रविवार, जून 07, 2020

जन्मदिवस बधाई संदेश

 जन्मदिवस  बधाई संदेश

मिलने लगे स्नेह भरे शुभ सन्देश के बोल
ये आशीष समेट लूँ  भर लूँ दामन   खोल
"रजनी"


अपनेपन का आभास मिला आदर और उत्साह मिला
इन आभासी रिश्तों से भी अपनों वाला अनुराग मिला
सगे रिश्तों से बढ़ कुछ नाते मिले ये तो है सौभाग्य मेरा
कुछ लोगों पर विश्वास बढ़ा कुछ लोगों से विश्वास मिला

"रजनी"

बुधवार, जून 03, 2020

मेरी हस्ती न मापो ऐसे शहद  ज़ुबाँ वालों
तुम्हारी हर जहरीली चाल की ख़बर है मुझे


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मतलबों   में  ढलते  रिश्ते
पल-पल रंग बदलते रिश्ते
अपने   ही  करते    गद्दारी
बेबस मन को ख़लते रिश्ते

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छुड़ा लो  दामन उनसे तो और नहीं डस पाएँगे
रिश्तों के केंचुल ओढ़े जो आस्तीन के  साँप  हैं
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मैं तो उनलोगों के हर  साज़िश से वाक़िफ हूँ
बस देखना है उनके गिरने की हद्द क्या है

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किसी  के ज़ख्म का कोई ख़रीदार नहीं  होता
ज़ख़्म बिक जाए कहीं ऐसा बाज़ार नहीं होता
लोग मिल जाते अगर हाथों  में   मरहम   लिए
टूटकर  लोगों का  दिल ऐसे बेज़ार नहीं  होता

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चेहरे पर चाहे लाखों चेहरे रखो मुखौटे डाल कर
उखड़ जाते गहरे शजर भी वक़्त की आँधियों में

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फ़रेब खा कर मुस्कुराना  सीख लो
काँटों से  दामन  छुड़ाना सीख  लो
दफ़्न करके अपने दिल में सारे ग़म
रिश्तों को तुम आज़माना सीख लो
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ज़ख्म सील गए तो क्या दाग़ तो रह  जाएँगे
बीत गए मंज़र तो  क्या  याद तो रह  जाएँगे
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 आवारा बनकर लगा भटकने गलियों में दर्द मेरा 
 आस्तीन के साँप जब  गमख़्वार बनकर आ गए
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 नादाँ समझ कर पिलाते रहे लहू  जिनको 
 वो सारे के सारे अपने आस्तीन के साँप थे 
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पास आ विश्वास बढ़ाकर अपने ही छल जाएँ तो 
दुर्भाव लिए चाल मात की अपने ही चल जाएँ तो 
दिखावे की ख़ातिर ऐसे रिश्ते-नातों की  चाह नहीं
द्वेष जलन की अग्नि में जब अपने ही जल जाएँ तो 
" लारा मल्होत्रा नैय्यर "रजनी 

शुक्रवार, मई 15, 2020

ऐसे तो हर एक जंग में होती है शह और मात

ऐसे तो हर एक जंग में होती है शह और मात
हमें अब  जीना होगा   इस  कोरोना के  साथ

हाथ मिलाना छोड़कर दोनों हाथों को जोड़िये
अपने संस्कार यही   हैं अपवादों   को  तोड़िये
मास्क लगा कर दूर से करें सब आपस में बात
हमें अब  जीना  होगा  इस  कोरोना  के  साथ

लौट कर  सब वापस सनातन संस्कृति में आईये
फ़ास्ट फूड को छोड़ हमेशा देशी  व्यंजन खाईये
अदरक हल्दी गिलोय और ले तुलसी  का  साथ
हमें अब  जीना   होगा   इस  कोरोना  के  साथ
"लारा"

शनिवार, मई 09, 2020

मातृ दिवस की बधाई संसार की सभी माताओं को

माँ की ममता किसी ख़ास पल की मोहताज नहीं फिर भी
मातृ दिवस की बधाई संसार की सभी माताओं को

आह दर्द और बेचैनियों को पहचान लेती है
 वो बिन बोले ही   सारी  बातें  जान लेती  है
 माँ का राब्ता बच्चों  संग  दिल-ओ-जान  से
 गुज़र जाती है  हद्द से जब  वो ठान लेती  है

