वो भी हो गए आज़ाद हमसे हाथ छुड़ाने के बाद,
लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.
लोग रो पड़े सुनकर दास्तान मेरे जाने के बाद,
लगता है आंसुओ को मेरे लिए ही छूपा कर रखा था.
याद आई किसी को हमारी आज एक ज़माने के बाद,
लगता है उसने आँखों में कोई अक्स छूपा कर रखा था.
आज संभल गए हैं वो एक ठोकर खाने के बाद,
लगता है किस्मत को चोट से ही बदलना लिखा था.
कह ना पाए कुछ भी जो होंठ हिलाने के बाद,
लगता है तभी पलकों को झुकाकर रखा था.
हम जानते थे वो याद आयेंगे दूर जाने के बाद,
लगता है तभी दरमियाँ फासला बना कर रखा था.
लोग बातें करते हैं पीने की होश खोने के बाद,
लगता है मयखाना से दोस्ती बना कर रखा था.
"रजनी"
मंगलवार, मार्च 16, 2010
लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.
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13 comments:
aapke likhi huwi sari baate bilkul satya hai.apke is rachna se mai apki or akarsit hu.aaj tak koi mujhe aisa nahi mila jo ki is tarah se apne ruprekha (profile)ko hindi se sajaya ho.apki baate jo ki sidhe dil ko chhu jati ho per....jisko kabhi pyar mila hi nahi wo............mujhe kabhi pyar nahi mila.
lekin aap bahut achhi ho..........
AMAR
balidih.amar@gmail.com
मिथुन दा के शब्दों में कहूँ.....??क्या बात....क्या बात.....क्या बात.......!!
sukriya aap dono ko ,,,,,,,,,,
waah, bahut hi badhiyaa
sukriya mam apna margdarshan dete rahen..........
बहुत अच्छी रचना!!!!,प्यार,दर्द और याद आदि सभी भावों को आपने बड़ी नाजुकता से शब्दों में पिरोया है!बधाई अच्छी रचना के लिए!!
वाह!! बहुत बढ़िया रचना!! लिखते रहें, शुभकामनाएँ.
rajnish ji hardik sukriya ..............
udan ji aapko bhi hardik sukriya........apna
sneh dete rahen.........
wahhhhhhhhhhhhhhh badhiya
Wah Mam kya baat hai.....
sukriya aapsab ka.........
Waah Bahut Umda ............
sukriya aapka
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