  हूँ कोई    तोड़  नहीं पायेगा,
फिर भी तुमसे टूटना मेरी क़िस्मत  है.

बंध  कर   और   नहीं  रहा जायेगा,
अब  टूट कर   बिखरने की चाहत है.

 तुझे   जितनी     मुझसे   नफरत है,
 तेरी    उतनी    ही  मुझे  ज़रूरत  है|

सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

ये माँ तू कैसी है ?

हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,हमें कदम,कदम पर कुछ शरीरिक मानसिक कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है,वैसे क्षण में यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..... माँ का आँचल,म की स्नेहल गोद,माँ के प्रेम भरे बोल. माँ क्या है?तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,थके राही के तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे. कहा भी जाता है----- मा ठंडियाँ छांवां ----- माँ ठंडी छाया के सामान है.जिनके सर पर माँ का साया हो वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है, जिनके सर पे ये साया नहीं उनसा बदनसीब कोई नहीं... पर, कुछ बच्चे अपने पैरों पर खड़े होकर माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं unhe सेवा, उनकी देखभाल उन्हें बोझ लगने लगती है..जबकि उन्हें अपना कर्तव्य पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

मैंने माँ का वर्णन कुछ इस तरह किया है..

ए माँ तू कैसी है ?

सागर में मोती जैसी है.नैनो में ज्योति जैसी है.
नैनो से ज्योति खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये,
वैसे ही तेरे खोने से,जीवन अँधियारा हो जाये.

क्यों ममता में तेरे गहराई है ?
किस मिटटी की रचना पाई है ?
बच्चे तेरे जैसे भी ,सबको गले लगायी है.

ए माँ तू कैसी है ?दीये की बाती जैसी है.
जलकर दीये सा खुद,तम हमारा हर लेती है.

बाती न हो दीये में तो,अन्धकार कौन हर पाए ?
वैसे ही तेरे खोने से, जीवन अँधियारा हो जाये.

ए माँ तू कैसी है ? कुम्हार के चाक जैसी है,
गीली मिटटी तेरे बच्चे,संस्कार उन्हें भर देती है.

ए चाक यदि ना मिल पाए,संस्कार कौन भर पायेगा ?
कौन अपनी कलाओं से ये भांडे को गढ़ पायेगा ?
जीवन कली तेरे होने से ही,सुगन्धित पुष्प बन पायेगा.

ये माँ तू कैसी है ?प्रभु की पावन स्तुति है.
पीर भरे क्षणों में, सच्ची सुख की अनुभूति है.

कोई ढाल यदि खो जाये,खंज़र का वार ना सह पायें.
वैसे ही तेरे खोने से जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ? सहनशील धरा जैसी है.अपकार धरा सहती है,
फिर भी उफ़ ना कहती है.ये धरा यदि खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ?

सबसे पावन,सबसे निर्मल ,तू गंगा के जैसी है.
ममता से भरी मूरत है,तुझमे bhagvan की सूरत है.

जो झुका इन चरणों में,स्वर्ग सा सुख पाया है |

सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

जब पास हों तो कीमत खो जाती है

कुछ उलझन भरे मन के सवाल से उभरी है ये नज़म ........

मेरी आवाज़ की गूंज मुझसे ही उठती है,
मुझसे ही टकरा कर खो जाती है.

जागती है तकदीर जब हम सोते हैं,
आँखें खुलते ही तकदीर सो जाती है.

हम चलते हैं जब भटकन की राहों में ,
तब कदम भी देते हैं साथ,
जब आने लगे मंजिल तो राहें खो जाती हैं.

क्यों होता है कुछ खोने के बाद ही पाने का अहसाह ?
जब पास हों तो कीमत खो जाती है.

जब मिलते हैं दर दर की ठोकरें कदम को,
तो हर सीधा रास्ता भी अनजाना लगता है.

मेरी आवाज़ की गूंज मुझसे ही उठती है,
मुझसे ही टकरा कर खो जाती है.

शनिवार, जनवरी 30, 2010

जो छोड़ गया मझदार में उसे याद क्या रखना

गीत बनते हैं मगर मै गा नहीं सकती,
हंसी की चाह है, लेकिन मुस्कुरा नहीं सकती|

अधूरे ख्वाब जाने क्यों आँखों में पलते हैं,
थोड़ी सी ख़ुशी मिले,तकदीर जलती है|

चल रही सांसे भी उखड़ी सी होती है,
अपनी धड़कनों पर भी अपना हक नहीं होता|

सागर की विरह में व्याकुल नदियाँ मचलती हैं,
पर अधीर न हो, उससे वो मंद गति से मिलती  हैं |

जो राह खो चूका मंज़िल  वोह   पा  नहीं सकता,
जो दर्पण टूट गया हो वोह  फिर से जुड़ नहीं सकता |

अधूरी तस्वीर का कोई ख़रीदार  नहीं होता,
नम  आँखों का मोती बेकार नहीं होता |

रुकी हुई मौज का राह क्या तकना,
जो छोड़ गया मझदार में उसे याद क्या रखना |
.

शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

क्या किस्मत पाई है किनारों ने

"लहरों की थपेड़ों को साथ साथ सहते हैं दोनों,
आमने सामने होकर भी मिल नहीं पाते,

 क्या किस्मत पाई है किनारों ने .."

मंगलवार, जनवरी 26, 2010

जिससे मेरी हर सुबह हंसी, वो आफ़ताब है तू

जिससे मेरी हर सुबह हंसी,
वो आफ़ताब  है तू .

मेरे सोख से रात का,
महताब है तू.
जिसके खिलने से
दिल का गुलशन महके,
वो गुलाब है तू.

मेरे रूप पे जो छाया,
वो सबाब है तू.

हर पल जो सजते हैं आँखों में,
वो रंगीन ख्वाब है तू.
********************

प्रीत  की , बूंदों  को,
ये आँखें तरसी थी कभी.

 उसकी अगन से ही जलकर,
ये आँखें बरसी थी कभी.

हर दाहकता को तेरे प्रीत ने,
मिटा दिया.

भर गया अंक मेरा,
सागर सा जहाँ मेरा बना दिया.

"रजनी" 

सोमवार, जनवरी 25, 2010

, चोट मिले हैं, उनसे, या ज़ख्मों पे, मरहम लगाये हैं.

दर्द ऐसा है जो ,
नज़र न आये,
और पीड़ा को ,
सहा भी न जाये,
नैन और लब ,
मूक बन गए,
दोनों ही,
 एहसास को ,
कौन जता पाये,
अंतर करना ,
मुश्किल है,
चोट मिले हैं,
उनसे,
या ज़ख्मों  पे,
मरहम लगाये हैं.

"रजनी"

शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

हे मातृभूमि,हे भारतमाता,

आप सभी को गणतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई.
एक रचना भारत माँ को समर्पित.......

हे मातृभूमि,हे भारतमाता,
तू हमारी आन है,तू हमारी शान है,
तेरे चमन के खिलते सुमन हम,
तेरे चरणों में माँ जान है,

सदा रहे तेरा चोला धानी,
तू खिलती रहे बन शहजादी,
है हमको प्यारी माता,
ये तेरी मेरी आज़ादी,

सदा हिमालय तेरा ताज रहे,
तेरा सब पर ही माँ राज रहे,
कल,कल करते सागर नदियाँ,
तेरे चरणों का पखार करे,

आसमान पे माँ ये तिरंगा,
हरदम ही फहराएगा,
जिसकी होगी शामत आई,
वो ही हमसे टकराएगा,

किसके दूध में इतनी ताकत,
जो तुझे हाथ लगाएगा,
तेरे नैनो के ज्वाला से,
वो भस्मीभूत हो जायेगा,

बच्चा बच्चा भरा देशप्रेम से,
भगत सिंह ,और मनु बाई,
आज लड़ते हैं जाति पाति में पड़,
अगर जरूरत पड़ जाए,
तो बन जाएँ भाई भाई,

तेरे चोले पे ए माता,
दाग ना कोई आएगा,
हर हाथ उठने से पहले,
धरा में काट गिर जायेगा,

वो होगा किस्मत वाला,
जो भारत को जन्मभूमि पायेगा.


BY--------- RAJNI NAYYAR MALHOTRA

सोमवार, जनवरी 18, 2010

हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है

अब तो हर शय पर तू छाने लगा है,
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है.

चाहत में मिलेगी ऐसी सजा, मालूम न था,
याद रह ,रह कर मुझको सताने लगा है.

भर जाते हैं ख्वाब आँखों में, नींद आये बिना,
तू तो जगती आँखों में ,सपना दिखाने लगा है.

खामोशियाँ तेरे करते हैं बेचैन मुझे,
रहना तेरा इस कदर ,मुझे पागल बनाने लगा है.

कभी वक़्त को हम आजमाते थे,
आज वक़्त हमें ,आजमाने लगा है.

कटते ही नहीं हैं ये लम्हे ये घड़ियाँ,
मौसम भी अजीब रंग दिखाने   लगा है.

अब तो हर शय पर तू छाने लगा है,
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है.
BY---------- RAJNI NAYYAR MALHOTRA

शनिवार, जनवरी 16, 2010

वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया

...