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स्नेह का पिटारा हो, रोज खुल जाती हो, लगती हो त्यौहार माँ
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"जब भी मचलता  है मेरे  अंदर      का    बचपन,
पास तेरे आकर  माँ  लिपट जाता है मेरा  बचपन "


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चूम लिया माँ ने लगाकर गले से हर बला मेरे सर से टल गई
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तेरे हुनर के क़द सा कुछ भी नहीं ,तुझ पर लिखूँ भी तो क्या लिखूँ  माँ ( 😊 अपनी माँ समर्पित  )

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सफ़र में माँ की दुआओं का सर पे साया है हर एक बला से मुसीबत से बचा लेगा
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"लारा"

बुधवार, मई 06, 2020

जब ज़िंदगी मुख़्तसर है


जब ज़िंदगी मुख़्तसर है दुआएँ भी क्या करें  
आधी मनाने में निकले आधी  आज़माने  में
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ओढ़ रखी  हैं जो उदासियों  ने  चादर 
 मुस्कुराहटें कह रही फेंक दे उतार  के
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फेंक कर सिक्के कभी दी गईं किसी मजबूर को
उसकी दुआएँ भी कभी लग जाती है  इंसान को

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ऐसे रीझ पड़ी मुझपर अँधेरी    बस्तियाँ
जैसे  कोई जगमगाता सूरज मेरे पास हो 
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ज़िंदगी तेरा हर फ़ैसला मंज़ूर है
बस वक़्त को मेरे हक़ में कर  दे 
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बेबसी  बेक़सी    दर्द  चैन    ख़ुशी
ज़िंदगी  बता क्या क्या तेरे नाम हैं
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प्रफुल्लित  है सृष्टि सारी  झूम रहे धरती अम्बर 
बस रोक लग गयी भागते मानव की  रफ़्तार  को 
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बढ़ जाता है सौन्दर्य सँवरने से 
श्रृंगार   हुस्न  का  मददगार  है

"लारा"




रविवार, मई 03, 2020

ग़ज़ल

देख लहरों को डर गए  कुछ लोग
नाव से ही  उतर  गए  कुछ   लोग

करके    क़ुर्बान    ज़िंदगी   अपनी
प्यार में उफ्फ बिखर गए कुछ लोग

हर सितम सह   रहे   यहाँ   जीकर
ज़िंदा रहकर भी मर गए कुछ लोग

सोच   कर    राह     की    परेशानी
राह में  ही    ठहर गए   कुछ   लोग

जो  खड़े    सर पे  हैं  कफ़न   बाँधे
साथ उनके उधर    गए  कुछ  लोग

दाग  लगने  न   दी  अना   पर  जो
आग पर से भी गुजर गए कुछ लोग

"लारा "

गुरुवार, अप्रैल 30, 2020

मजदूर

मजदूर कर्मयोगी  है
अपने साधना के पथ का,
रहता है निरंतर
प्रयासरत ,
पूरी करने के लिए
औरों के जीवन
के अनुष्ठान को |
करता है
जीवन अपना होम
जिसमें जलती  हैं
उसकी समस्त आकांक्षाएँ
यही है मजदूर की परिभाषा !
"लारा"

ख़ुदा से ली हुई उधार है ज़िदगी

कभी गुल कभी ख़ार है ज़िंदगी
कभी जीत कभी हार है ज़िंदगी
जब चाहे वो हमसे वापस ले ले
 ख़ुदा से ली हुई उधार है ज़िदगी
"लारा"

मंगलवार, अप्रैल 28, 2020

गीत : सुख दुख का है ताना बाना

सुख दुख  का है  ताना बाना
जीवन में इनका  आना जाना

जैसे   दीपक  संग  है   बाती
सुख- दुख हैं जीवन के साथी
चाहिए  जीने    का    बहाना
जीवन में  इनका  ताना बाना


 
दुःख   दर्शाती   है    मजबूरी
है रिश्तों की भी परख ज़रूरी
ग़म से मन को  मत  भरमाना
जीवन में  इनका  ताना  बाना


कुछ अपने भी  छल  जाएँगे
 गर  हालात    बदल  जाएँगे
हँसना और   सदा   मुस्काना
जीवन में इनका  ताना  बाना

"लारा"

