पत्थर समझता रहा मुझे,
आजतक शायद ,
तभी तो,
मेरे टूटने पर,
छू कर देखता रहा.
मंगलवार, मई 18, 2010
पत्थर समझता रहा
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 18.5.10 10 comments Links to this post
Labels: Poems
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
लारा मल्होत्रा नैय्यर (डॉ रजनी मल्होत्रा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
पत्थर समझता रहा मुझे,
आजतक शायद ,
तभी तो,
मेरे टूटने पर,
छू कर देखता रहा.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 18.5.10 10 comments Links to this post
Labels: Poems