"ज़िन्दगी ,
तुझे,
मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फिर कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "
Rajni Nayyar Malhotra.
सोमवार, मई 10, 2010
फिर कैसे हँसकर, मिलन हो तुझसे
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
"ज़िन्दगी ,
तुझे,
मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फिर कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "
Rajni Nayyar Malhotra.
13 comments:
interesting poem...
मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता
बहुत ही उम्दा व दिल को छू लेनी वाली रचना लगी ।
aap dono ko mera hardik naman
वैसे पता नहीं कि आपने यह रचना किस दशा में लिखी है लेकिन मुझे लगता है कि खुशी तो बगैर समझौते के ही ठीक ढंग से मिलती है। फिर भी रचना बेहतर है। मैं इस बात के लिए परेशान हूं कि वाकई दुनिया में हर कोई कितना परेशान है।
राजकुमार सोनी जी मेरे रचना का अभिप्राय .......
"ज़िन्दगी ,
तुझे, मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फि,
र कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "
सीधी सी बात है,दुनिया में हर कोई सभी चीजों को नहीं पाता,जिसकी वो कामना रखता है,
और जो कोई स्वाभिमानी हो जिसे हर बार तकदीर से समझौता करना मंजूर नहीं तो उसके मन में आये भाव जरुर मेरी रचना से मेल करते होंगे, ज़िन्दगी और खुशियाँ दोनों के बीच ये विचार मतभेदी हैं कि इन्सान को अपनी मन चाही हर ख़ुशी नहीं मिलती कहीं ना कहीं उसे समझौता करना ही पड़ता है.जो नहीं समझौता करते वो इस बात से उलझे ये कहते हैं ,जो मैंने रचना में लिखा है. आशा है अब ये बात आसानी से समझ आ जाएगी रचना का अभिप्राय .
बहुत अच्छी कविता आपके विचारों को प्रस्तुत करती हुयी।
शायद मै आपके ब्लाग पर पहली बार आया।
काव्यं करोति कविनाम् अर्थ जानति पंडिता।
कवि अपनी कविता को किन मनोभावों के साथ रचता है
यह केवल कवि ही जानता है लेकिन लोग उसका अर्थ जानने के लिए स्वविवेक का उपयोग करते हैं।
एक शब्द के अनेकार्थ होने के कारण कभी कभी उसके मूल अर्थ भी बदल जाते हैं।
मेरे मन में उपरोक्त वि्चार आपकी और राजकुमार जी के टिप्पणी संवाद को देखकर आए।
आभार
so nice of you
यदि मेरी टिप्पणी से आपको कष्ट पहुंचा हो तो आपसे क्षमा चाहता हूं। आपकी टिप्पणी के बाद चीजें साफ हो गई है।
राजकुमार जी इसमें क्षमा वाली कोई बात नहीं लेख के अभिव्यक्ति को यदि लेखक पाठक को ना समझा पाए तो इसमें लेख की त्रुटि है ना की पाठक की. मेरे ब्लॉग पर आये आभार .
क्या बात कही है आपने - शब्द और भाव हर मायने में प्रशंसनीय बहुत खूब
rakesh ji is prshnsa ke liye aabhari hun, sneh milta rahe.
hamesha ki tareh dil ko chu gayi..........
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