सोमवार, जुलाई 19, 2010

कि ढल रही है शाम , अब तो आ जाओ".

"पथरा सी गयी निगाहें,
दीदार को,
फुरकत से ,
अब तो ख्वाब बन ,
कर छा जाओ,
 तेरी मंजिल कि  ,
डगर रुक गयी है .
कि ढल रही है शाम ,
अब तो आ जाओ".

1 comments:

बेनामी ने कहा…

wah.... intjar ki bachaini ko kya sundar roop diya aapne kavita ka