रविवार, अप्रैल 26, 2020

पर कागज़ पर चलता नही जीवन का जहान

भूख और ग़ुरबत ने ले ली कई लोगों की जान
बनती ऐसी चर्चित पँक्तियाँ अखबारों की शान
पर कागज़ पर चलता नही जीवन का  जहान
देगा सबकी वक़्त  गवाही मत  घबरा   नादान
"लारा"

शनिवार, अप्रैल 25, 2020

संबंधों की कुटिल व्याख्या महाभारत अंजाम

नग्न हुई जब भी मर्यादा लज्जा झुक शरमाई
सत्ता की लालच में अंधे हो टकरा गए  भाई
संबंधों की कुटिल व्याख्या महाभारत अंजाम
देता  सबकी वक़्त गवाही मत  घबरा  नादान

"लारा"

गुरुवार, अप्रैल 23, 2020

विश्व पुस्तक दिवस पर

विश्व पुस्तक दिवस की बधाई

अक्षर -अक्षर अमर  हो  गए पाकर रूप किताबों के
भाव उतर आए पन्नों में बढ़ गए क़ीमत जज़्बातों के
दोहे गीत ग़ज़ल कोई किस्सा कविता या फिर चौपाई
विषय बने दुनियादारी कुछ राजनीतिक हालातों  के

"लारा"

बुधवार, अप्रैल 22, 2020

गीत --- देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान

मानवता की समझ नहीं फिर कैसा  इंसान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान

 


सड़कों पर बेबस सोती है भूख और बेकारी
महलों भीतर राज करे छलियों की चाटुकारी
इनके सम्मुख पानी भरते विभूतियाँ  महान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा  नादान

दिल के भीतर दर्द छिपाए होठों पर मुस्कान
बाणों की शैय्या पर तड़पे जैसे भीष्म महान
हो  कर रह गया जीवन सबका एक  संग्राम
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा  नादान



जब चलती वक़्त की चाल कुटिल होती है
बीच व्यूह में अभिमन्यु सा मर्यादा  रोती  है 
तब खंडित हो जाता निर्धन जन का सम्मान 
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा  नादान


सच कहते हैं लोग होता वक़्त बड़ा बलवान
बड़े बड़े का हो जाता है चूर यहाँ अभिमान
इठलाया था रावण भी पा  मुँहमाँगा वरदान 
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा  नादान 


लोग होके हलकान धरती अम्बर को ताकें
आकर कोई पढ़े वेदना उनके मन में झाँके
कोरे कागज़ से रह जाते  हैं उनके अरमान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान





भूख और ग़ुरबत ने ली कई लोगों की जान
बनती ऐसी चर्चित पँक्ति अखबारों की शान
समझौतों से चलता नहीं जीवन का जहान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान

" लारा मल्होत्रा नैय्यर ( रजनी)
बोकारो थर्मल ( झारखंड )

मंगलवार, अप्रैल 21, 2020

कोरोना गीत


क़ुदरत की है बड़ी चुनौती मानस औ विज्ञान को
ग्रहण लगेगा घर से बाहर निकले  हर इंसान को 


विश्व के कई देश विवश हैं और हुए लाचार बड़े
मौत का तांडव देखते हैं हाथ बाँधे मूक हुए खड़े
गुप्त शत्रु का वार है ये मत भूलिए इस संज्ञान को 
ग्रहण लगेगा घर से बाहर निकले हर इंसान  को

आज से अधिक कठिन होगा आनेवाला जो कल है 
 क्रोधित है क़ुदरत जिससे मिल रहा ये प्रतिफल  है
 छल बल से  वो लगा हुआ है मानव के सन्धान को 
ग्रहण लगेगा घर से   बाहर  निकले हर   इंसान  को 



है कोई क़ुदरत की आपदा या जैविक हथियार  है
ये तो विश्व के समूल नाश को लालायित  तैयार है 
व्यर्थ नही  होने देंगे  इस युद्ध में हुए बलिदान  को 
ग्रहण लगेगा घर से  बाहर  निकले हर   इंसान  को


अपने धैर्य की है ये  परीक्षा इसे नहीं  खोने  देंगे
भारत को हम इटली   यू एस चीन नहीं होने देंगे 
कई वर्षों  कर देगा पीछे ये जीवन  के उत्थान को 
 ग्रहण लगेगा घर  से  बाहर निकले हर इंसान  को 


