शुक्रवार, मई 07, 2010

माँ का आँचल,


हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,
हमें कदम,कदम पर,
कुछ शरीरिक, मानसिक कठिनाइयों का सामना,
करना ही पड़ता है,
वैसे क्षण में ,
यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..
... माँ का आँचल,
माँ  की स्नेहल गोद ,माँ के प्रेम भरे बोल.
माँ क्या है?
तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,
थके राही के,
  तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे.
कहा भी जाता है,
मा ठंडियाँ छांवा,
माँ ठंडी छाया के सामान है
.जिनके सर पर माँ का साया हो ,
वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है,
जिनके सर पे ये साया नहीं ,
उनसा बदनसीब कोई नहीं.
.. पर,
कुछ बच्चे ,
अपने पैरों पर खड़े होकर,
 माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं,
उन्हें  उनकी सेवा,
  देखभाल
उन्हें बोझ लगने लगती है..
जबकि उन्हें ,
अपना कर्तव्य,
पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

"रजनी"

मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया

"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में  नहीं होता,
 मैंने  तो लकीरों पर,
भरोसा  करना छोड़ दिया ."

 " रजनी "