वक़्त   की   आंधी   ने   हमें  रेत   बना  दिया,
हम   भी     कभी    चट्टान   हुआ     करते  थे |

मौसम   के   रुख   ने  हमें   मोम   बना   दिया,
हम भी   कभी   धधकती  आग   हुआ  करते थे|

आज   हिम    सा शून्य   नज़र  आ रहे   हैं  हम,
हम   भी    कभी   रवि   से तेज़ हुआ   करते  थे|

एक     झंझावत से   गिरे पंखुडियां , शूल  रह गए
हम भी कभी गुलाबों से भरे गुलशन हुआ  करते थे|

विवशता    ने हमें   सिन्धु   सा   बना   दिया है शांत,
हम भी कभी मदमस्त उफनती सरिता हुआ करते थे|.

वो   अपने     ही     थके      क़दमों    के   निशां   हैं,
जो   कभी    हिरणों    सी  चौकड़ियाँ   भरा करते थे.|

वक़्त   की     आंधी    ने     हमें     रेत   बना   दिया,
हम    भी        कभी    चट्टान    हुआ     करते      थे|

शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

वो रह लिए जिंदा, जिनके दर्द आंसुओ में बह गए|

मेरी ये रचना जो मैंने बहुत पहले लिखी थी...........आज आपसब के बीच ...

रुंध कर रह गयी आवाज़ मेरी,
जब आपको सामने पाई|

खुलते, खुलते रह गए,
लब मेरे,
दिल से बात लब तक ना आ पाई,

आपकी ख़ामोशी को हम समझ ना पाए ,
मेरे आवाज़ में थी वो दम,
जो आप ना सुन पाए|

दर्द से बना सैलाब मन के अंदर,
बहुत तड़पा,बहुत मचला,
पर सागर ही रहा,
नदियाँ बन कर बह ना पाए|

हसरत थी कुछ कहने की,
रह गया बस,फ़साना,
हम कह ना पाए,आप सुन ना पाए|

छोटा सा दर्द ये,
नासूर बन कर रह गया,
वो रह लिए जिंदा,
जिनके दर्द आंसुओ में बह गए|

शनिवार, जनवरी 09, 2010

पता है मुझे, तुम इक्कीसवी सदी में जी रही हो|

अभी कुछ दिनों पहले मेरी एक रचना आई थी जिसका शीर्षक मैंने "पछतावा"रखा था| उस रचना में मैंने समाज में नारी के ऊपर फब्तियां करते पुरुषों(मनचले लड़कों ) को दिखाया था,इस वर्ग पर कटाक्ष था मेरे लेख में|पर,उस लेख से मै पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी,और कुछ आवाम भी ,जिनके प्रश्न मुझे आये रजनी जी हर जगह मर्द गुनाहगार नहीं होता, उनमे लड़कियों का भी दोष होता है |मै भी इस बात को मानती हूँ ,ताली एक हाथ से नहीं बजती|

ये लेख उन कलियुग की बालाओं के लिए है,जिन्होंने बिना हाला के पान से ही ,मदमत कर रखा है अपने अदाओं से,जिस्म की नुमाइश से,तंग हाल कपड़ों से|जिसमें देख कर किसी के भी ह्रदय में हलचल मच जाये,कम्पन हो जाये अंतरात्मा में|

नारी का गहना "शर्म " को कहा गया है,शर्म का अभिप्राय दो तरह का होता है|एक निगाहों में शील,दूसरा वैसे वस्त्र,वैसी अदाएं ,जो आपको खुबसूरत दर्शाती हों,मोहक लगनेवाली हों|
ना की नशीली हावभाव से पुरुष वर्ग को आकर्षित करती हों|

परदे में रहने दो,परदा ना उठाओ,
ऐसे ही रहा तो,जीना मुश्किल हो जायेगा  |

पर्दानशीं होती रही जो बेपर्दा,
शर्म को भी शर्म आ जाएगी|

घूँघट उतना ही उठाओ कि,
चाँद दिख जाए

इतना भी ना कि,सरक जाए,
हो जाओ पानी,पानी|

ये कलियुग कि अप्सराओं,
मेनका ना बन जाओ

क्योंकि,यहाँ कोई विश्वामित्र नहीं|

महाभारत  में हुआ  ,
द्रौपदी का  चीरहरण |

पर आज तो चीरहरण की जरुरत ही नहीं,
क्योंकि,तुम ही खुद द्रौपदी हो,
खुद हो दुर्योधन,