 बुरा वक्त भी टल जाएगा सबका वक़्त बदलता  है 
 पतझड़ के आने से ही तो पुष्प  बाग में  खिलता है 
 भेदरहित हो नाश करें इस मानव के व्यवधान को 
 ग्रहण लगेगा घर से बाहर निकले हर    इंसान   को

" लारा मल्होत्रा नैय्यर
बोकारो थर्मल झारखंड

सोमवार, अप्रैल 13, 2020

कोई पल न रीता जिसमें  तेरी दिखी परछाई नहीं
दिन बदले मौसम बीते तेरी ममता की  गहराई  में

शनिवार, अप्रैल 11, 2020

मुक्तक

बदले कितने व्यवहार इस तालाबंदी से
जुड़ गए दिलों के तार इस तालाबंदी से
गृहस्थी की गाड़ी भी पटरी पर चल रही
पर कुछ भ्रम भी टूटेंगे इस तालाबंदी से

"लारा",

मंगलवार, अप्रैल 07, 2020

ग़ज़ल----- साथ चलते क़दम को मिलाओ कभी

ग़ज़ल





 



 


  साथ चलते क़दम को मिलाओ कभी
  बढ़ रहे  फ़ासलों को मिटाओ कभी

  ढाल बन कर रहें जो दुआ की तरह
  उनके सजदे में सर को झुकाओ कभी

 दो घड़ी भी किसी की जगा दे अना
 वो समां इस तरह से जलाओ कभी

 आपका साथ है कारवां की  तरह
 हाँ  यही तुम भी गुनगुनाओ कभी

इसलिए रूठने का दिखावा किया
पास आकर हमें तुम मनाओ कभी

खो गया इस जहाँ से अम्न का निशां
गीत कोई अमन का  सुनाओ   कभी

 बेसबब टूट कर ये  बिखर  जाएँगे
 हौसलों को नहीं आज़माओ कभी
 
सुन जिसे गुनगुनाते  रहें  उम्र   भर
साथियों को ग़ज़ल वो सुनाओ कभी

शनिवार, अप्रैल 04, 2020


रुक गयी ज़िन्दगी रुक गया हर सफ़र


भागते- दौड़ते  इंसान की तेज़ रफ़्तार को अचानक से प्रकृति ने  एकदम से ब्रेक लगा दी !
 एक से बढ़कर एक भौतिक सुख- साधनों की वृद्धि,
परमाणु हथियारों का निर्माण ,प्रकृति से होड़ या यूँ कहें प्रकृति को सीधी चुनौती ।उसके ही बनाये नियमों का सीधे - सीधे विखंडन । इंसान से ख़ुदा का फ़र्क़ मिटाना  एक घनघोर अपराध । तमाम सुविधाओं से जकड़ा मानव इंसान से कब शैतान बन गया वो स्वयं नहीं जान सका , विकास के नाम पर उसने कुछ निधियाँ हासिल की । पर, ये निधियाँ उसपर हावी होती स्पर्धा, के नीचे दबती चल गईं  और यही निधियाँ  उनके किये गए दुरूपयोग से मनुष्य का विनाश बनकर उभरी । वक़्त सँभलन का सभी को वक़्त देता है, पर हम बाह्य विकास की होड़ में  इस क़दर भागने लगे कि  मानव के  आंतरिक गुणों को भूल बैठे, प्रकृति फिर भी हमें समझाती रही, अपने तरह -तरह के बदलते संकेतों के द्वारा , पर विज्ञान की  तरक़्क़ी      के बल पर मनुष्य ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ समझने लगा उसने प्रकृति के द्वारा प्रदत्त किये गए उपभोग की वस्तुओं का कभी दुरूपयोग किया कभी दोहन । हर बार प्रकृति से लड़कर जीतता रहा मानव  ,पर उन जीत के पीछे  हर बार   क़ुर्बान हुई कई-  कई ज़िंदगियाँ । इन्हीं तमाम सवालों के बीच उलझते  फिर से विश्व एक ही छत नीचे आ गया है । वही संदेह शंकाएँ , कौन बड़ा प्रकृति या पुरुष ? विज्ञान का आकलन पूरी तरह धर्म पर ही आधारित है , पर धर्म क्या है ?  वाह्य आडम्बरों से जो भरा  है वो धर्म है ,अथवा मानवता की सच्ची  सेवा धर्म है । अंतरात्मा से की गई उस परब्रम्हपरमेश्वर की वंदना अथवा कर्मकांडों में लिपटे हुए तन्त्रोक्त साधना , व मूर्ति पूजन ?
इन तमाल सवालों के कोई उपयुक्त  जवाब न होंगे हमारे पास । अलग- अलग देशों में सबके धर्म , देव व उनसे जुड़े अनुष्ठान अलग-अलग हैं । मतैक्य में मतभेद अवश्यम्भावी है। मनुष्य के विकास की परंपरा और सफ़र अबाध रूप से चलता रहे , इसी विकास के होड़ ने विश्व को कभी दो भागों में बाँट कर 2 विश्वयुद्ध  भी दिए । जिसके  परिणति स्वरूप  विश्व के कई देश वर्षों तक दुःख, ग़रीबी और टूटी अर्थव्यवस्था  के रूप में झेलते रहे । आज  फिर हम उसी मोड़ पर आकर समेकित रूप से खड़े हो गए हैं जहाँ बाज़ारवाद   ने अपने पैर फैलाने के लिए, अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए , दूसरे राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था को डाँवाडोल करने के लिए  विश्व को एक नई मुसीबत ( कोरोना ) से सामना करने के लिए घुटनों पर खड़ा कर दिया है , अब इस परिस्थिति में ये मुसीबत मनुष्य प्रदत है अथवा प्रकृति प्रदत्त कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता इसके परिणाम पर । क्योंकि,  इसकी  चपेट में आनेवाली ज़िंदगियाँ देश, राज्य, अमीर-ग़रीब बड़ा, छोटा, रंग, जाति सबका भेद त्याग कर सबको समान रूप से गले लगा रही,  मानो कह रही है प्रकृति की नज़र में सभी एक समान हैं , यदि कोई भेद की नीति है तो वो तुम मनुष्यों द्वारा बनाई गई है ।
परमाणु के आविष्कारक भी अपने हथियार डाले बैठे हैं , इंसान जब किसी मुसीबत में पड़ता है तभी उसे उसके किये गए अच्छे-बुरे कर्म याद आते हैं और वो अपने इष्ट को याद करता है ये जानते हुए कि वो कहीं नहीं दिखते फिर भी मन में एक यक़ीं होता है उसे,  कोई एक शक्ति है जो उसे इस संकट से उबार लेगी ।फिर यहीं से शुरू होता है एक और सफ़र आस्था, अनास्था का । आज वो सारे साधन हमें मुँह चिढ़ा रहे, न परमाणु हथियार काम आ रहे न कपड़ों से भरी आलमारियाँ । हम मोटरगाड़ियों की खरीदारी के लिए क़तारों में नहीं लग रहे,न ही किसी सजावटी वस्तु को लेने की होड़ में हैं । उफ़ कितनी सीमित साधनों में सिमट गया है आज का मानव ! बस उन्हीं मूलभूत आवश्यकताओं  में सिमट कर रह गया है फिरसे । प्रकृति उसे उसी आदम युग में खीच कर ले आयी जहाँ उसका एकमात्र उद्देश्य था खाद्य सामग्री का  संग्रहण । अपनी ज़रूरतों के लिए प्रकृति का उपभोग करते करते दुरुपयोग की सीमा तोड़ विज्ञान की पकड़ से प्रकृति को झुकाने की अनर्गल कोशिशें करते मानव जब अपनी अहम की अट्टालिकाएँ   , बढ़ाने लगा ,क्या  उसे सचेत करने प्रकृति को इस तरह समझाना पड़ा !  एशिया क्या यूरोप क्या दक्षिणी क्षेत्र और क्या पूर्वी क्षेत्र । निर्माण की एक छोटी सी इकाई जिसे देख पाना असंभव है,  उस अनदेखे आतंक ने विश्व को हिलाकर मानव की ईंट से ईंट बजा कर रख दी है । लोगों को दहशत में जीने  को मजबूर कर भाषा, खान-पान, जलवायु, मौसम रंग,लिंग भेद सबका भेदभाव छोड़कर एक सकारात्मक संदेश के साथ सबको गले लगाते काल के गाल में धकेलता चला जा रहा  कि प्रकृति के लिए सभी समान हैं, कोई नस्ल,धर्म भेद नहीं ।
अचानक इस विश्वव्यापी मुसीबत (कोरोना )से मानव जाति को बहुत कुछ सीखने को भी मिला है बहुत सारी भूलों को सुधारने का मौक़ा भी ।

वसुधैव कुटुंबकम  में विश्वास करते - करते विश्व कलिंग युद्ध के रचयिता के रूप में परिवर्तित हो गया । करने लगा निर्माण विनाशक शक्तियों का । हर शक्तिशाली देश ख़ुद को दूसरे देश से अधिक शक्तिशाली बनाने में लग गए , कमज़ोर राष्ट्र दबाए जाने लगे ,नीतियों द्वारा प्रस्तावों द्वारा  बाज़ार के रास्ते खुले एकदूसरे से प्रगति की दौड़ में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी, फलस्वरूप देशों के अर्थव्यवस्था  में अंतर आये  माँग बढ़ी बाजार बढ़े ।
राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय बाजार बढ़ने लगे विचार बदले , 
अर्थव्यवस्थाएँ बदली परिवेश बदले भौतिकता ने ख़ूब पंख फैलाये , विकसित और विकसित हुए विकासशील प्रयत्नशील रहे ।  सात समंदर की दूरियों को मिटा कर विश्व के तार एकदूसरे से जुड़ने लगे ,
 वैश्वीकरण होने से अर्थव्यवस्था के साथ  पाश्चात्य संस्कृति भी दूसरे संस्कृतियों में घुलने लगी। आदान -प्रदान के दौर में  सभी देशों ने दूसरे देशों से बहुत कुछ आत्मसात किये संस्कृतियों में नई -नई चीजें जुड़ने  लगी  । विश्वगुरु बन हमने पाश्चात्य को सिखाया तो
पाश्चात्य से बहुत कुछ आत्मसात किया ।मानव  ने भौतिकता की अंधी दौड़  में भूला दिया कि प्रकृति ने मानव को एक श्रेष्ठ जीव के रूप में धरती पर बना कर भेजा है । हर ओर दम्भ, झूठ, आतंक, जीव हत्या,  धर्म के नाम पर लूट पाखंड ,व्यभिचार बढ़ गए । ज्ञान अज्ञानियों के बोझ तले दब गया , धर्म की परिभाषा बदल गयी, नारी का स्थान बदल गया ।
हर ओर विनाश के संकेत ,चहुँओर ओर छा गया तो बस एक यही विचारधारा  सामने वाले को कुचलते हुए अपनी मंज़िल की ओर जाना है । समय की धारा को मनुष्य अपने अनुसार चलाने लगा , संयम खो गए, सहृदयता जवाब दे गई,  हृदय में कुटिलता का वास हो गया ।मानव समाज  की सबसे छोटी इकाई होती है परिवार जिससे जुड़ कर जीवन की हर छोटी बड़ी खुशियों को साझा किया जाता है , तभी तो मनुष्य समाज का निर्माण करता है पर बदलते वक़्त की मेहरबानी देखिए भौतिकता में डूबे अपने सुख-सुविधाओं को बढ़ाने की ललक में न दो वक्त चैन की साँस ले पाया इंसान न चैन का निवाला नसीब उसे। दोहरे चरित्र के मनुष्यों के कार्य भी दोहरे चरित्र वाले हो गए , अधिक मुनाफ़े के चक्कर में अनाजों सब्जियों दुग्ध पदार्थों में भी कई तरह की मिलावट  पाए जाने लगे रासायनिक पदार्थों के मिश्रण से उनकी गुणवत्ता खराब  कर  लोगों के सेहत और जीवन को संकट हुआ परिणाम , मौसमी बदलाव के कारण उत्पन्न बीमारियों से लड़ने की क्षमता (इम्युनिटी )घटने लगी
व्यसनों बुराईयों में घिर कर मन की एकाग्रता ख़त्म , मशीन के साथ जुड़ कर मानव के शारीरिक श्रम वाले सारे कार्य बंद हो गए जिससे शरीर को चुस्त बनाने वाली धातुओं का बनना कम हुआ या बनने बंद हो गए जिससे कई बीमारियों ( मधुमेह,  उच्च रक्तचाप ,मोटापा जैसी ) को न्योता मिला ।दूषित भोज्य पदार्थों को खा पीकर व्यसन में डूबने से कई अनैतिक कार्यों को बढ़ावा मिला । " जैसा अन्न वैसा मन "  कहा भी गया है । सोने उठने के नियम भी बदलती समय की माँग कहें या मजबूरी ,मशीनी जीवन ने इंसान को पूर्णरूप से मशीन कर छोड़ दिया । पर समय समय पर प्रकृति ने बहुत कुछ बदलाव करते रहे हैं , और उन्हीं बदलाव के कई परिणाम हमने अब तक सुने और देखे हैं ।
बद से भी कुछ अच्छाई निकल कर आती है जैसा कि हमें स्पष्ट नज़र आ रहे ।
भाग - दौड़ की दुनिया में इंसान  इतना थक गया कि उसे अपने परिवार को देने के लिए प्यार की जगह उपेक्षा और अवहेलना मिले ।
अपनों के पास बैठने के लिए वक़्त की कमी ,  पर सैकड़ो मीलों दूर के रिश्ते ऑनलाइन जुड़ कर बनने और निभने लगे।
नैतिकता के बंधन टूटने लगे ,मर्यादाओं को भूल कर कई रिश्ते ऐसे बनें जिससे बसे बसाए घर टूटने लगे ।
रिश्तों की गरिमा , त्याग, समर्पण, धार्मिक भावनाएँ सब आहत होने लगीं ।
इंसान ही इंसान का शत्रु बन बैठा । मन कर्म और वचन से झूठे होने लगे लोग।
सृष्टि के निर्माण के बाद संसार में बढ़ते अनैतिकता को रोकने के लिए प्रकृति को किसी न किसी रूप में पाठ पढ़ाना ही पड़ा है ,इस बार भी प्रकृति ने इंसानों को चुनौती दी है विज्ञान को चुनौती दी है ,मंदिरों मस्जिदों गिरजाघरों में ताले लगवा कर  ईश्वर ये सन्देश दे रहा लोगों को "पत्थरों में नहीं सच्चे हृदय में मेरा निवास है" मानवता की सेवा निरीहों की सेवा ही सच्चा धर्म है
। आज जो लोग दिख रहे इन माध्यमों में ( डॉ, नर्स, सफाईकर्मी आदि ) उनके ही रूप में भगवान नज़र आएँगे ,बस ज़रूरत है अन्तर्रात्मा को जगा कर देखिए । कोरोना का संकट भी हमें प्रकृति ने एक सूत्र में  जोड़कर रखने के लिए दिए हैं देखिए स्पष्ट है।
सभी लोग इसकी ख़ुराक बन रहे कोई अमीर,गरीब, बड़ा छोटा नहीं ।
जन्म के अनुसार इंसानों ने कार्यों का बंटवारा किया, प्रकृति सबको एक क़तार में ले आयी ।
आज सभी अपने कार्य स्वयं कर रहे।
सबकी ज़रूरत एक है भोजन , आज विश्व इसी के लिए चिंतित है ।
प्रकृति सभी को एक जगह लाकर खड़ा कर दी है।
मनुष्य की मंशा को प्रकृति ने भी अपनी हामी भर दी
मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु होने लगा , यहाँ प्रकृति ने भी  क्या सजा सुनाई है  तत्काल परिस्थिति यही है मनुष्य की  नज़दीकी से उसके छूने से मनुष्य की मौत होगी ।

ये आपदा प्रकृति प्रदत्त है तो भी चेतावनी है मानव जाति को उसकी भागती रफ़्तार और वसुधा में फैलते जाने वाली बेलगाम मानव  बेल को रोक लगाने की क्योंकि प्रकृति सिर्फ़ मानव की नहीं समस्त जीवों की भी उतनी ही  है जितनी मानव की ।
प्रकृति का न्याय देखिए आज समस्त मानव जाति घरों में दुबकने के लिए मजबूर है और अन्य जीवन सड़कों पर बेख़ौफ़ हैं  ।
यदि ये आपदा मानवकृत है तो भी चेतावनी है विश्व को भविष्य के लिए, अन्यथा विनाश तो निश्चित है क्योंकि जो " उत्पन्न है वो अमर नहीं "

रजनी मल्होत्रा नैय्यर
बोकारो थर्मल झारखंड