सोमवार, मई 11, 2015

साज़ -ए दिल पर गीत मोहब्बत के गाते रहो



  बाद-ए-मुख़ालिफ़ में चिराग़ जलाते रहो
 दिल मिले या न मिले हाथ  मिलाते  रहो

  तिश्नगी बुझ जाएगी समंदर की' अगर
  बादलो  मुसलसल बूंद -बूंद बरसाते  रहो


   माना की एक  फ़ासला  है हमारे दरमियाँ
   इतना करम करो की तुम  याद आते रहो

  ग़फलत में  डूबी   हुई   है दुनिया सारी
 तन्हा   अपने हौसलों  से तुम जगाते   रहो

 नफ़रतों से भरी   इस जहाँ  में रजनी
साज़ -ए दिल पर गीत मोहब्बत के गाते रहो





हर ख़याल  ,  हर सवाल,
हर सपनों को  पूरी करती हैं आँखें |
जुबां जब साथ न दे
सैकड़ों सवाल करती हैं आँखें ...

दिल में हो खुशियाँ  भर जाती है
ग़म में भी  छलक  जाती हैं  आँखें.

जज़्बाती , कभी मासूम,  
कभी     अंगार   भरी

कुछ बोलती सी
कभी गुमसुम,
कभी शरारत   है  आँखें.

सागर    कभी      नदिया
कभी बारिश बन  बरसती है.

सपनों   में    खोयी,
नींद     से      बोझिल,
कभी   जगती हैं  आँखें.

ज़िन्दगी            सी    हंसी,
कभी  मौत   सी      गुमसुम
वक़्त सी चंचल  होती हैं आँखें.