रविवार, दिसंबर 26, 2010

ख़्वाब सजते हैं पलकों पर , बिखर जाते हैं

ख़्वाब  सजते हैं   पलकों पर , बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही ,  इनमे निखर जाते हैं.

कह नहीं पाते अधर किस बात से सकुचाते हैं,
बस देखकर उन्हें हम, मंद मंद मुस्काते    हैं.

क्यों रोकते हैं खुशियों को ,ये कैसे अहाते हैं,
न    हम   तोड़ पाते हैं , न वो  तोड़ पाते  हैं.

उन्मुक्त हो अरमान भी शिखर चढ़ जाते हैं,
 टूट न  जाएँ  हम   ये सोंच,  सिहर  जाते हैं.

ख़्वाब   सजते हैं पलकों पर  बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही, इनमे निखर जाते हैं.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "