"ख़्वाब सजते हैं,
पलकों पर,
आसानी के साथ,
साकार करने में ,
मुद्दत भी लग जाते हैं,
पाना आसान नहीं ,
मंजिल की राह,
पाने में मंजिल,
पैर को ,
छाले भी पड़ जाते हैं."
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
गुरुवार, सितंबर 16, 2010
पाना आसान नहीं , मंजिल की राह,
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9 comments:
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
manjil ke rah pane me pair me chhale pad jate hain.........:)
sahi kaha aapne............aur fir bhi kabhi manjil nahi milta!!
behtreen rachna....
shukriya padwaane ke liye..
sanjay ji ........
mukesh ji .........
sonal ji ..........aap sabhi ko mera hardik aabhar yun hi sneh banaye rahen .......
बहुत खूबसूरत.....
nice and educational poem...Thanks!
aabhar aruna mam .............
upendra ji aapko bhi hardik aabhar mera.......
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