बुधवार, मई 06, 2020

जब ज़िंदगी मुख़्तसर है


जब ज़िंदगी मुख़्तसर है दुआएँ भी क्या करें  
आधी मनाने में निकले आधी  आज़माने  में
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ओढ़ रखी  हैं जो उदासियों  ने  चादर 
 मुस्कुराहटें कह रही फेंक दे उतार  के
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फेंक कर सिक्के कभी दी गईं किसी मजबूर को
उसकी दुआएँ भी कभी लग जाती है  इंसान को

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ऐसे रीझ पड़ी मुझपर अँधेरी    बस्तियाँ
जैसे  कोई जगमगाता सूरज मेरे पास हो 
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ज़िंदगी तेरा हर फ़ैसला मंज़ूर है
बस वक़्त को मेरे हक़ में कर  दे 
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बेबसी  बेक़सी    दर्द  चैन    ख़ुशी
ज़िंदगी  बता क्या क्या तेरे नाम हैं
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प्रफुल्लित  है सृष्टि सारी  झूम रहे धरती अम्बर 
बस रोक लग गयी भागते मानव की  रफ़्तार  को 
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बढ़ जाता है सौन्दर्य सँवरने से 
श्रृंगार   हुस्न  का  मददगार  है

"लारा"