सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
मोम लिए बर्फ पर थे,
मोम लिए बर्फ पर थे,
फिर भी पिघल गये,
ठंडा था दूध,फिर भी ,
ठन्डे दूध से जल गये,
मृग मरीचिका मन का भ्रम है,
फिर भी सोने का देखा हिरन,
मृग मरीचिका मन का भ्रम है,
फिर भी सोने का देखा हिरन,
तो मन मचल गये,
बंद रखा था पलकों को,
बंद रखा था पलकों को,
मोती छूपाने के लिए,
बंद पलकों से भी,
बंद पलकों से भी,
मोती निकल गये,
हर धड़कन को छू लें,
हर धड़कन को छू लें,
वो एहसास बन गये,
हम आदमी थे आम,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये,
सागर में रहकर भी,
सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
हम आदमी थे आम,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये.
5 comments:
वाह!.... सुन्दर कविता
बेहतरीन उपमाएं इस्तेमाल कीं आज आपने..
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
sanjay ji ye to aapki sonch hai jo iski gahraai ko samjh kar rachna ko samman diya aapne .........aabhar aapka
bahut achaa ............
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