देखा है सबने चाहत की नज़र से,
वफा के गीत नहीं गाता है कोई|
करते हैं बातें साथ निभाने की ,
पर दामन नहीं थामता है कोई|
होठों पर हंसी उम्र भर देंगे कहते है,
रोऊँ तो आंसू नहीं पोंछता है कोई|
चलने को साथ क़दम उठाते हैं सब,
मंज़िल तक साथ नहीं आता है कोई|
मिलकर दरिया पार करेंगे आग का ,
जलने लगूँ तो नहीं बचाता है कोई|
मिलती हैं हर क़दम पर सिर्फ उलझनें ,
पर उलझनों को नहीं सुलझाता है कोई|
"रजनी"
वफा के गीत नहीं गाता है कोई|
करते हैं बातें साथ निभाने की ,
पर दामन नहीं थामता है कोई|
होठों पर हंसी उम्र भर देंगे कहते है,
रोऊँ तो आंसू नहीं पोंछता है कोई|
चलने को साथ क़दम उठाते हैं सब,
मंज़िल तक साथ नहीं आता है कोई|
मिलकर दरिया पार करेंगे आग का ,
जलने लगूँ तो नहीं बचाता है कोई|
मिलती हैं हर क़दम पर सिर्फ उलझनें ,
पर उलझनों को नहीं सुलझाता है कोई|
"रजनी"
2 comments:
man ke sacche bhavo ko gehrai se utara gaya hai ......waah...
sukriya amrendra ji sahi kaha bhavnayen hi panno par utarti hain.
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