परदा की वजाय दिखाती हो यौवन|

जब खुद कहती हो ,
आ बैल,मुझे मार,तो क्या करे संसार|

खुद ही लगा कर आग,
कहती हो, कैसे बचाऊं दामन|

दामिनी सी चपला रहोगी,
तो होगा चंचल,
किसी का भी मन |

कहते हैं अमूल्य वस्तु को
सहेज कर रखा जाता है
सहेजो तन को,अमूल्य है ये धन|

पता है मुझे,
तुम इक्कीसवी सदी में
जी रही हो|

फिर भी ये समझ लो,
किसी भी चीज़ की अति,
विनाश का कारण बन जाती है|

"अति का भला न बोलता,
अति की भली ना चुप,
अति की भली न बरसना,
अति की भली ना धूप"

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

सोमवार, जनवरी 04, 2010

पछतावा

मेरी ये रचना समाज के कुछ उस भाग के लिए है जो आज आधी समाज को ढक चूका है...
हो सकता है ये रचना आप सबको पसंद न आये,पर ये मैंने जो देखा है वो ही आज फिर अपने कलम को लिखने को कहा.........आप सब की प्रतिक्रिया की आशा रखती हूँ.....

मेरी ये रचना उस नज़र के लिए है जो सचमुच नारी के रूप में एक माँ या बहन को नहीं देख पाते...(आपसब तक ये रचना रखने का अभिप्राय बस इस धारणा को बदलने की एक छोटी सी कोशिश है ......मेरी कोशिश को अपना साथ दें..........
ये वाक्या कहीं आपके साथ भी तो नहीं घटित हो रही , कहीं आप भी इस श्रेणी में सुमार तो नहीं,यदि हैं तो खुद को बदल लीजिये, कहीं ये पछतावा आपको भी न हो जाए...


हर नज़र अब तो सेक्स तलाशती है एक औरत में, चाहे वो ब्याही हो या कुंवारी ...
आज ये कहते हुए मुझे काफी अफ़सोस हो रहा कि जिस तेज़ी से जमाना बदल रहा उसी तेज़ी से लोगों के सोंच भी बदल गए,और बदले भी ऐसे कि उनके सोंच में हर शिष्टता ,भावना ना जाने कहा दफ़न हो गए..


कई दिनों से वो बाइक से करता था पीछा

girls college  की आती,जाती लड़कियों का

उनके सर से पाँव तक के रचना को देख कर

फब्तियों के तीर से उन्हें बिंधा करता था

36, 28, 34...... अरे वाह काली नागिन है यार,
एक बार पलट कर देख ले तो बिना इसके डसे ही
मर जाऊं,

वो बार,बार college  के गेट तक पहुँच रही लड़कियों के

एक ग्रुप को देख चिल्लाता रहा,ए पलट,एक बार पलट

जिसे उसने काली नागिन कहा था

वो काले रंग की लिबास में लड़की, पलट कर देखा ही नहीं

उस लड़के के सामने जाकर खड़ी हो गयी,लड़की को सामने देखते ही ,

वो शर्म से अपनी निगाहें झुका लिया,क्योंकि वो लड़की कोई और नहीं

उस लड़के ही छोटी बहन निकली,शर्म से बहन से निगाहें भी नहीं मिला पाया....

आज इस भूख ने भाई बहन के रिश्ते को भी लहुलुहान कर दिया है.............

मेरे इस रचना के लिए आपके प्रतिक्रिया की जरुरत है...........

शुक्रिया ........


BY RAJNI NAYYAR MALHOTRA....... 9:25PM....

शनिवार, जनवरी 02, 2010

दो बूंद आंसू तेरे, मेरे लिए डूबने को काफी है .

 स्याह रात में,
तेरा चेहरा नज़र नहीं आया,

तभी मन मेरा,
तेरा दर्द पढ़ नहीं पाया,

जब पड़ी निगाहें मेरी,
तेरे चेहरे पर,
बहुत देर हो चुकी थी,

तेरे आँखों की लालिमा ने ,
सबकुछ बयाँ कर दिया,

सजा तो दे दिया तुम्हें,
पर गुनाहगार खुद को पाया,

वो कहना तेरा,होके जार,जार,
पहली ही गलती पर फांसी की सज़ा दे दी,

सजा तो दे दिया तुम्हें,
पर गुनाहगार खुद को पाया,

मेरे गुनाहों की सजा,
इससे बड़ी क्या होगी,

दो बूंद आंसू तेरे,
मेरे लिए डूबने को काफी है .

तेरे एक अनकहे शब्द में भी,
कितने उभरे भाव है,
क्यों नहीं देख पाए मैंने,
जो मन पे छाये घाव हैं,

तेरे आँखों की लालिमा ने ,
सबकुछ बयाँ कर दिया,

जब पड़ी निगाहें मेरी,
तेरे चेहरे पर,
बहुत देर हो चुकी थी.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "